ग्राम कोहिनपारा निवासी अरुण मरकाम, जो वर्ष 2018 में जिला बीजापुर के उसूर पुलिस थाने में उपनिरीक्षक (सब-इंस्पेक्टर) के पद पर पदस्थ थे, उन्होंने नक्सल विरोधी आपरेशन में अद्वितीय साहस का परिचय दिया।
By Yogeshwar Sharma
Publish Date: Thu, 21 Nov 2024 12:46:33 AM (IST)
Up to date Date: Thu, 21 Nov 2024 12:46:33 AM (IST)
HighLights
- कोर्ट ने गृह विभाग को भेजा नोटिस, याचिकाकर्ता के अभ्यावेदन का नियमानुसार निराकरण करने के दिए निर्देश
- नक्सल आपरेशन में बहादुरी का किया था प्रदर्शन
- साथियों को मिला प्रमोशन, लेकिन याचिकाकर्ता को नहीं
नईदुनिया न्यूज, बिलासपुर। हाई कोर्ट ने नक्सल आपरेशन के दौरान बहादुरी दिखाने वाले सब-इंस्पेक्टर अरुण मरकाम की याचिका पर सुनवाई करते हुए गृह विभाग के सचिव को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने पुलिस रेगुलेशन 1861 के रेगुलेशन एक्ट 70 के तहत याचिकाकर्ता के अभ्यावेदन का उचित निराकरण करने का आदेश दिया है।
ग्राम कोहिनपारा निवासी अरुण मरकाम, जो वर्ष 2018 में जिला बीजापुर के उसूर पुलिस थाने में उपनिरीक्षक (सब-इंस्पेक्टर) के पद पर पदस्थ थे, उन्होंने नक्सल विरोधी आपरेशन में अद्वितीय साहस का परिचय दिया। नडपल्ली के जंगल में किए गए आपरेशन के दौरान उन्होंने नक्सलियों को मार गिराने के साथ-साथ भारी मात्रा में हथियार और नक्सली साहित्य जब्त किया था। इसके बावजूद उन्हें आउट आफ टर्न प्रमोशन नहीं दिया गया, जिससे आहत होकर उन्होंने हाई कोर्ट में न्याय की गुहार लगाई।
हाई कोर्ट में दायर की रिट याचिका
अरुण मरकाम ने अधिवक्ता अभिषेक पांडेय और पीएस. निकिता के माध्यम से हाई कोर्ट बिलासपुर में रिट याचिका दायर की। याचिका में यह तर्क दिया गया कि उनके साथ आपरेशन में शामिल अन्य अधिकारियों को इंस्पेक्टर पद पर प्रमोशन दे दिया गया, लेकिन अरुण मरकाम को उनके महत्वपूर्ण योगदान के बावजूद इस अधिकार से वंचित रखा गया। गृह विभाग की नीति के अनुसार, नक्सल आपरेशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले अधिकारियों को आउट आफ टर्न प्रमोशन दिया जाना चाहिए। लेकिन याचिकाकर्ता के मामले में ऐसा नहीं हुआ। उन्होंने तर्क दिया कि इस तरह का भेदभाव न केवल अधिकारी का मनोबल गिराता है बल्कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में कार्यरत पुलिस अधिकारियों और जवानों के उत्साह पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
आपरेशन में मरकाम का अहम योगदान
थाना प्रभारी द्वारा तैयार मुठभेड़ की रिपोर्ट और डी-ब्रीफिंग रिपोर्ट में स्पष्ट उल्लेख था कि अरुण मरकाम इस आपरेशन के प्रभारी अधिकारी थे और उन्होंने सराहनीय कार्य किया। इस अभियान में उन्होंने न केवल नक्सलियों का खात्मा किया बल्कि भारी मात्रा में हथियार और नक्सली साहित्य भी जब्त किया। रिपोर्ट में उनकी भूमिका को प्रमुखता से सराहा गया था। बावजूद इसके, उन्हें आउट आफ टर्न प्रमोशन देने से इंकार कर दिया गया।
कोर्ट का निर्णय
जस्टिस राकेश मोहन पांडेय की सिंगल बेंच ने मामले की सुनवाई के बाद गृह विभाग के सचिव को निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता के अभ्यावेदन का निराकरण पुलिस रेगुलेशन 1861 के रेगुलेशन एक्ट 70 के तहत किया जाए। पुलिस रेगुलेशन एक्ट 1861 के रेगुलेशन 70 में साहसिक कार्य करने वाले पुलिस कर्मियों को उनके विशिष्ट योगदान के लिए पुरस्कृत करने और प्रोत्साहित करने के प्रावधान हैं। इस एक्ट का उद्देश्य ऐसे कार्यों को मान्यता देना और विभाग में अनुकरणीय सेवा को बढ़ावा देना है।
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नान घोटाला: पूर्व महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा की अग्रिम जमानत याचिका खारिज
छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित नान घोटाले के मामले में राज्य के पूर्व महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा को बड़ा झटका लगा है। रायपुर की स्पेशल कोर्ट ने उनकी अग्रिम जमानत याचिका को खारिज कर दिया। एडीजे निधि वर्मा की अदालत ने बुधवार को सुनवाई के बाद यह फैसला सुनाया। नान घोटाले में छत्तीसगढ़ राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) ने 4 नवंबर को नई एफआइआर दर्ज की। इस एफआइआर में पूर्व महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा के साथ पूर्व आईएएस अधिकारी डा. आलोक शुक्ला और अनिल टुटेजा को भी आरोपित बनाया गया है।
यह हैं आरोप
ईओडब्ल्यू का दावा है कि इन तीनों ने अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करते हुए गवाहों को प्रभावित करने का प्रयास किया और सरकारी दस्तावेजों में छेड़छाड़ की। आरोप है कि तत्कालीन महाधिवक्ता वर्मा ने आइएएस अफसरों के कहने पर गलत तरीके से काम किया और उन्हें लाभ पहुंचाया। ईओडब्ल्यू का यह भी आरोप है कि, सतीश चंद्र वर्मा ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए सरकारी दस्तावेजों में बदलाव कराया ताकि नागरिक आपूर्ति निगम (नान) से जुड़े एक मामले में इन तीनों के पक्ष में जवाब तैयार हो सके। ईओडब्ल्यू ने इनके खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 2018 की धाराओं 7, 7क, 8 और 13(दो) के साथ-साथ भारतीय दंड संहिता की धाराओं 182, 211, 193, 195-ए, 166-ए और 120बी के तहत मामला दर्ज किया है।
2015 से चल रही है जांच
इस मामले की जड़ें 2015 में दर्ज नान घोटाले से जुड़ी हुई हैं। ईओडब्ल्यू का आरोप है कि इसके बाद तीनों ने मिलकर एजेंसी (ईओडब्ल्यू) का काम करने वाले उच्चाधिकारियों से प्रक्रियात्मक दस्तावेज और विभागीय जानकारी में बदलाव करवाया। ताकि नागरिक आपूर्ति निगम के खिलाफ 2015 में दर्ज एक मामले में अपने पक्ष में जवाब तैयार कर हाईकोर्ट में अपना पक्ष मजबूती से रख सकें और उन्हें अग्रिम जमानत मिल सके।
क्या है नान घोटाला?
तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के कार्यकाल में यह घोटाला हुआ था। बीजेपी का आरोप है कि, नान घोटाले में राशन वितरण में भारी अनियमितताएं हुईं। आरोप है कि 13,301 राशन दुकानों में चावल वितरण में 600 करोड़ रुपये से अधिक की गड़बड़ी हुई। इसके अलावा, राशन दुकानों के स्टाक वैरिफिकेशन के बदले एक-एक दुकान से 10-10 लाख रुपये वसूलने का आरोप भी है। कुल मिलाकर इस घोटाले का अनुमानित आंकड़ा 1,000 करोड़ रुपये से अधिक का बताया जाता है।