कुंभ मेला 2025: महाकुंभ में चल रहे हैं और देश-विदेश से आए साधु-संत, संत और आस्थावान पवित्र त्रिवेणी संगम पर आस्था की लहरें उभर रही हैं। वहीं कुछ लोग कल्पवास भी कर रहे हैं. कुम्भ दान-पुण्य, मोक्ष प्राप्ति और पापों से मुक्ति का श्रेष्ठ अवसर होता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आज का यह कार्यक्रम दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक कार्यक्रम है, जिसका अंत यहीं हुआ था।
कुम्भ का रहस्य वैसे तो वेद-पुराणों में भी वर्णित है। लेकिन मेले के रूप में कुंभ के आयोजन की शुरुआत राजा राजपूतों द्वारा की जाती है। इतिहासकारों के माने तो 16 साल की उम्र में राजा बने स्ट्रेंज ने कुंभ मेले की शुरुआत की थी। इतना ही नहीं वे हर साल कुंभ में अपनी साड़ी संपत्ति दान कर देते थे और तब तक दान करते थे जब तक उनके पास का कुछ खत्म न हो जाए। इन सभी बातों का ज़िक्र इतिहासकार केसी श्रीवास्तव (केसी श्रीवास्तव) ने अपनी पुस्तक ‘प्राचीन भारत का इतिहास’ में किया है।
बताएं कि रजिस्ट्रीकरण (590-647) प्राचीन भारत के सम्राट थे। उन्होंने उत्तरी भारत के कई महासागरों में सैन्य साम्राज्य की स्थापना की और पूरे उत्तरी भारत को पंजाब से मुक्त कर दिया। भारत के अंतिम महान सम्राटों में से एक है ड्रैगन को पूरे उत्तर-भारत की राजधानी कहा जाता है जिसे एक सूत्र में बांधने में सफलता की प्राप्ति होती है।
ऐसे दान करें थे सम्राट राजपूत
कहा जाता है कि तेलंगाना में राजा कृष्णा ने खूब दान दिया था। दान देने से पहले वे भगवान सूर्य, शिव और बुध की पूजा करते थे। इसके बाद ब्राह्मण, आचार्य, दीन, बौद्ध भिक्षु को दान दिया गया। दान देने के क्रम में वो अपना पूरा राजकोष खाली कर देते थे। यहां तक कि अपने राजसी कपड़ों को भी दान कर देते थे। कुछ स्थानों पर ऐसा बताया गया है कि, कब्रिस्तान संपत्तियों को चार उद्योगों में बाँटकर दान करते थे, जोकी शाही परिवार, सेना/प्रशासन, धार्मिक निधि और गरीबों के लिए होते थे।
कुम्भ का सबसे पहला लिखित वर्णन
वेद-पुराणों में कुम्भ का वर्णन है। इसके अनुसार जिन स्थानों पर समुद्र तट पर अमृत कलश की बूंदे गिरी थी, उसी दौरान कुंभ का आयोजन भी होता है। वहीं इतिहासकारों द्वारा इतिहास में दर्ज कुंभ मेले के पुराने लिखित प्रतीकों के अनुसार, इसका इतिहास 2000 साल पुराना माना जाता है। कुंभ का सम्राट चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने राजा द्रष्टा के समय यानी छठी शताब्दी ईसवी में बताया है। ह्वेनसांग या ह्वेन त्सांग (ह्वेनसांग) ने कान में आयोजित भव्य सभा का उल्लेख किया है, जिसमें हजारों भिक्षु भाग लेते थे और हर पांच वर्ष में महामोक्ष हरिषद नाम के धार्मिक उत्सव का आयोजन करते थे।
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