Artificial Intelligence: आजकल एआई की मदद से बड़े-बड़े काम चुटकियों में निपटाए जा सकते हैं. लेकिन सवाल उठता है क्या इस सहूलियत की एक भारी कीमत हमारे दिमाग को चुकानी पड़ रही है? MIT (मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी) के एक ताज़ा अध्ययन से पता चलता है कि AI की मदद से लेखन करने वाले छात्रों के दिमाग़ में उन हिस्सों की गतिविधि घट जाती है जो रचनात्मकता और ध्यान से जुड़े होते हैं.
EEG मशीनों की मदद से छात्रों के दिमाग़ की हलचल रिकॉर्ड की गई, और जिन लोगों ने ChatGPT जैसी AI टूल्स का इस्तेमाल किया उनकी क्रिएटिव ब्रेन एक्टिविटी अन्य छात्रों की तुलना में कम पाई गई. इतना ही नहीं, AI की मदद से निबंध लिखने वाले छात्र अपने ही लिखे गए लेख में से सटीक जानकारी याद नहीं रख पाए. यानी AI से सहारा लेने के बाद उनकी याददाश्त और समझदारी पर असर पड़ा. यह अध्ययन उन बढ़ती चिंताओं की पुष्टि करता है जो ये कहती हैं कि AI भले ही तात्कालिक रूप से मददगार लगे, लेकिन लंबे समय में यह सोचने-समझने की काबिलियत को खोखला कर सकता है.
दिमाग़ पर बढ़ता AI का असर
Microsoft Research द्वारा किए गए एक अन्य अध्ययन में 319 लोगों से बात की गई, जो हफ्ते में कम से कम एक बार जनरेटिव AI का इस्तेमाल करते थे. उन्होंने 900 से ज़्यादा कामों में AI की मदद ली जैसे दस्तावेज़ों का सार बनाना, मार्केटिंग कैम्पेन डिजाइन करना आदि. लेकिन उनमें से सिर्फ 555 काम ऐसे थे जिनमें गंभीर सोच की ज़रूरत थी. बाकी काम लगभग “ऑटोमैटिक मोड” में हो गए. साफ है कि AI के ज़रिए किए गए कई कामों में मेहनत और सोचने की ज़रूरत घटती जा रही है. और यह ‘कंफर्ट ज़ोन’ लोगों के दिमाग को धीरे-धीरे सुस्त बना सकता है.
कम सोच, कम समझ?
स्विट्ज़रलैंड के एक बिज़नेस स्कूल के प्रोफेसर माइकल गर्लिक ने ब्रिटेन के 666 लोगों पर एक अध्ययन किया. उन्होंने पाया कि जो लोग AI पर ज़्यादा भरोसा करते हैं उनकी क्रिटिकल थिंकिंग यानी गहराई से सोचने की क्षमता कमज़ोर हो रही है. उनके मुताबिक, कई स्कूल और यूनिवर्सिटी टीचर्स ने उनसे संपर्क किया और बताया कि उनके छात्र भी अब AI पर बहुत ज़्यादा निर्भर हो रहे हैं.
हालांकि यह कहना जल्दबाज़ी होगी कि AI दिमाग को ‘खराब’ कर देता है लेकिन कई शोधकर्ताओं का मानना है कि बार-बार AI का इस्तेमाल करने से मस्तिष्क धीरे-धीरे सोचने की जिम्मेदारी दूसरों पर डाल देता है. इसे “Cognitive Offloading” कहा जाता है यानी जब दिमाग कठिन कार्यों से बचने लगता है.
रचनात्मकता पर भी असर
टोरंटो यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन में पाया गया कि जो लोग AI से प्रेरणा लेकर रचनात्मक आइडिया देते हैं उनके विचार ज़्यादा साधारण और कम विविधतापूर्ण होते हैं. उदाहरण के लिए जब प्रतिभागियों से पूछा गया कि एक पुरानी पतलून का नया उपयोग क्या हो सकता है तो AI ने सुझाव दिया कि इसमें भूसा भरकर इसे बिजूका बनाया जाए. वहीं बिना AI की मदद लेने वाले एक प्रतिभागी ने सुझाव दिया कि जेब में मेवे भरकर उसे पक्षियों के लिए फीडर बनाया जा सकता है जो कहीं ज़्यादा नया और अनोखा था.
AI से कैसे बचाएं अपने दिमाग़ को सुस्त होने से?
विशेषज्ञ सुझाव देते हैं कि AI को पूरी तरह ‘प्रोब्लम सॉल्वर’ न बनाएं, बल्कि उसे ‘नौसिखिया असिस्टेंट’ की तरह रखें. इसका मतलब यह हुआ कि अंतिम उत्तर AI से न लेकर उसे सोचने के हर स्टेप पर गाइड की तरह इस्तेमाल करें.
Microsoft की एक टीम ऐसे AI असिस्टेंट्स पर काम कर रही है जो यूज़र को बीच-बीच में टोककर सोचने के लिए उकसाएं. कुछ यूनिवर्सिटी प्रोजेक्ट्स में ऐसे बॉट्स तैयार किए जा रहे हैं जो जवाब देने की बजाय सवाल पूछें ताकि यूज़र खुद सोचे. सोचने की यह आदत धीरे-धीरे दिमाग़ की सक्रियता को बनाए रख सकती है.
नतीजा क्या निकला?
भले ही AI कई मामलों में फायदेमंद साबित हो रहा हो, लेकिन अगर इसके ज्यादा इस्तेमाल से हमारी सोचने की क्षमता कम होती है तो यह एक गहरी चिंता का विषय है. अब यह सवाल हमारे सामने है क्या हम सुविधा के चक्कर में अपनी मानसिक क्षमताएं दांव पर लगा रहे हैं? AI के आने से इंसान की रचनात्मकता और विवेक कमजोर न पड़े, इसके लिए ज़रूरी है कि हम इसका संतुलित और सोच-समझकर इस्तेमाल करें.
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