सुप्रीम कोर्ट समाचार: एक अहम जजमेंट में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कानून के अनुसार बताए गए किसी भी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से निवेश नहीं कराया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि भले ही संपत्ति का अधिकार एक मूल अधिकार नहीं है, बल्कि यह संवैधानिक अधिकार है। इसका संरक्षण जरूरी है. कर्नाटक में मिली भूमि अधिग्रहण के करीब 20 साल पुराने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपनी विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए लोगों को मजबूत किया है।
जमीन का कोई मिश्रण नहीं था
सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला नवंबर 2022 में कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील पर दिया है। केस कॉलेज-मैसूर इंफ्रास्ट्रक्चर इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट (बीएमआईसीपी) के लिए भूमि अधिग्रहण से निवेश है। 2003 में कर्नाटक इंडस्ट्रियल एरियाज बोर्ड ने भूमि अधिग्रहण की प्रारंभिक अधिसूचना के लिए परियोजना शुरू की। नवंबर 2005 में ज़मीन पर कब्ज़ा कर लिया गया, लेकिन 22 साल की ज़मीन पर कोई मोर्टार नहीं मिला।
अब सुप्रीम कोर्ट के जज बीआर गवई और वी. विश्वनाथन की बेंच ने राज्य सरकार को इस ढिलाई के लिए आड़े हाथों ले लिया है। कोर्ट ने कहा, “एक मतदाता राज्य में यह दावा करता है कि वह लोगों की हितों की रक्षा के लिए सक्रिय भूमिका निभाएगा। सरकार का काम सिर्फ इतना नहीं है कि वह किसी परियोजना के लिए भूमि का अधिग्रहण कर ले।” कोर्ट ने राज्य सरकार से दो महीने के अंदर फैसला लेने को कहा है।
‘पुरानी कीमत से पोस्टमॉर्टम स्टॉक एज़’
अदालत ने यह भी साफ कर दिया कि 2003 में जमीन की कीमत पर जमीन की कीमत नहीं हो सकती थी। जजमेंट में राज्य सरकार की ओर से कहा गया है कि वह 2019 में आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई करेगी। अदालत का मानना है कि 21 साल पुरानी क़ीमतों से जुड़ी संपत्ति के संवैधानिक अधिकार को ख़त्म कर दिया जाएगा। ऐसे में जजों ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत सर्वोच्च न्यायालय को विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए बेचे गए पत्थरों का ऑर्डर दिया है।
फैसले में कहा गया है कि 1978 के 44 वें संविधान के तहत संपत्ति का अधिकार मूल अधिकार नहीं है, लेकिन संविधान 300-ए के तहत यह आज भी एक संवैधानिक अधिकार है। आर्टिकल 300-ए में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति कानून की शक्ति के तहत अपनी संपत्ति का निवेश कर सकता है। अर्थात किसी की संपत्ति लेने का समय कानून में दी गई प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए।
कोर्ट ने सरकार को दी राहत
सुप्रीम कोर्ट ने ग्राहकों को दिए गए आदेश के साथ यह भी साफ कर दिया है कि अदालत के दरवाजे भी आगे के लिए खुले हैं। अगर वह सरकार की तरफ से तयशुदा चुनौती का अधिकार बरकरार नहीं रख पातीं। अदालत ने देश भर के बागानों को जमीन अधिग्रहण के मामले तय करने और उन्हें लोगों को देने में तेजी से बदलाव लाने की बात कही है। इस प्रक्रिया का जल्द से जल्द निवारण करना भूमि के अधिकारों की सुरक्षा के लिए आवश्यक है।