<div style="text-align: justify;">अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अब सिर्फ नेता नहीं बल्कि डैडी भी हैं. कम से कम ईरान और इजरायल के तो हैं हीं, क्योंकि उन्हें ये उपाधि किसी और ने नहीं बल्कि नाटो चीफ मार्क रुटे ने दी है. अब नाटो बोल रहा है, तो मानना ही पड़ेगा. तो अमेरिका का राष्ट्रपति भवन भी ट्रंप को डैडी मान रहा है. जब नाटो समिट से ट्रंप अमेरिका वापस लौटे हैं तो व्हाइट हाउस कह रहा है कि डैडी इज होम, लेकिन डैडी ने होम लौटने से पहले नाटो समिट में ईरान को लेकर जो कहा है, उससे कन्फ्यूजन और बढ़ गई है और समझ में ही नहीं आ रहा है कि आखिर ट्रंप ईरान से चाहते क्या हैं. </div>
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<div style="text-align: justify;">अभी चंद दिनों पहले तक ईरान अमेरिका के सबसे बड़े दुश्मनों में से एक था और तभी तो इजरायल के ऑपरेशन राइजिंग लॉयन के समर्थन में अमेरिका ने भी ईरान के खिलाफ ऑपरेशन मिड नाइट हैमर लॉन्च कर दिया. इसके तहत अमेरिका के बंकर बस्टर बॉम्ब ने ईरान के तीन परमाणु संयंत्रों फोर्डो, नतांज और इस्फहान पर बम गिराकर उन्हें तबाह करने का दावा किया, जब सीजफायर हो चुका है और जंग अभी खत्म हो गई है तो ट्रंप अब ईरान की तारीफों के पुल बांध रहे हैं. जंग में बहादुरी दिखाने की बात कर रहे हैं, उसे अच्छा कारोबारी बता रहे हैं और ईरान को लेकर हर वो बयान दे रहे हैं, जैसा बयान एक बिजनेसमैन को देना चाहिए.<br /><br />नाटो समिट के दौरान ट्रंप ने ईरान की तारीफ करते हुए कहा, ‘ईरान ने जंग में बहादुरी दिखाई. वो तेल का कारोबार करते हैं. जंग से हुए नुकसान की भरपाई के लिए उन्हें तेल बेचना चाहिए. अगर ईरान का तेल चीन भी खरीदता है तो भी अमेरिका को कोई दिक्कत नहीं है. ‘<br /><br />ट्रंप के इस बयान से साफ है कि वो एक साथ अपने दो दुश्मनों पर रहमदिल हो गए हैं. पहले ईरान पर और फिर चीन पर, जिनके रिश्ते किसी से छिपे नहीं हैं और ट्रंप का यही बयान कन्फ्यूज कर रहा है कि आखिर ट्रंप चाहते क्या हैं. नाटो समिट में जाने से ठीक पहले दिए गए एक बयान से शायद इसका जवाब मिल सकता है, जिसमें ट्रंप ने कहा था कि चीन अब ईरान से तेल खरीद सकता है, लेकिन उम्मीद है कि चीन अमेरिका से भी तेल का कारोबार करेगा और अमेरिका भी चीन को तेल बेच पाएगा. <br /><br />सवाल है कि ट्रंप का मन बदला क्यों. क्या इस वजह से कि अमेरिका के बंकर बस्टर बम भी ईरान के परमाणु संयंत्रों का कुछ बिगाड़ नहीं पाए और इस जंग के दौरान ट्रंप को भी ईरान की ताकत का एहसास हो गया. या फिर ट्रंप को ये लगा कि इजरायल से दोस्ती निभाने के चक्कर में अमेरिका ईरान के साथ गलत पंगे में पड़ गया और अब उसका इससे निकलना जरूरी है.</div>
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<div style="text-align: justify;">ये दोनों ही वजहें अपनी-अपनी जगह पर सही हैं, क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता तो फिर ट्रंप हमले के एक हफ्ते के अंदर-अंदर ईरान से मीटिंग के लिए इतने बेचैन नहीं होते, जितनी बेचैनी उन्होंने जाहिर की है. अब इस मीटिंग का नतीजा क्या निकलेगा, ये तो ईरान को ही तय करना है जो कह रहा है कि वो अपना परमाणु कार्यक्रम रोकने वाला नहीं है. बाकी ये मीटिंग कब होगी और कहां होगी और इसमें क्या होगा, ये सब जानने के लिए करना होगा इंतजार. </div>
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