अगर आपके सपने बड़े हैं और हिम्मत मजबूत, तो मुश्किलें भी रास्ता नहीं रोक पातीं. यह कहानी है महाराष्ट्र के छोटे से गांव में जन्मे रमेश घोलप की उस लड़के की, जिसने गरीबी, लाचारी और पोलियो जैसी बीमारी से लड़कर IAS ऑफिसर बनने का सपना पूरा किया.
रमेश जब छोटे थे, तभी उनके बाएं पैर में पोलियो हो गया. परिवार की आर्थिक हालत बेहद कमजोर थी. पिता की साइकिल की छोटी सी दुकान थी, लेकिन शराब की लत ने सब कुछ खत्म कर दिया. हालात ऐसे हो गए कि मां को सड़क पर चूड़ियां बेचनी पड़ीं, और रमेश अपने पोलियोग्रस्त पैर के साथ उनके साथ बैठते थे.
पिता की मौत और 2 रुपये का सफर
रमेश ने 12वीं तक की पढ़ाई गांव में ही की थी. इसी दौरान उनके पिता का निधन हो गया. खबर मिलने पर वे तुरंत घर जाना चाहते थे, लेकिन जेब में 2 रुपये भी नहीं थे. बस का किराया देने तक के पैसे नहीं थे. उस वक्त उनके अंदर कुछ टूट गया, पर उसी दर्द ने उनके अंदर कुछ करने की आग जला दी.
मां बनीं सबसे बड़ी प्रेरणा
घर की सारी जिम्मेदारी मां पर आ गई थी. वह सुबह से शाम तक चूड़ियां बेचतीं और रमेश पढ़ाई में जुटे रहते. मां हमेशा कहतीं हैं कि बेटा, पढ़ाई मत छोड़ना. यही तेरा हथियार है. 12वीं के बाद रमेश ने टीचर बनने के लिए डिप्लोमा किया और गांव में बच्चों को पढ़ाने लगे. इससे घर का खर्च कुछ चला और उन्होंने बीए की डिग्री भी पूरी कर ली.
उधार लेकर शुरू हुई तैयारी
रमेश का सपना था IAS बनना. उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और पूरी मेहनत से UPSC की तैयारी में जुट गए. साल 2010 में उन्होंने पहली बार परीक्षा दी, लेकिन सफलता नहीं मिली. फिर उनकी मां ने गांव के लोगों से पैसे उधार लिए ताकि रमेश शहर जाकर पढ़ाई कर सकें. पुणे पहुंचकर उन्होंने बिना कोचिंग के तैयारी शुरू की. हर दिन 12 से 14 घंटे पढ़ाई करते, क्योंकि उन्हें पता था गरीबी को हराने के लिए मेहनत ही एकमात्र रास्ता है.
सपना हकीकत बना
कड़ी मेहनत और संघर्ष के बाद रमेश ने 2012 में UPSC परीक्षा पास कर ली. उन्हें 287वीं रैंक मिली और विकलांग कोटे में उनका चयन IAS ऑफिसर के रूप में हुआ.
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