होली विशेष: मुरैना के शेखपुर गांव में निभाई जा रही 500 साल पुरानी परंपरा, श्रृंगार कर परिक्रमा करती हैं महिलाएं
गांव में आपसी सौहार्द्र और प्राकृतिक आपदा से बचाव के लिए ग्रामीणों के बीच इस परंपरा को 500 साल पहले शुरू कराया गया।
By Nai Dunia Information Community
Publish Date: Solar, 24 Mar 2024 07:41 PM (IST)
Up to date Date: Mon, 25 Mar 2024 02:47 PM (IST)

कैलारस (नईदुनिया न्यूज)। रंगों के पर्व होली पर देश एवं प्रदेश में विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग परंपराओं का निर्वाहन होता है। रंग, अबीर, गुलाल और होलिका दहन तो लगभग सभी जगह होता है, लेकिन कैलारस कस्बे से मात्र 10 किलोमीटर दूर स्थित गांव शेखपुर में अनोखे ढंग से ही होली का पर्व ग्रामीण मनाते हैं। यहां पर होली दोपहर बाद गांव की सभी महिलाएं एकजुट होकर गांव की परिक्रमा करतीं हैं। खास बात यह है कि सभी महिलाएं होली के पर्व पर पूरी तरह से सजधज कर गांव की परिक्रमा करतीं हैं, जबकि आमतौर पर होली के दिन लोग पुराने कपड़ों का इस्तेमाल करते है। वहीं शेखपुर में महिलाएं दीपावली की तरह सजती-संवरती हैं।
इस परपंरा के बारे में बताया जाता है कि गांव में आपसी सौहार्द्र और प्राकृतिक आपदा से बचाव के लिए ग्रामीणों के बीच इस परंपरा को 500 साल पहले शुरू कराया गया। जिसे आज भी लोग पूरी तरह निभा रहे हैं। जो जिले में ही नहीं संभवत प्रदेश व देश में इकलोती परंपरा होगी। होली के पड़वा के दिन गांव की सभी बहू बेटियां सोलह श्रंगार कर पूरे गांव का परिक्रमा लगाती हैं। इस दौरान जहां बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद लिया जाता है।
वहीं मान्यता के अनुसार लोकगीतों के साथ-साथ पुरुष भी इस परिक्रमा में महिलाओं का साथ देते हैं। परिक्रमा के दौरान गांव में किसी की नई शादी होने पर उसके दरवाजे पर यह महिलाएं नाच-गाकर बहू को सगुन भेंट करती हैं। इस दिलचस्प परंपरा की कहानी गांव के ही सेवानिवृत्त पटवारी रामहेत त्यागी बताते हैं कि गांव में आपसी भाईचारा समृद्धि और खुशहाली के लिए इस परंपरा का निर्वाह गांव के ही प्रसिद्ध संत विजयानंद स्वामी द्वारा चालू कराया गया है। जो अभी भी चल रहा है। गांव की बेटी ज्योति त्यागी के अनुसार इस परंपरा का यह फायदा यह भी है कि सभी लोग इस त्यौहार पर मिल जाते हैं। हम सभी शादी सुदा बेटियां अपने गांव में इस परंपरा के अवसर पर आती हैं।
एक किवंदती यह भी:
शेखपुर गांव में इस ग्रामीण परिक्रमा की एक कहानी यह भी बताई जाती है कि गांव में आगजनी की घटनाएं बहुत होती थीं। इस समस्या से निजात के लिए गांव के लोगों ने काफी प्रयास किया। उसी समय गांव में एक फकीर आए। उन्होंने कहा कि होली की आग को आपको अगर गंगा में विसर्जित कर दिया जाए, तो यहां यह प्राकृतिक आपदा नहीं आएगी। लोगों ने इस बात पर विश्वास किया एवं होली की आग को संत विजयानंद के साथ जाकर सोरो गंगा में विसर्जित किया। उसके बाद गांव में अभी तक आगजनी या प्रकोप की घटनाएं नहीं हो पाई हैं।
गांव में होती है नाल उठाने की प्रतियोगिता
गांव की परिक्रमा से पूर्व पुरुष एक स्थान पर एकत्रित होकर फाग गायन परंपरागत वाद्य यंत्रों के साथ करते हैं। दोपहर बाद गांव के बाहर नाल उठाओ प्रतियोगिता होती है। जिसमें मुरैना के अलावा आगरा, धौलपुर, ग्वालियर, बसेड़ी धौलपुर, विजयपुर श्योपुर एवं अन्य जिलों से भी शौकीन पहलवान पहुंचते हैं। जहां 90 किग्रा से लेकर 130 किग्रा वजन तक की नाल उठाई जाती है। नाल उठाने के बाद उसे पीठ पर गर्दन के सहारे रखकर पूरे मैदान का चक्कर भी पहलवान को लगाना पड़ता है। नाल उठाने वाले पहलवानों को गांव वालों की तरफ से पुरस्कार दिए जाते हैं।

