लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराये जाने के मसले पर लंबे समय से बहस चल रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस विचार का समर्थन कर इसे आगे बढ़ाया है। किसी भी स्वस्थ एवं निष्पक्ष चुनाव लोकतंत्र की आधारशिला होते हैं। भारत जैसे विशाल देश में निर्बाध रूप से निष्पक्ष चुनाव कराना हमेशा से एक चुनौती रहा है। अगर हम देश में होने चुनावों पर नजर डालें तो पाते हैं कि हर वर्ष किसी न किसी राज्य में चुनाव होते रहते हैं। चुनावों की इस निरंतरता के कारण देश हमेशा चुनावी मोड में रहता है। इससे न केवल प्रशासनिक और नीतिगत निर्णय प्रभावित होते हैं बल्कि देश के खजाने पर भारी बोझ भी पड़ता है। इस सबसे बचने के लिये नीति निर्माताओं ने लोकसभा तथा राज्यों की विधानसभाओं का चुनाव एक साथ कराने का विचार बनाया।ङ्ग इस मसले पर चुनाव आयोग, नीति आयोग, विधि आयोग और संविधान समीक्षा आयोग विचार कर चुके हैं। अभी हाल ही में विधि आयोग ने देश में एक साथ चुनाव कराये जाने के मुद्दे पर विभिन्न राजनीतिक दलों, क्षेत्रीय पार्टियों और प्रशासनिक अधिकारियों की राय जानने के लिये तीन दिवसीय कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया था। इस कॉन्फ्रेंस में कुछ राजनीतिक दलों ने इस विचार से सहमति जताई, जबकि ज्यादातर राजनीतिक दलों ने इसका विरोध किया। ङ्गएक देश एक चुनाव कोई अनूठा प्रयोग नहीं है, क्योंकि १९५२, १९५७, १९६२, १९६७ में ऐसा हो चुका है, जब लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव साथ-साथ करवाए गए थे। यह क्रम तब टूटा जब १९६८-६९ में कुछ राज्यों की विधानसभाएँ विभिन्न कारणों से समय से पहले भंग कर दी गई। आपको बता दें कि १९७१ में लोकसभा चुनाव भी समय से पहले हो गए थे। जाहिर है जब इस प्रकार चुनाव पहले भी करवाए जा चुके हैं तो अब करवाने में क्या समस्या है ? ङ्गएक देश एक चुनाव की अवधारणा में कोई बड़ी खामी नहीं है, किन्तु राजनीतिक पार्टियों द्वारा जिस तरह से इसका विरोध किया जा रहा है उससे लगता है कि इसे निकट भविष्य लागू कर पाना संभव नहीं है। इसमें कोई दो राय नहीं कि विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत हर समय चुनावी चक्रव्यूह में घिरा हुआ नजर आता है। चुनावों के इस चक्रव्यूह से देश को निकालने के लिये एक व्यापक चुनाव सुधार अभियान चलाने की आवश्यकता है। इसके तहत जनप्रतिनिधित्व कानून में सुधार, कालेधन पर रोक, राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण पर रोक, लोगों में राजनीतिक जागरूकता पैदा करना शामिल है जिससे समावेशी लोकतंत्र की स्थापना की जा सके।ङ्गयदि देश में ‘एक देश एक कर’ यानी डढ लागू हो सकता है तो एक देश एक चुनाव क्यों नहीं हो सकता? अब समय आ गया है कि सभी राजनीतिक दल खुले मन से इस मुद्दे पर बहस करें ताकि इसे अमलीजामा पहनाया जा सके।
