<पी शैली="पाठ-संरेखण: औचित्य सिद्ध करें;">सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार के कर्मचारियों के खिलाफ किसी भी राज्य में काम करने का मामला दर्ज करने के लिए राज्य सरकार की मंजूरी नहीं है। ऐसे कर्मचारियों की सहमति अगर किसी केंद्रीय कानून के तहत इसके खिलाफ मामला दर्ज कर रही है, तो वह राज्य सरकार की मंजूरी के बिना भी ऐसा कर सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुनाया है। उच्च न्यायालय ने आंध्र प्रदेश के नान बिल्डिंग (कुर्नूल) जिले में काम कर रहे सेंट्रल एक्साइज विभाग के अधिकारी ए. ऋषभ कुमार के खिलाफ़ जुआरी के 2 मामलों में संयुक्त जांच को रद्द कर दिया गया था। यह कैथोलिक सेंट्रल लॉ प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट (भ्रष्टाचार संविधान कानून) के तहत दर्ज किए गए थे।
हाई कोर्ट का फैसला
हाई कोर्ट के सामने 1990 में अविश्वास प्रस्ताव की जांच के लिए आम सहमति की जांच की गई थी। 2014 में राज्य 2 आदर्श- आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में टूट हुई है। राज्य के खंडहर के बाद दिल्ली पुलिस स्पेशल एस्टेब्लिशमेंट (डीएसपीई) अधिनियम 1946 के तहत मिली सामान्य सहमति समाप्त हो गई है। हाई कोर्ट ने इस सुपरमार्केट को स्वीकार करते हुए आपके साथ काम करना बंद कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट का तर्क
सीबीआई की अपील पर फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट के जज सी टी रवि कुमार की बेंच ने अधेड़ की डेडलाइन को खारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अविभाजित आंध्र प्रदेश में लागू कानून विभाजन के बाद राज्यों दोनों पर तब तक लागू रहेगा, जब तक राज्य सरकार उसे नहीं बदलेगी। साथ ही, यह मामला केंद्र सरकार के कर्मचारियों के खिलाफ है। आरोप भी केंद्रीय क़ानून (भ्रष्टाचार क़ानून) के अंतर्गत आता है। ऐसे में दावा ठोकने के लिए राज्य सरकार की मंजूरी लेने की मंजूरी नहीं दी गई थी।
ये भी पढ़ें:
भुवनेश्वर में प्रवासी भारतीयों के महासम्मेलन में त्रिनिदाद के राष्ट्रपति हो सकते हैं मुख्य अतिथि