इजरायल Vs ईरान, दो दोस्त, जिन्हें अमेरिका ने बना दिया जानी दुश्मन!


Israel Vs Iran: इजरायल ने ईरान पर हमला किया तो ईरान ने इजरायल पर. और अब दोनों एक दूसरे पर हमले कर रहे हैं. एक दूसरे के लोगों को मार रहे हैं. दोनों ही देशों में तबाही की तस्वीरें लोगों के जेहन में तैरने लगी हैं और इन तस्वीरों के आधार पर दुनिया भर के देश और दुनिया भर के लोग अपने-अपने पाले चुनकर खड़े हो गए हैं. पश्चिमी देश इजरायल के साथ खड़े हैं तो मुस्लिम देश ईरान के साथ, लेकिन इन दोनों देशों के बीच आखिर ये लड़ाई है क्यों. क्या इजरायल और ईरान के बीच की लड़ाई की वजह उन देशों का अलग-अलग धर्म है. क्या दोनों देश एक दूसरे पर कब्जा करना चाहते हैं. क्या दोनों देशों के बीच की लड़ाई इस वजह से है कि ईरान परमाणु बम बना रहा है. या फिर ये लड़ाई असल में उस कच्चे तेल की वजह से है, जिसमें लड़ने वाले तो ईरान और इजरायल हैं, लेकिन इस खेल का खिलाड़ी कोई और है. आखिर क्या है इस लड़ाई की असली कहानी, बताएंगे विस्तार से और बताएंगे कि जो इजरायल और ईरान कभी एक दूसरे के दोस्त हुआ करते थे, जो ईरान कभी इजरायल से ही हथियार खरीदता था, जो इजरायल अपने बनने के बाद से ही दुनिया में अलग-थलग पड़ा था तो ईरान ने मान्यता देकर उसकी औकात बढ़ा दी थी, वही इजरायल और ईरान अब इस कदर क्यों जंग में उलझे हुए हैं कि दुनिया तीसरे विश्वयुद्ध की तरफ बढ़ती जा रही है.  

लड़ाई केवल बॉर्डर की नहीं

मिडिल ईस्ट का नक्शा देखिए. और इजरायल को इस नक्शे का केंद्र मानकर देखिए तो आधी बात शायद यूं ही समझ में आ जाएगी. इजरायल की सीमाएं जिन देशों  साथ लगती हैं उनमें ईरान तो है ही नहीं. इजरायल का उत्तरी हिस्सा लेबनान से सटा है. उत्तरी पूर्वी हिस्से में सीरिया है. पूरब में जॉर्डन है. दक्षिण पश्चिम में मिस्त्र है. पश्चिम में मेडिटेरियन सी यानी कि भूमध्य सागर है. फिलिस्तीन वाले हिस्से गजा पट्टी और वेस्ट बैंक को छोड़ भी दें तो इजरायल का दक्षिणी हिस्सा लाल सागर और पूर्वी हिस्सा डेड सी यानी कि मृत सागर से लगता हुआ है. अगर लड़ाई बॉर्डर भर की होती तो इजरायल अपने पड़ोसियों से लड़ता. वैसे लड़ता है लेकिन उतना नहीं जितना ईरान से. तो शायद एक सवाल का जवाब तो मिल गया होगा कि इजरायल और ईरान की लड़ाई की वजह उनका ज़मीन विवाद तो नहीं है जैसा रूस-यूक्रेन में या फिर भारत-पाकिस्तान में या फिर भारत-चीन में होता रहता है.

क्या धर्म की वजह से है विवाद?

अब दूसरी बात कि फिर ईरान कहां है और इजरायल से कितनी दूर है. तो फिर से नक्शा देखिए. दिख रहा होगा कि इजरायल और ईरान के बीच दो बड़े देश हैं. सीरिया और इराक. अगर दूरी से लिहाज से देखें तो ईरान की राजधानी तेहरान से इजरायल की राजधानी तेल अबीब की दूरी दो हजार किलोमीटर से भी ज्यादा की है और दोनों को एक दूसरे पर हमला करने के लिए या तो जॉर्डन और इराक को पार करना होगा या फिर लेबनान, सीरिया और इराक को. और दोनों ही देश आपसी लड़ाई के लिए जॉर्डन, लेबनान, सीरिया और इराक का इस्तेमाल कर ही रहे हैं. इसलिए लौटते हैं दूसरे सवाल पर कि क्या इजरायल और ईरान का झगड़ा धर्म की वजह से है.

इजरायल का बनना ही सबसे बड़ी लड़ाई की जड़!

इस एंगल को आंशिक तौर पर सही माना जा सकता है. और उसके लिए भी आपको मिडिल ईस्ट का नक्शा ही देखना होगा. इस नक्शे पर आपको जो देश दिख रहे हैं उनमें एक तरफ इजरायल तो है ही, बाकी बहरीन, ईरान, इराक, फिलिस्तीन, जॉर्डन, कुवैत, लेबनान, ओमान, कतर, सऊदी अरब, सीरिया, यूएई और यमन हैं. कुल 14 देश. बाकी दो और देशों तुर्की और लीबिया को भी मिडिल ईस्ट का ही हिस्सा माना जाता है. तो हो गए कुल 16 देश. और इन 16 देशों में से 15 देश तो मुस्लिम हैं, जबकि इकलौता यहूदी देश है इजरायल. और इस इजरायल के बनने का जो इतिहास है, वही झगड़े की सबसे बड़ी जड़ है.

कैसे बना था इजरायल?

और इसकी शुरुआत होती है दूसरे विश्वयुद्ध के खात्मे के बाद. जब दूसरा विश्वयुद्ध खत्म हुआ तो ब्रिटेन ने भी अपने उपनिवेश समेटने शुरू किए. और तब अरब लोगों को मुक्ति मिली. उन्हें अपने लिए नया देश चाहिए था. वहीं दुनिया में यहूदियों पर भी अत्याचार हुए थे. विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद उन्हें भी देश चाहिए था ताकि वो शांति से रह सकें. मुसीबत तब शुरू हुई, जब दोनों ही समुदायों यानी कि मुस्लिमों और यहूदियों ने ब्रिटेन से आजाद हुए ज़मीन के उस बड़े टुकड़े को अपने देश के तौर पर बनाना शुरू किया. और यहीं से मुस्लिमों और यहूदियों के बीच बड़ा झगड़ा शुरू हो गया.

जब इजरायल बना तब ईरान नहीं था दुश्मन

तब तक दुनिया के देशों के बीच शांति स्थापित करने के लिए यूनाइटेड नेशंस बन चुका था. उसने 1947 में प्रस्ताव दिया कि ज़मीन के उस बड़े टुकड़े को दो हिस्सों में बांट दिया जाए. 1948 में यूएन की पहल पर बंटवारा हो गया और एक नया देश बना इजरायल. यहूदियों का देश. दुनिया का इकलौता यहूदी मुल्क. जो गैर यहूदी थे, वो दूसरे टुकड़े की तरफ आ गए. उनकी आबादी थी करीब 13 लाख. उसे फिलिस्तीन कहा गया. लेकिन तब कुछ मुस्लिम देशों को इजरायल का बनना रास नहीं आया. शुरुआत में इजरायल के विरोधी इजिप्ट यानी कि मिस्त्र, जॉर्डन, इराक और सीरिया ही थे. बाकी फिलिस्तीन तो था ही. तो इजरायल के बनने के साथ ही इजिप्ट, जॉर्डन, इराक और सीरिया ने मिलकर इजरायल पर हमला कर दिया. तर्क देने वाले तर्क देते हैं कि हमला इसलिए हुआ था, क्योंकि इजरायल ने मुस्लिमों पर अत्याचार किया था और उन्हें भागने पर मज़बूर किया था. दूसरा तर्क ये भी आता है कि इजरायल को ये सभी मुस्लिम देश विदेशी शासन का नमूना मानते थे, इसलिए हमला किया था. तर्क खैर जो भी सही हो, लेकिन नतीजा ये हुआ कि सारे देश मिलकर भी इजरायल का कुछ बिगाड़ नहीं सके. लेकिन अब वो नए बने देश इजरायल के घोषित दुश्मन बन चुके थे. और गाहे-बगाहे इन देशों के साथ इजरायल की लड़ाई चलती ही रहती थी, जो कभी-कभी बहुत बड़ी हो जाया करती थी. 1967 के सिक्स डे वॉर के दौरान इजरायल के खिलाफ हमले में यमन भी शामिल था. तो वो भी इजरायल का दुश्मन हो गया.

1979 की इस्लामिक क्रांति ने खामेनेई को बना दिया मसीहा

लेकिन इस दुश्मनी में तब भी न तो ईरान था, न लेबनान, न इराक और न ही तुर्की. तब भी ये इजरायल के भले ही दोस्त नहीं थे, लेकिन दुश्मन भी नहीं थे. इनकी दुश्मनी की शुरुआत होती है ईरान की क्रांति से. 1979 में ईरान में शाह रजा पहलवी का शासन खत्म हुआ और 1 फरवरी, 1979 को अयातुल्ला  खामेनेई ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता के तौर पर देश वापस लौटे. उनके स्वागत के लिए तेहरान की सड़कों पर 50 लाख से भी ज्यादा लोग इकट्ठा हो गए. अयातुल्ला खामेनेई के लौटने के बाद ईरान में जनमत संग्रह हुआ और फिर ईरान को इस्लामिक देश घोषित कर दिया गया. इस्लामिक मुल्क घोषित होने के साथ ही खामेनेई ने इज़रायल के अस्तित्व पर सवाल उठा दिए. इज़रायल से संबंध तोड़ लिए. उसके पासपोर्ट को खारिज कर दिया और तेहरान में इजरायल के दूतावास को ज़ब्त कर कहा कि देश सिर्फ फ़िलिस्तीन है इजरायल नहीं. तब खामेनेई ने कहा कि इज़रायल मुस्लिमों के लिए छोटा शैतान है जबकि बड़ा शैतान अमेरिका है.

कभी इजरायल से हथियार खरीदता था ईरान 

तो इस तरह से इजरायल को एक और दुश्मन देश मिल गया ईरान. लेकिन ईरान की दुश्मनी से इजरायल को नुकसान था. और नुकसान ये था कि ईरान इज़रायल से बड़े पैमाने पर हथियार खरीदता था. इससे ईरान को हथियार मिलते थे और इजरायल को पैसे. लेकिन दुश्मनी शुरू हुई तो दोनों ही देशों को नुकसान होना शुरू हो गया. इस बीच सद्दाम हुसैन के नेतृत्व वाले इराक को लगा कि इस्लामिक क्रांति की वजह से ईरान कमजोर हुआ है, तो हमला करके उसके एक हिस्से पर इराक अपना कब्जा कर सकता है. तो इराक ने ईरान पर हमला कर दिया. ऐसे में ईरान ने फिर से इजरायल से मदद मांगी. और इजरायल को भी हथियार बेचकर पैसे कमाने थे. तो इजरायल ने ईरान को हथियार बेचे जो उसने इराक के खिलाफ इस्तेमाल किया. अब ईरान चूंकि हथियार खरीद रहा था, पैसे दे रहा था. तो इजरायल ने ईरान की थोड़ी और मदद की. और इजरायल की एयरफोर्स ने इराक के इकलौते परमाणु संयंत्र को बमबारी करके तबाह कर दिया. इस तरह से इजरायल ने इराक को भी अपना दुश्मन बना लिया.

जब इराक ने कर दिया था ईरान पर हमला…

ये वही दौर था, जब फिलिस्तीन भी अपनी आजादी की लड़ाई लड़ रहा था. और इस लड़ाई में फिलिस्तीन को लेबनान का भी साथ मिल गया था, क्योंकि इजरायल के गठन के दौरान जब लाखों फिलिस्तीनियों को विस्थापित होना पड़ा था, तो उनमें कई लोग भागकर लेबनान में भी शरण लिए हुए थे. उनमें इजरायल के खिलाफ गुस्सा था. और उस गुस्से को निकालने के लिए उन्हें किसी का साथ चाहिए था. तो फिलिस्तीन ने लेबनान के उन शरणार्थियों का साथ दिया. बाकी ईरान तो था ही. क्योंकि भले ही उसने इराक के खिलाफ जंग के लिए इजरायल से हथियार खरीदे थे लेकिन था तो वो इजरायल का दुश्मन ही. और ऐसे में 1982 में ईरान की सेना के करीब 1500 लड़ाकों के साथ मिलकर लेबनान के उन शरणार्थियों ने एक फौज बनाई और इसे नाम दिया हेजबुल्लाह. तो इस तरह से लेबनान और हेजबुल्लाह इजरायल के दुश्मन बन गए. और वही दुश्मनी आज तक कायम है.

कच्चे तेल के भंडार की वजह से मिडिल ईस्ट में लड़ाई

बाकी इजरायल के जितने भी दुश्मन देश हैं, वहां पर तेल का भंडार है. कच्चे तेल का भंडार.और सबसे ज्यादा तेल है ईरान और इराक के पास. तो इस तेल भंडार पर दुनिया का हर देश कब्जा करना चाहता है. वो बात चाहे अमेरिका की हो या फिर किसी और की. लिहाजा हमको-आपको भले ही ये दिखता हो कि इजरायल अपने सभी दु्श्मनों से अकेला लड़ रहा है, लेकिन ऐसा है नहीं. इस लड़ाई में अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस समेत दुनिया के हर वो देश इज़रायल के साथ खड़े हैं, जिन्हें तेल चाहिए. लिहाजा कहने वाले कहते रहें कि यहूदी मुल्क इजरायल इस्लामिक मुल्कों से अकेले लड़ाई लड़ रहा है लेकिन असल में खेल इस्लाम बनाम यहूदी का नहीं बल्कि तेल का है. और तेल के खेल में दुनिया तबाह हो रही है. क्योंकि अगर लड़ाई सिर्फ इस्लाम बनाम यहूदी की होती तो दुनिया की करीब 13 फीसदी इस्लामिक आबादी वाला इंडोनेशिया भी इजरायल का दुश्मन होता और करीब 9 फीसदी आबादी वाला बांग्लादेश भी. पूरी दुनिया की तकरीबन 10 फीसदी मुस्लिम आबादी भारत में भी है, लेकिन वो न तो इजरायल का दुश्मन है और न ही फिलिस्तीन का. और रही बात ईरान, इराक, लेबनान, यमन, मिस्र और दूसरे इज़रायल के दुश्मनों की, तो वो सिर्फ इजरायल के ही दुश्मन नहीं हैं बल्कि अमेरिका के भी दुश्मन हैं. और अमेरिका से उनकी दुश्मनी की वजह इजरायल नहीं बल्कि उनके पास का वो अकूत तेल भंडार है, जिसपर अमेरिका की नजर है.

इजरायल ने क्यों किया ईरान पर हमला?

अब रही बात हालिया हमले और उसकी वजह की, तो ईरान हमेशा से परमाणु हथियार बनाना चाहता है. और उसकी भी वजह वही है, जो दुनिया के और तमाम परमाणु संपन्न देशों की है. खुद की सुरक्षा, अपने तेल भंडार की सुरक्षा, इजरायल और उसके तमाम सहयोगी पश्चिमी देशों से सुरक्षा. इसके लिए ईरान को परमाणु बम चाहिए, लेकिन उसके दुश्मन उसे रोकने की हर मुमकिन कोशिश करते रहते हैं. और हालिया लड़ाई भी उसी का नतीजा है, क्योंकि इजरायल ने ईरान में जो तबाही मचाई है उसमें सबसे ज्यादा नुकसान न्यूक्लियर प्लांट्स को ही हुआ है. 

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