पाकिस्तान में जो इकट्ठा करता था दहशत के लिए चंदा, उस आतंकी ने तोड़ा दम, जानें कौन था ये


आतंकी संगठन लश्कर ए तैयबा के फंडिंग नेटवर्क को खिदमत ए खलक नाम की संस्था के जरिए संभाल रहे लश्कर ए तैयबा के टॉप आतंकी अब्दुल अजीज की पाकिस्तान के बहावलपुर स्थित अस्पताल में लंबी बीमारी के बाद दर्दनाक मौत हो गई. लश्कर ए तैयबा का आतंकी अब्दुल अजीज लश्कर के डिप्टी अमीर सैफुल्लाह कसूरी का खास था. इसका काम आतंकी फंडिंग के लिए पैसा इकट्ठा करना था, जिसके लिए लश्कर ए तैयबा ने इसे खिदमत ए खलक नाम की संस्था का बहावलपुर में प्रमुख बनाया था. इसके सहारे लश्कर पाकिस्तान में आतंकवाद और लोगों की मदद के नाम पर चंदा इकट्ठा करती थी.

असल में आतंकी संगठन लश्कर ए तैयबा के गठन के बाद से ही ये पूरा आतंकी संगठन किसी ना किसी संस्था के सहारे आतंकी फंडिंग के लिए चंदा इकट्ठा करता रहता है. साल 2020 तक लश्कर ए तैयबा ने पाकिस्तान में चंदा ‘फलाह ए इंसानियत’ नाम की संस्था के नाम से इकट्ठा किया और भारत के खिलाफ आतंकवाद की फंडिंग की. इसके बाद भारत की कोशिशों के बाद फलाह ए इंसानियत को लश्कर ए तैयबा से जुड़ा मानकर प्रतिबंधित कर दिया था. ऐसे में FATF की ग्रे लिस्ट से निकालने के लिए ISI ने लश्कर से नई संस्था बनाने को कहा, जिसके बाद लश्कर ए तैयबा ने खिदमत ए खलक नाम की संस्था बनायी और रजिस्टर करवायी और बहावलपुर में इसका प्रमुख अब्दुल अजीज को बनाया गया.

लश्कर ए तैयबा का फंडिंग नेटवर्क 
सुनने में ऐसा लग सकता है कि अब्दुल अजीज लश्कर के लिए फंड इकट्ठा करने वाली संस्था का एक शहर का ही तो प्रमुख था, लेकिन लश्कर ए तैयबा की खिदमत ए खलक लाहौर के बाद सबसे ज्यादा चंदा बहावलपुर से ही इकट्ठा करती है. सूत्रों के मुताबिक लश्कर ए तैयबा का फंडिंग नेटवर्क आज कल 3 चरण में चलता है. पहला गाजा के नाम पर लोगों से सीधा चंदा इकट्ठा करके. दूसरा कश्मीर में दहशत फैलाने के नाम चंदा इकट्ठा करके और तीसरा बकरीद के दौरान जानवर की खाल लोगों से चंदे में लेकर उसे लेदर का काम करने वाली कंपनियों को बेच कर करोड़ों की कमाई होती है. इसके साथ ही इन तीनो तरह के चंदों को लश्कर ए तैयबा सीधा अपने या फिर जमात उद दावा के नाम से लोगों से नहीं लेती है, बल्कि ये तीनो तरह के चंदे खिदमत ए खलक के नाम से लिए जाते है. इसका सारा पैसा इसके अकाउंट में ही दिखाया जाता है. बाद में इस पैसे का इस्तेमाल आतंकवाद के लिए इस्तेमाल होने वाले हथियार से लेकर नए-नए आतंकवाद के कैंप और मरकज लश्कर ए तैयबा तक को बनवाने में होता है.

हर साल 20 करोड़ पाकिस्तानी रुपयों का चंदा
सूत्रों के मुताबिक अकेले बहावलपुर से ही लश्कर ए तैयबा को हर साल 20 करोड़ पाकिस्तानी रुपयों से ज्यादा कीमत का चंदा मिलता था, जिसे इकट्ठा करने का सारा जिम्मा अब्दुल अजीज ही उठाता था. अब्दुल अजीज लश्कर ए तैयबा के लिए कितना जरूरी था, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसके आखिरी दिनों में लश्कर ए तैयबा का वैश्विक आतंकी हाफिज अब्दुर रऊफ अस्पताल में उसके साथ था. आतंकी अब्दुर रऊफ फलाह ए इंसानियत का प्रमुख था, जो खिदमत ए खलक से पहले लश्कर ए तैयबा के लिए इसी तरह फंड इकट्ठा करने का काम करता था.

लश्कर ए तैयबा की दूसरी पीढ़ी का आतंकी
अब्दुल अजीज लश्कर ए तैयबा की दूसरी पीढ़ी का आतंकी है, जो हाफिज सईद की जगह आतंकी सैफुल्लाह कसूरी के खास लोगों में शुमार था. अब बड़ा सवाल है कि आखिर 4 साल के बाद भी खिदमत ए खलक पर अंतराष्ट्रीय प्रतिबंध क्यों नहीं लगे? जैसे फलाह ए इंसानियत पर लगे थे. असल में फलाह ए इंसानियत का सारा कामकाज कागजो पर ऐसे आतंकी संभालते थे, जो पहले से ही भारत और अमेरिका की तरफ से घोषित आतंकी थे. ऐसे में खिदमत ए खलक की स्थापना के बाद इसकी कमान ऐसे आतंकियों को दी गई, जो अच्छी संख्या में ना सिर्फ आतंकवाद के लिए फंडिंग इकट्ठा कर सकते थे, बल्कि भारत समेत अन्य अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसियों की नजरों से दूर थे, इसीलिए अब्दुल अजीज जैसे लोगों को आतंकवाद के लिए फंडिंग इकट्ठा करने वाली संस्था की कमान दी गई.

इसने मुरीदके स्थित लश्कर ए तैयबा के हेडक्वार्टर से ट्रेनिंग तो पायी, लेकिन इसे हथियार देकर हमला करवाने या फिर हमले की प्लानिंग करवाने के बजाए खिदमत ए खलक की कमान देने से पहले बहावलपुर स्थित लश्कर की मरकज अल अक्सा की कमान दे दी गई, जहां इसका काम कम उम्र के बच्चों को जिहाद का पाठ पढ़ाकर उनका ब्रेनवॉश करना था. 

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