भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) की तीन दिवसीय अहम बैठक 4 जून से शुरू हो चुकी है. इस बीच ग्लोबल ब्रोकरेज फर्म Nomura ने एक बड़ा अनुमान पेश किया है, 2025 में RBI रेपो रेट में 100 बेसिस पॉइंट (bps) की कटौती कर सकता है. यह अनुमान बाजार की आम राय से दोगुना है, जो सिर्फ 50 bps की कटौती मान रही थी.
RBI गवर्नर के नेतृत्व में बैठक
यह बैठक RBI गवर्नर संजय मल्होत्रा की अध्यक्षता में हो रही है और इसका फैसला 6 जून को आएगा. इस बार सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या RBI लगातार तीसरी बार रेपो रेट में कटौती करेगा. खास बात यह है कि फिलहाल महंगाई दर 4 फीसदी के लक्षित स्तर से नीचे बनी हुई है, जो ब्याज दरों में कटौती की संभावनाओं को मजबूत करती है.
अब तक दो बार कटौती
पिछली दो बैठकों में RBI ने कुल 50 bps की कटौती कर रेपो रेट को 6 फीसदी तक ला दिया है. Nomura का कहना है कि अर्थव्यवस्था में मंदी और महंगाई के लक्षित स्तर से नीचे रहने के चलते RBI को और कटौती का मौका मिल सकता है.
Nomura के मुताबिक, GDP ग्रोथ FY26 में 6.2 फीसदी रहने की उम्मीद है (RBI का अनुमान 6.5 फीसदी) का है. महंगाई 3.3 फीसदी रहने का अनुमान है (लक्ष्य 4 फीसदी) का है. इस लिहाज से, नीति दरों को “तटस्थ” नहीं, बल्कि “प्रोत्साहनात्मक ज़ोन” में लाने की जरूरत है.
हर तिमाही 25bps कटौती का अनुमान
Nomura का मानना है कि RBI साल के बाकी बचे चारों मॉनिटरी पॉलिसी रिव्यू (जून, अगस्त, अक्टूबर और दिसंबर) में 25bps की कटौती कर सकता है. इस तरह रेपो रेट 5.00 फीसदी तक आ सकता है. इसके अलावा बैंकिंग सिस्टम में पर्याप्त लिक्विडिटी यानी नकदी बनी रहेगी, लगभग 1 फीसदी NDTL के आसपास, जिससे ब्याज दरों का असर जल्दी देखने को मिलेगा.
अमेरिका के फैसलों से RBI नहीं होगा प्रभावित
RBI पहले ही साफ कर चुका है कि उसकी मौद्रिक नीति के फैसले घरेलू आर्थिक परिस्थितियों पर आधारित होते हैं, ना कि अमेरिका जैसे देशों की नीतियों पर. Nomura का भी मानना है कि भले ही US फेडरल रिजर्व अपनी दरें Q4 तक न बदले, लेकिन RBI अपने रास्ते पर चलेगा, क्योंकि भारत की स्थिति अलग है. वहीं, FY26 में भारत का चालू खाता घाटा (CAD) लगभग 0.6 फीसदी रहने का अनुमान है, जिससे फंडिंग को लेकर कोई बड़ी चुनौती नहीं दिख रही. हालांकि Q1 2025 में GDP ग्रोथ 7.4 फीसदी रही, लेकिन रिपोर्ट के मुताबिक इसके पीछे निजी खपत और पूंजीगत खर्च की गति धीमी रही.
शहरी खपत में कमजोरी बनी हुई है
क्रेडिट ग्रोथ और वास्तविक आय की ग्रोथ भी धीमी है. जबकि, वैश्विक अनिश्चितता, चीनी सामान की भरमार और निजी निवेश की सुस्ती भी चिंता का विषय है. फिर भी, कम महंगाई, कमोडिटी कीमतों में गिरावट और सेवाओं की मजबूती भारत की ग्रोथ को थोड़ा संतुलन दे सकती हैं.
3 फीसदी के नीचे आ सकती है CPI
जनवरी से अप्रैल तक CPI महंगाई औसतन 3.6 फीसदी रही है. Nomura का कहना है कि यह और घटकर अगले छह महीनों में 3.0 फीसदी से नीचे जा सकती है. इसके अलावा, खाद्य पदार्थों की कीमतें घटी हैं. मूल महंगाई (core inflation) भी नियंत्रित है. वेतन वृद्धि और इनपुट लागत में भी नरमी है. FY26 में CPI औसतन 3.3 फीसदी रह सकती है, जो कि RBI और बाजार दोनों के 4 फीसदी के अनुमान से काफी कम है.
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