ग्रहण लगना एक विशेष खगोलीय घटना मानी जाती है. विज्ञान के अनुसार जब सूर्य और पृथ्वी के बीच चंद्रमा आ जाता है और आंशिक या फिर पूरी तरह से सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी पर आने से रोक देता है तो यह घटना सूर्य ग्रहण कहलाती है. वही चंद्र ग्रहण तब लगता है जब पृथ्वी, चंद्रमा और सूर्य के ठीक बीच में आ जाती है और पृथ्वी सूर्य से आने वाले प्रकाश को रोकती है, जिससे कि चंद्रमा पर छाया पड़ जाती है. इस छाया के कारण चंद्रमा बहुत ही धुंधला दिखाई देने लगता है. कई बार तो चंद्रमा का रंग चटक लाल भी होता है. इसे चंद्र ग्रहण कहा जाता है.
ग्रहण लगने की प्राचीन मान्यताएं
ग्रहण लगना भले ही विज्ञान के नजरिए से एक दुर्लभ खगोलीय घटना मानी जाती है. लेकिन चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण को लेकर विभिन्न प्राचीन सभ्यताओं में अलग-अलग मान्यताएं भी हैं. कई मान्यताओं को प्राचीन समय से लेकर आज तक सत्य माना जाता है. लेकिन विज्ञान से पहले लोगों के पास सूर्य और चंद्र ग्रहण को लेकर केवल आध्यात्मिक मान्यताएं और इसकी व्याख्याएं ही थीं.
प्राचीन यूनान में ऐसा माना जाता है कि, देवता जब क्रोधित होते हैं तो सूर्य ग्रहण लगता है और इसे बुरी घटनाओं के होने का संकेत भी माना जाता है. वहीं प्राचीन चीन सूर्य और चंद्र ग्रहण को सम्राट के भविष्य का पूर्वानुमान लगाने का दिव्य संकेत मानता है. इसी तरह प्राचीन अमेरिका, पश्चिम अफ्रीका, इटली मिस्र, प्रचीन भारत और इंका जैसी सभ्यताओं समेत दुनियाभर में ग्रहण को लेकर कई मान्यताएं हैं, जिसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे.
सात संस्कृतियों की ग्रहण की हैरान कर देने वाली मान्यताएं
भारतीय हिंदू परंपरा- हिंदू पौराणिक कथा में सूर्य और चंद्र ग्रहण को स्पष्ट करने वाली व्याख्या पौराणिक कथा में मिलती है, जोकि समुद्र मंथन से जुड़ी है. किंवदंती के अनुसार , स्वरभानु नामक एक राक्षस ने छल से देवताओं का अमृत पीना चाहा और अमृत पीकर अमर हो गया. लेकिन सूर्य और चंद्रमा ने उसे पहचान लिया और भगवान विष्णु को उसके छल के बारे में बता दिया जिसके बाद दंड के रूप में विष्णु ने उस राक्षस का सिर सूदर्शन चक्र से काट दिया . लेकिन अमृत पीने के कारण वह जीवित रहा. उसके शरीर के दो हिस्से हो गए. एक हिस्सा राहु और एक हिस्सा केतु कहलाया. मान्यता है कि, उसका अमर सिर, सूर्य का निरंतर पीछा करते हुए, कभी-कभी (अमावस्या को) उसे पकड़ लेता और निगल जाता, लेकिन फिर सूर्य तुरंत प्रकट हो जाता है. इसी तरह राक्षस के धड़ वाला हिस्सा चंद्रमा को पूर्णिमा की रात निकलने का प्रयास करता है, जिस कारण चंद्र ग्रहण लगता है.
मूल अमेरिकी- ओजिब्वा और क्री एक प्रचलित कहानी है कि, त्सिकाबिस नाम के एक लड़के ने सूर्य से उसे जलाने का बदला लिया था. अपनी बहन के विरोध के बावजूद, उसने सूर्य को एक जाल में फंसा लिया, जिससे कि ग्रहण लग गया. कई जानवरों ने सूर्य को जाल से छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन एक छोटा चूहा ही रस्सियों को कुतरकर सूर्य को उसके रास्ते पर वापस ला सका.
प्राचीन चीन- सूर्य ग्रहण को लेकर प्राचीन चीन में लोगों के बीच ऐसी आम धारणा थी कि सूर्य ग्रहण तब होता है जब कोई आकाशीय अजगर सूर्य पर आक्रमण करके उसे निगल जाता है. चीनी ग्रहण के प्राचीन अभिलेखों यह लिखा गया है कि ‘सूर्य को निगल लिया गया है’. उस समय लोग सूर्य को अजगर से बचाने और उसे भगाने के लिए ग्रहण के समय ढोल बजाकर तेज़ आवाजें निकालते थे. लोगों का ऐसा मानना था कि, इस शोरगुल के बाद सूर्य हमेशा के लिए वापस लौट आता था. लेकिन प्राचीन चीनी परंपरा में चंद्र ग्रहण को सामान्य समझा जाता था.
इटली- इटली में ऐसा माना जाता है कि सूर्य ग्रहण के दौरान लगाए गए फूल साल के किसी भी अन्य समय में लगाए गए फूलों की तुलना में अधिक चमकीले और रंगीन होते हैं.
दक्षिण अमेरिका- दक्षिण अमेरिका के इंका लोग शक्तिशाल देवता के रूप में सूर्य (इंति) देवता की पूजा करते हैं. लेकिन ग्रहण की अवस्था में सूर्य को क्रोध और अप्रसन्नता का प्रतीक माना जाता था. इसलिए ग्रहण के बाद लोग इंति के क्रोध के कारण पता लगाने और यह तय करने का प्रयास करते थे कि कौन सी बलि दी जाए.
पश्चिम अफ़्रीकी- पश्चिम अफ्रीका के बेनिन और टोगो बटामालिबा के प्राचीन लोग ग्रहण को आपसी मतभेद सुलझाने का अवसर मानते थे. उनकी पौराणिक कथाओं के अनुसार, मनुष्य क्रोध और लड़ाई सूर्य और चंद्रमा तक फैल गई. इसलिए सूर्य और चंद्रमा भी आपस में लड़ने लगे, जिस कारण ग्रहण लगा. इसलिए ग्रहण के दौरान बटामालिबा के लोग पुराने झगड़े और मतभेदों को सुलझा कर शांति को बढ़ावा देते हैं.
प्राचीन मिस्र- प्राचीन मिस्रवासियों द्वारा सूर्य ग्रहण का कोई स्पष्ट विवरण नहीं मिलता. लेकिन कुछ विद्वानों के अनुसार, हो सकता है किसी कारणवश ग्रहण की घटना को अलिखित छोड़ दिया गया होगा जिससे कि घटना को कुछ हद तक स्थायी न बनाया जा सके.
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