महाराष्ट्र की दादियों का पढ़ने का सपना बना मिसाल. 60 से 90 साल की उम्र में भी स्कूल जाने की जिद
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कभी-कभी दुनिया में ऐसी कहानियां सामने आती हैं, जो हमारे दिल को बेहद नरम कर देती हैं. ये कहानियां बड़ी नहीं होतीं, लेकिन इनमें इतना प्यार, हिम्मत और उम्मीद छुपी होती है कि पढ़ने वाला मुस्कुरा देता है. महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव फंगाणे में भी ऐसी ही एक कहानी चल रही है. यहां 60 साल से लेकर 90 साल तक की दादियां स्कूल जाती हैं. हां, आपने बिल्कुल सही पढ़ा. दादियां स्कूल जाती हैं, कॉपी खोलती हैं, पेन्सिल पकड़ती हैं और अपने छोटे-से हाथों से अपना नाम लिखती हैं. उनकी आंखों में चमक होती है और दिल में खुशी. उनका बस एक ही सपना था कि वे मरने से पहले अपना नाम खुद लिख सकें. और अब यह सपना पूरा हो रहा है. यही कहानी आज सोशल मीडिया से लेकर हर दिल तक पहुंच रही है.
पुणे के शिक्षक योगेंद्र बांगर ने शुरू किया स्कूल
दरअसल, महाराष्ट्र के फंगाणे गांव में रहने वाली कई दादियों का एक बहुत प्यारा सपना था. वे चाहती थीं कि वे अपना नाम खुद लिखें. पहले वे दस्तावेजों पर सिर्फ अंगूठा लगा पाती थीं. लेकिन 2016 में गांव के एक शिक्षक योगेंद्र बांगर ने उनके लिए एक खास स्कूल खोला. इस स्कूल में सिर्फ दादियां पढ़ती हैं. वे एबीसीडी सीखती हैं, मराठी पढ़ती हैं और सबसे जरूरी बात. अपना नाम खुद लिखती हैं.
60 से 90 साल तक है दादियों की उम्र
इन दादियों की उम्र 60 साल नहीं, 70, 80 और कुछ की तो 90 साल भी है. लेकिन दिल से वे बिल्कुल बच्चों जैसी हैं. स्कूल जाने के लिए तैयार होती हैं, स्लेट और कॉपी रखती हैं और क्लास में बैठकर ध्यान से पढ़ती हैं. जब भी वे अपने दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करती हैं, तो उनके चेहरे पर गर्व झलकता है. इन सभी के बीच sidiously_ नाम का एक इंस्टाग्राम इंफ्लुएंसर भी दादियों की कहानी को कवर करने पहुंचा था जिसमें उनके स्कूल की दिनचर्या को दिखाया गया है.
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यूजर्स ने जमकर की तारीफ
वीडियो को sidiously_ इंस्टाग्राम अकाउंट से शेयर किया गया है जिसे अब तक लाखों लोगों ने देखा है तो वहीं कई लोगों ने वीडियो को लाइक भी किया है. ऐसे में सोशल मीडिया यूजर्स वीडियो को लेकर तरह तरह के रिएक्शन दे रहे हैं. एक यूजर ने लिखा…पढ़ने लिखने की कोई उम्र नहीं होती. एक और यूजर ने लिखा…एक ही दिल है कितनी बार जीतोगे. तो वहीं एक और यूजर ने लिखा…मुझे आजी बाई के लिए खुशी महसूस हो रही है.
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