Devshayani Ekadashi 2025 : हर साल, जब सूर्य मकर से कर्क राशि की ओर बढ़ता है, तो दिन लंबे होते हैं, मौसम उज्ज्वल होता है और वातावरण में तेज बना रहता है. यह समय देवताओं का माना जाता है, जहाँ शुभ कार्य होते हैं, उत्सव मनाए जाते हैं और जीवन में ऊर्जा बनी रहती है.
लेकिन जैसे ही सूर्य कर्क से मकर की दिशा पकड़ता है, दिन छोटे और रातें लंबी हो जाती हैं. यह काल कहलाता है दक्षिणायन, और इसे दैत्यों का समय कहा जाता है. यह आत्म-अनुशासन, संयम और भक्ति का काल होता है.
चातुर्मास: जब पृथ्वी शांत होती है
इस समय को चातुर्मास कहा जाता है, चार ऐसे महीने जब मानव जीवन ठहराव में चला जाता है, प्रकृति भीगती है, और उत्सव से अधिक तप और साधना का भाव होता है. इन चार महीनों में शादी, मुंडन या गृहप्रवेश जैसे शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं. क्यों? क्योंकि यह समय है अंतरमुखी होने का, भीतर झांकने का.
देवशयनी एकादशी: जब भगवान विश्राम करते हैं
आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते हैं. इसी दिन भगवान विष्णु क्षीर सागर में शेषनाग पर योगनिद्रा में लीन हो जाते हैं. ये चार महीने वे सोते नहीं, बल्कि संसार की गति को भीतर से महसूस करते हैं.
वे अपने ही बनाए संसार से थोड़ी दूरी लेकर उसका अवलोकन करते हैं, ये है उनकी योग-निद्रा, कोई साधारण नींद नहीं. चार महीने बाद, प्रबोधिनी एकादशी को भगवान विष्णु फिर से जागते हैं और संसार के कार्यों में सक्रिय होते हैं.
एकादशी की पौराणिक कथा: पद्म पुराण के अनुसार, एक बार ‘मुरन’ नामक राक्षस ने धरती पर भारी उत्पात मचाया. भगवान विष्णु ने उसे मारने के लिए विश्राम लिया और उस दौरान उनकी स्त्री शक्ति ने मुरन का वध किया. यह दिन था एकादशी.
इस दिन की शक्ति से प्रसन्न होकर विष्णु ने उसे आशीर्वाद दिया कि जो भी इस दिन व्रत रखेगा, उपवास करेगा और ईश्वर का स्मरण करेगा, उसे मोक्ष और वैकुंठ की प्राप्ति होगी.
विष्णु का सृष्टि से संबंध
- भगवद्गीता में विष्णु का वर्णन बहुत गहराई से किया गया है:
- समुद्र उनके कमर के समान हैं,
- पहाड़ियां उनकी हड्डियां,
- बादल उनके केश,
- वायु उनकी श्वास,
- नदियां उनकी नसें,
- पेड़ उनके रोम,
- सूर्य और चंद्रमा उनकी आँखें,
- और दिन-रात की चाल उनकी पलकें हैं.
मतलब, सृष्टि के हर कण में भगवान विष्णु हैं, जब हम पानी पीते हैं, सूरज देखते हैं, बारिश की गंध महसूस करते हैं, तब हम असल में विष्णु के ही किसी रूप को छू रहे होते हैं.
योगनिद्रा का रहस्य: विष्णु सोते हैं, परंतु वे सोते हुए भी जागृत रहते हैं. उनका यह विश्राम केवल शरीर का नहीं, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा का संचय है. वह हम सबके कर्म, विचार और भावनाओं से जुड़े रहते हैं, जैसे वाई-फाई का अदृश्य नेटवर्क हमारे उपकरणों को जोड़ता है, वैसे ही भगवान हर आत्मा से जुड़े रहते हैं.
देवशयनी एकादशी हमें याद दिलाती है कि भक्ति, संयम और विश्वास से भरा हुआ जीवन ही सार्थक है. यह समय त्याग का है, शांति का है और ईश्वर की ओर एक कदम बढ़ाने का है.
जब विष्णु सोते हैं, तो हमें भी जीवन की हलचल से थोड़ा हटकर अपने भीतर उतरना चाहिए, अपने विचारों, कर्मों और लक्ष्य की पुनः समीक्षा करनी चाहिए.
अंत में शास्त्र कहते हैं:
“भगवान के हाथ, पैर, चेहरे, आँखें और कान हर दिशा में हैं.
वे सब कुछ जानते हैं, बीता हुआ कल, आज और आने वाला समय.
वे सबको पहचानते हैं, पर कोई उन्हें पूरी तरह नहीं समझ सकता.”
विष्णु सोते नहीं, वे प्रतीक्षा करते हैं. हमारे जागने की, हमारे लौटने की.
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