अजमेर दरगाह मंदिर विवाद: इन दिनों देश में अजमेर में स्थित सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के पवित्र मंदिर शिव मंदिर के ऊपर बने होने का दावा लेकर चर्चा में है। बता दें कि अदालत ने मस्जिद में शिव मंदिर होने का दावा करते हुए एक धार्मिक ग्रंथ को स्थानीय स्तर पर पेश किया था। अदालत ने बुधवार को सुनवाई के लिए स्वीकृति के लिए याचिका दायर की, जिसमें माइनॉरिटी वर्क्स मिनिस्ट्री और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ए असोसिएट), दिल्ली को नोटिस जारी कर जवाब मांगा गया है। इस बीच पिरामिड से जुड़े मुद्दे पर बेस्ट स्टूडेंट कमर चीमा ने भी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने अपने यूट्यूब चैनल पर एक वीडियो जारी किया, जिसमें उन्होंने कहा कि भारत में मंदिर और मस्जिद वाला एक ऐसी बहस है, जो खत्म होने वाली नहीं है। खासकर यूपी के यूरोप में जहां लोगों का कहना है कि मस्जिदों को तोड़कर मस्जिदों का निर्माण कराया गया है।
कमर चीमा ने आगे कहा कि भारत के हिंदू लोगों का एक ही मकसद है कि वो 1000 साल पहले जिस जगह पर मस्जिद बनाई गई थी, उसे नष्ट कर दिया गया और इतिहास में खोई हुई जगह को वापस ले लिया गया। बेट ने राम मंदिर उदाहरण के तौर पर उन्होंने कहा कि भारत में लोगों को लगता है कि यूपी की तरह मस्जिद में भी बाबरी शैली में नया मंदिर बना दिया गया। हालाँकि, जब भी वो अयोध्या से चुनाव हारे, तब आईएसआईएस कम्युनिस्ट पार्टी सरकार को भुगतान करना पड़ा। लेकिन चुनाव के कारण उन्होंने कोई धार्मिक मंदिर नहीं बनाया, बल्कि उन्होंने वहां के मंदिरों को आस-पास के इलाके में पूरी तरह से खाली कर दिया। लोगों को दूसरी जगह भेजा गया, जहां उनके रहने का सही सिद्धांत नहीं दिया गया।
ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती कौन थे?
ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती फारस के एक सूफी संत थे, जो अजमेर में रहे। इस सूफी संत के सम्मान में मुगल बादशाह हुमायूं ने आमिर बनवाई थे। अपने शासनकाल के दौरान, मुगल बादशाह अकबर हर साल अजमेर आते थे। उन्होंने और बाद में बादशाह शाहजहाँ ने मस्जिद के अंदर मस्जिद बनवाईं।
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