मप्र के धनगर समाज में आज भी जन्म से पहले ही तय हो जाते हैं, पहले बच्चे को भी रख देते थे गिरवी

मप्र के धनगर समाज में आज भी जन्म से पहले ही तय हो जाते हैं, पहले बच्चे को भी रख देते थे गिरवी

मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले के भोलाना गांव में धनगर समाज की एक सैकड़ा साल पुरानी परंपरा है, जहां गर्भावस्था के दौरान विवाह तय होते हैं। हालाँकि अब कुछ किशोर परिवार ने इसे छोड़ दिया है। खेती और व्यवसाय मुख्य व्यवसाय हैं, और समाज ने बच्चों को गिरवी रखने की कुप्रथा से मुक्ति पाई है।

द्वारा नीरज पांडे

प्रकाशित तिथि: बुध, 20 नवंबर 2024 04:16:25 अपराह्न (IST)

अद्यतन दिनांक: बुध, 20 नवंबर 2024 04:16:25 अपराह्न (IST)

खेती और सामान धनगर समाज का मुख्य व्यवसाय।

पर प्रकाश डाला गया

  1. धनगर समाज में गर्भावस्था के दौरान ही विवाह होता है तय
  2. बुरहानपुर में महाराष्ट्र मूल के लगभग 700 परिवार रहते हैं
  3. महाराष्ट्र मूल के धनगर समाज को ईमानदार माना जाता है

नईदुनिया प्रतिनिधि, बुरहानपुर। डिजिटल युग के दौर में अगर कोई यह कहे कि किसी गांव या समाज में आज भी गर्भावस्था के दौरान फिल्म की बुकिंग तय हो जाती है, तो आसानी से इस पर विश्वास करना मुश्किल होगा, लेकिन यह सच है। ऐसा है मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले का भोलाना गांव, जहां रहने वाले धनगर समाज के लोग सैकड़ों साल पुरानी इस परंपरा का निर्वाह अब भी कर रहे हैं।

मित्र, अलैहिस्सलाम पड़ोसी तय कर लेते हैं

धनगर समाज के करीब 700 परिवार इस गांव में रहते हैं, आज भी गर्भावस्था के दौरान दो दोस्त, वैशाली या पड़ोसी इस बात का वादा करते हैं कि अगर उनके घर में विपरीत लिंग के बच्चे पैदा होते हैं तो वयस्क होने पर उन्हें विवाह के बंधन में बांध दिया जाएगा ।। हालाँकि उच्च शिक्षित हो चुके कई परिवार अब इस परंपरा को त्याग चुके हैं।

गाँव के शिष्यों के लिए उनके द्वारा दिए गए वचनों में सबसे महत्वपूर्ण घटना यह है कि, फिर से उनका विवाह हो गया या फिर धन-संपत्ति का साथ मिल गया।

naidunia_image

पशुपालन एवं पालन मुख्य व्यवसाय है

धनगर समाज मूलत: पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र की जाति है, लेकिन कुछ परिवार सैकड़ों वर्ष पहले बुरहानपुर आये थे और जिला मुख्यालय से करीब 12 किमी दूर भोलाना में बस गये थे। तब उनकी आर्थिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं थी।

धीरे-धीरे यहां खेती करना शुरू हुआ। इसके बाद भेड़, बकरी और गोपालन की शुरुआत हुई, जिनमें से अधिकांश वर्तमान में पारिवारिक आर्थिक रूप से अत्यंत मूल्यवान हो गए हैं। अकेले भेड़ भीम कर ही वे ग्रेड दस से पचास लाख रुपये तक कमा लेते हैं।

naidunia_image

ईमानदार और धार्मिक है पूरा समाज

गांव के पूर्व सरपंच ओमराज बविस्कर कहते हैं कि मल्हार धनगर समाज के नाम से पहचानी जाने वाली यह न जाति है, न केवल ईमानदार है, बल्कि धार्मिक भी है। वे अपने इष्टदेव की चांदी की भारी भरकम मूर्तियां बनवाकर पूजा करते हैं। साथ ही समाज के संतू मामा के अनन्य भक्त हैं। साल में एक बार इष्ट देव के पूजन के दौरान पूरे गांव में पूजा-अर्चना की जाती है।

हम सब वर्ष में एक बार इष्ट देव का पूजन कर उत्सव मनाते हैं। इस दौरान गुलाल खेला जाता है और पूरे गांव में समाज की ओर से भोजन किया जाता है।

– ओंकार भ्रमण, ग्रामीण।

बच्चों को गिरवी रखने की कुप्रथा से पाई मुक्ति

दो से तीन दशक पहले तक इस समाज में भेड़, बकरी आदि को पालने के लिए बच्चों को गिरवी रखने की कुप्रथा थी। आर्थिक रूप से कमजोर परिवार अपने बच्चों को दो से चार साल के लिए बच्चों के पास गिरवी रख देते थे। बदले में कुणाल साल की एकमुश्त राशि ले लेते थे। अनुबंध की अवधि समाप्त होने पर बच्चे उनके पास वापस आ रहे थे। वर्तमान में इस समाज में इस कुप्रथा से मुक्ति का भुगतान किया जाता है।

naidunia_image