जेल नियम: केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जेलों में उनकी जाति के आधार पर भेदभाव और भेदभाव की जांच के लिए जेल नियमों में संशोधन किया है। गृह मध्य मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों के मुख्य सचिवों को जारी किए गए पत्रों में कहा गया है कि किसी भी तरह के जाति आधारित भेदभाव के मुद्दे पर ”आदर्श कारागार नियमावली, 2016” और ”आदर्श करागार एवं सुधार सेवा अधिनियम, 2023” में संशोधन किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट के तीन अक्टूबर, 2024 के आदेश के अनुसार ये बदलाव किए गए हैं। कारागर नियमावली में नए संशोधन के तहत जेल अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा गया कि उनकी जाति के आधार पर कोई भेदभाव, भेदभाव या असमानता न हो।
‘जाति के आधार पर भेदभाव न हो, निश्चित से किया जाए सुनिश्चित’
इसमें कहा गया है, ”यह संकेत दिया गया है कि जेलों में किसी को भी ड्यूटी या काम के लिए छूट दी जाएगी, साथ ही उसकी जाति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होगा।” आदर्श करागार एवं सुधार सेवा अधिनियम, 2023 के ‘विविध ‘में और भी बदलाव किए गए हैं, जिसमें धारा 55(ए) को नए शीर्षक के रूप में ‘कारागार एवं सुधार धारा में जाति आधारित भेदभाव का निषेध’ जोड़ा गया है।
अनुमोदित या सैय्यर टैंक की सफाई की भी नहीं होगी इज़ाफ़ा
गृह मंत्रालय ने यह भी कहा कि ”हाथ से मिला उठाव करने वालों के रूप में रोजगार का निषेध और उनका निर्धारण अधिनियम, 2013” के कार्मिकों की जेलों और सुधार समझौते में भी नामांकन प्रभाव होगा। कहा गया है, ”इसमें जेल के अंदर हाथ से मैला उठाना या खींचना या सेपी टैंक की हानिकारक सफाई की अनुमति नहीं दी जाएगी।”
गृह मंत्रालय ने कहा कि विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में अपने-अपने अधिकार क्षेत्र में शिक्षण-आचार्य अधिनियम लागू नहीं हैं और विभिन्न राज्यों में उपलब्ध शिक्षण-आचार्य अधिनियमों में आदर्श जेल नियमावली, 2016 और आदर्श जेल एवं संशोधन अधिनियम लागू नहीं हैं। सुधार सेवा अधिनियम, 2023 में ‘आदतन अपराधी अधिनियम’ की अंतिम परिभाषा को लेकर निर्णय लिया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में ”आदतन द्वीप” के संबंध में निर्देश दिए थे और कहा था कि राज्य विधानसभाओं की ओर से अभ्यारण्य नियमावली और आदर्श करागार नियमावली की परिभाषा के अनुसार अभ्यारण्य कानून बनाया जाएगा। अदालत ने निर्देश दिया था कि यदि राज्य में आपराधिक कानून नहीं दिया गया है तो केंद्र और राज्य सरकारों को तीन महीने की अवधि में अपने फैसले के संवैधानिक नियमावली और निर्णय में आवश्यक बदलाव की सीमा तय करनी होगी।
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