Muharram 2025: मुहर्रम इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना होता है. लेकिन मुहर्रम की 9वीं और 10वीं तिथि को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है. इसे ‘आशूरा’ के नाम से जाना जाता है. इस साल आशूरा का दिन 6 या 7 जुलाई को हो सकता है. हालांकि चांद का दीदार होने के बाद ही सही तिथि की घोषणा की जाती है.
आशूरा के दिन को मुसलमान गम और मातम के रूप में मनाते हैं, रोजा रखते हैं, दुआ करते हैं और विशेष नमाज भी अदा की जाती है. लेकिन आशूरा का इतिहास केवल इतना ही नहीं बल्कि काफी गहरा है, जोकि कर्बला की जंग से जुड़ी हुई है. आइए जानते हैं आखिर आशूरा के दिन क्या हुआ था?
यौम-ए-आशूरा (Youm-E-Ashura)
हुसैन इब्न अली मुहम्मद के पोते थे, जिनका जन्म 620 ई. में हुआ था. हुसैन में अपने दादा के सभी गुण थे. बड़े होकर हुसैन भी दादा की तरह ही एक ऐसे नेता बन गए जो अपनी करुणा, बुद्धिमत्ता और ईमानदारी के लिए व्यापक रूप से जाने जाने लगे. जब मुहम्मद की मृत्यु हो गई तो कुछ समय बाद इस्लामी साम्राज्य खतरे में पड़ गया. हुसैन ने देखा कि खलीफा यजीद ने अपने हितों को ध्यान में रखते हुए शासन करना शुरू कर दिया और इस तरह से मुहम्मद की इस्लामी शिक्षाएं को धीरे-धीरे खत्म होने लगी.
मुहम्मद की तरह की हुसैन का भी समाज में बहुत सम्मान था और कई लोग उनके समर्थन में थे. आखिरकार हुसैन ने सामाजिक न्याय और इस्लाम के लिए अंतिम कदम उठाने का फैसला किया. इधर यजीद ने हुसैन को अपने नियमों का पालन करने के लिए मजबूर करने के लिए 30,000 की सेना भेजी. यजीद ने हुसैन को चेतावनी दी कि या तो वह उसकी बात मान ले या मर जाए.
हुसैन ने अपने सिद्धांतों पर अड़े रहने का फैसला किया और यजीद की आज्ञा मानने से इनकार कर दिया. इसके बाद शुरू हुई लड़ाई, जिसमें एक तरफ यजीद की 30,000 सेना थी और दूसरी और हुसैन और उसने 72 साथी. कर्बला की लड़ाई (Battle of Karbala) दोपहर के समय शुरू हुई और धीरे-धीरे हुसैन के साथियों की संख्या कम होने लगी. शाम ढलते-ढलते हुसैन बिल्कुल अकेले पड़ गए. थके, प्यासे और घायल होने के बावजूद भी उन्होंने हार नहीं मानी और आखिरी सांस तक अपने सिद्धांतों पर अड़िग रहे.
इसके बाद यजीद की सेना ने चारों ओर से घेर कर हुसैन पर हमला किया, जिससे हुसैन मारे गए. जिस दिन यजीद ने अपने आदमियों को हुसैन को मारने का आदेश दिया वह इस्लामी कैलेंडर के पहले महीने (मुहर्रम) का 10वां दिन था. इस दिन को आशूरा के दिन के रूप में जाना जाता है.
FAQ
Q. आशूरा के लिए कितने दिन का उपवास रखना चाहिए?
A. आशूरा के दिन कम से कम मुहर्रम के 10वें दिन का रोजा रखना चाहिए.
Q. शिया और सुन्नी मुसलमान मुहर्रम अलग-अलग तरीके से मनाते हैं?
A. हां, शिया और सुन्नी मुसलमान मुहर्रम अलग-अलग तरीके से मनाते हैं.
Q. क्या आशूरा पर रोजा रखना फर्ज है?
A. नहीं, मुहर्रम की 10वीं तारीख यानी आशूरा पर रोजा रखना फर्ज नहीं है, बल्कि सुन्नत है.
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