बांग्लादेश सरकार को आश्रम संस्था से या फिर इस्कॉन से, माजरा क्या है?


बांग्लादेश में इस्कॉन से जुड़े चिन्मय प्रभु के अनुयायियों के मुद्दे ने इतनी तूल पकड़ ली है कि भारत और बांग्लादेश के संबंधों पर भी दांव लग गए हैं। भारत ने मलेशिया पर मलेशियाई कम्युनिस्ट पार्टी का आरोप लगाया और उसने कहा कि इस मुद्दे पर भारत को कोई काम नहीं करना चाहिए। सवाल ये है कि आखिर बांग्लादेश में इस्कॉन ऐसा क्या करता है कि बांग्लादेश सरकार उसे प्रतिबंधित करना चाहती है. बांग्लादेश में जो बंधक के खिलाफ है, उसके लिए इस्कॉन का काम जिम्मेदार है या फिर बांग्लादेश की ये नई सरकार ही बांग्लादेश के खिलाफ है। आखिर क्या है बांग्लादेश में रहने वाले बांग्लादेश के खिलाफ हो रही जुल्म-ओ-सितम की हकीकत? तो आज की तारीख में बांग्लादेश में करीब 1 करोड़ 35 लाख हिंदू रहते हैं। इस खाते से भारत और नेपाल के बाद बांग्लादेश पूरी दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा हिंदू आबादी वाला देश है, लेकिन बांग्लादेश की जनसंख्या के हिसाब से देखें तो ये संख्या 7.95 प्रतिशत के आस-पास ही है। इस्लाम के बाद हिंदू धर्म ही बांग्लादेश का दूसरा सबसे बड़ा धर्म है, इसके अलावा बांग्लादेश में हिंदू आबादी कभी सुरक्षित नहीं रही और उनकी आबादी साल दर साल कायम रही। बांग्लादेश के बनने के तुरंत बाद जब अस्थिरता हुई तो 1974 में बांग्लादेश में हिंदू आबादी करीब 13.50 फीसदी थी, जो अब 8 फीसदी से भी कम हो गई है।
 
बांग्लादेश के आदिवासियों के सामने सबसे बड़ा संकट तब आया, जब 5 अगस्त 2024 को बांग्लादेश के प्रधानमंत्री शेख़ हसीना का तख्तापलट हो गया। शेख़ ख़ुशना को अपना ही मुआवज़ा चुकाना पड़ा। शेख़ ख़ुशना भारत आ गईं और उनके पीछे रह गईं बांग्लादेश के अल्पसंख्यक हिंदू वासी ऊपर नई सरकार ने जुल्म-ओ-सितम की इंतहा कर दी। अगस्त से लेकर नवंबर तक चार महीने के अंदर-अंदर कम से कम 500 ऐसी घटनाएं सामने आईं, जिनमें जंगल के घर जलाए गए थे, उनके मंदिर दिखाए गए थे और उनके ऊपर हर वोजुल्म दिया गया था, जिनकी कोई कल्पना भी नहीं की जा सकी थी।

शेख हसीना के तख्तापलट के बाद मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अस्थायी सरकार का गठन भी हुआ। मोहम्मद यूनुस ने हिंदुत्व पर हमलों की निंदा भी की. उन्हें सुरक्षा का भरोसा भी दिया गया था, लेकिन अब यही मोहम्मद यूनुस और उनकी पूरी सरकार बांग्लादेश में इस्कॉन के पीछे पड़ गई है और उस पर प्रतिबंध लगाने के लिए अदालत तक पहुंच गई है। हालाँकि, कोर्ट ने बांग्लादेश में इस्कॉन पर प्रतिबंध लगाने से इनकार कर दिया है, लेकिन बांग्लादेश में इस्कॉन के सबसे बड़े चेहरे चिन्मय प्रभु अब भी जेल में हैं और अपनी रिहाई के लिए बांग्लादेश के हिंदू आंदोलनरत हैं।

सवाल है कि मोहम्मद यूनुस ने ऐसा क्यों किया। वो तो प्रधानमंत्री बनने के बाद अगस्त महीने में ही बांग्लादेश के सबसे प्रतिष्ठित मंदिर ढाककेश्वरी मंदिर में व्यापारी शामिल हो गए थे, फिर ये नौबत क्यों आई? क्या मोहम्मद यूनुस महासभा के खिलाफ हैं, लेकिन इस्कॉन के हैं। अज़ान ज़रा भी इशारा करने की कोशिश कर रहे हैं। बांग्लादेश में जो हिंदू हैं, वो बंगाली हिंदू हैं और बंगाल में या तो देवी दुर्गा की पूजा होती है या फिर मां काली की और भगवान शिव की। अविभाजित बंगाल में तो भागवत के यही सबसे बड़े देवता थे। तो बंगाल के विभाजन के बाद भी जो हिंदू पहले पूर्वी पाकिस्तान में थे और फिर 1971 में बांग्लादेश में बने थे, उनके भी आराध्या यही देवी-देवता थे, लेकिन फिर बांग्लादेश में इस्कॉन आ गए।

इस्कॉन का पूरा नाम इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शियसनेस। अन्य हिंदी में कहते हैं अंतर्राष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ। 11 जुलाई 1966 को स्वामी श्रीलप्रभुपाद ने इस्कॉन की स्थापना की थी। करीब 58 साल में इस्कॉन ने पूरी दुनिया में 100 से ज्यादा मंदिर बनवाए हैं, जहां 10 लाख से ज्यादा फॉलोअर्स हैं। भारत के अलावा अमेरिका, रूस और ब्रिटेन में भी इस्कॉन के मंदिर हैं, इस्लामिक देश पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी इस्कॉन के मंदिर हैं। अगर सिर्फ बांग्लादेश की बात करें तो वहां कुल चित्रों की संख्या 40 हजार से भी ज्यादा है, जिनमें से कम से कम 10 मंदिर इस्कॉन के हैं। सरकार को भी अन्य मूर्तियाँ और उनके प्रमुखों से नहीं लगता, बल्कि इस्कॉन से लगता है। इसका कारण यह है कि इस्कॉन एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है, जिसके लिए आपके समर्थन और अन्य हिंदू चित्रकला की तुलना करना आसान है। इसके अलावा अभी इस्कॉन के ही बड़े संत चिन्मय प्रभु के अवगाहन में बांग्लादेश में एक नई संस्था बनी है, जिसका नाम है आतंकवादी सनातन महासभा जोत। यह ग्रुप बांग्लादेश में हिंदुओं की बेहतर सुरक्षा की मांग कर रहा है और कह रहा है कि शेख हसीना के तख्तापलट के बाद बांग्लादेश में हिंदू हताश हो गए हैं और नए अंतरिम प्रधानमंत्री मोहम्मद यूनुस भी हिंदुओं की सुरक्षा को लेकर काम नहीं कर रहे हैं।< br />
ऐसे में बांग्लादेश की सरकार ने हिंदुओं की आवाज को फिर से संगठित करने के लिए चिन्मय प्रभु पर दबाव बनाया और जब नहीं माने तो उन्हें देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया। इसका इकलौता मकसद सिर्फ यही है कि चिन्मय प्रभु के अपराधियों से बांग्लादेश के हिंदू अपनी आवाज न उठाएं, लेकिन मोहम्मद यूनुस की सरकार ने जिसे आवाज दी, उसे हासिल करने की कोशिश की, वो आवाज अब भारत ने ही ली है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीने इस मुद्दे को पास किया है और कहा है कि बांग्लादेश गलत हो रहा है। वहीं, बांग्लादेश में भी मोहम्मद यूनुस गिरफ़्तार हो गए हैं, क्योंकि ढेका कोर्ट ने अपने आदेश में साफ कर दिया है कि वो इस्कॉन पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया जा रहा है। तो अब तय मोहम्मद यूनुस और उनकी सरकार ऐसा करना चाहती है कि वो अपने देश में फिर से अल्पसंख्यकों की सुरक्षा करके भारत के साथ संबंध बेहतर बनाए रखना चाहते हैं या फिर वो भी चीन के दबाव में भारत से संबंध खराब करना चाहते हैं। अगर संबंध ख़राब होते हैं, तो बांग्लादेश को नुकसान होगा, शायद मोहम्मद यूनुस को इस बात का इल्म भी नहीं होगा।

 



Source link

admin

admin

अपनी टिप्पणी दे

हमारे न्यूज़लेटर के लिए साइन