सनातन धर्म: आनंद एरिना के अध्यक्ष महंत सत्यानंद सरस्वती ने मंगलवार (31 दिसंबर) को आईएएनएस से एक खास बातचीत में शाही स्नान, सनातन धर्म, कुंभ मेला और कई विश्राम स्थलों पर अपने विचार रखे। उन्होंने अलग-अलग धार्मिक और सामाजिक विषयों पर अपनी नजरों को स्पष्ट किया जो समाज में चर्चा का विषय बने हुए हैं।
महंत सत्यानंद ने रॉयल बाथ पर माचे जनता पर अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि शाही स्नान शब्द पर ऐतराज होने पर इसे ‘अमृत स्नान’ कहा जा सकता है। उनका मानना था कि यह शब्द संस्कृति से जुड़ा हुआ है और कोई भी ऐसा शब्द जो हमारी परंपरा से संबंधित हो उसमें कोई बुराई नहीं है। महंत ने यह भी बताया कि जब राजा-महाराजा इसे सम्मान के साथ इस्तेमाल करते थे तब यह अधिकार होता था।
मोहन भागवत के कथन का समर्थन किया
महंत राष्ट्रीय ने मोहन स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत के कथन का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि उनका सम्मान किया जाता है, लेकिन किसी भी बयान को समझने के लिए संदर्भ और पूरी जानकारी जरूरी है। महंत ने यह भी कहा कि इस मामले में राजनीतिक बयानबाजी से बचना चाहिए और निर्णय के आधार पर निर्णय लेना चाहिए।
सनातन धर्म के संकट पर महंत का स्पष्ट उत्तर
महंत सत्यानंद ने सनातन धर्म के खतरे में होने के प्रश्न पर कहा कि सनातन धर्म कभी खतरे में नहीं पड़ सकता। उनका मानना है कि जब भी संकट आता है तब कोई भी अवतार सामने नहीं आता जो धर्म की रक्षा करता हो। उनका ये विचार था कि सनातन धर्म की नींव मजबूत है और इसकी अनुभूति सदैव बनी रहेगी।
कुम्भ मेला और मुस्लिम मस्जिद पर महंत की राय
महंत सत्यानंद ने कुंभ मेले के क्षेत्र में मुस्लिम मस्जिद और सरकारी अधिकारियों की उपस्थिति पर भी अपनी राय रखी। उन्होंने कहा कि मुसलमानों से कोई विरोध नहीं है, लेकिन पवित्रता बनाए रखने के लिए कुछ प्रतिबंध जरूरी हैं। उनका मानना था कि कुंभ मेला एक धार्मिक आयोजन है और इसकी पवित्रता बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है।
धर्म संसद के उद्देश्य पर महंत सादिकरानंद ने स्पष्ट किया कि यह आयोजन हिंदू राष्ट्र की परिकल्पना को लेकर विचार-विमर्श करने के लिए है। उन्होंने यह भी कहा कि यह एक धार्मिक आयोजन है और इसका राजनीतिकरण नहीं होना चाहिए। उनकी मांग है कि धर्म, संस्कृति और आस्था की रक्षा की जाये।
महंत की प्रतिक्रिया पर राजनीतिक घोषणाएं
विश्वासानंद ने गंगा के पानी को स्वाभाविक रूप से शुद्ध और स्नान योग्य बताया। उन्होंने कहा कि गंगा संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है। इसके साथ ही उन्होंने धर्म और राजनीति को अलग रखने की बात कही और कुंभ के आयोजन में सभी नेताओं का स्वागत किया गया.
आम आदमी पार्टी के ओर से पुजारियों और स्मारकों की ओर से 18 हजार साल के मासिक वेतन की योजना पर महंत ने इसे एक राजनीतिक घोषणा बताया। उनका कहना था कि राजनीति में ऐसे सोलोवने वादों पर भरोसा नहीं किया जा सकता। उन्होंने इसे सिर्फ एक बेंचमार्क चाल माना।
वोट बैंक की राजनीति पर भी की आलोचना
महंत सिद्धार्थानंद ने अखिलेश यादव की ओर से संभल हिंसा में पांच-पांच लाख रुपये की मदद की आलोचना की। उन्होंने इसे वोट बैंक की राजनीति से प्रेरित कदम बताया और कहा कि ऐसे कदम वोट बैंक को बढ़ावा देने के बजाय वोट बैंक को बढ़ावा दें। कुंभ में हिंदू राष्ट्र का प्रस्ताव पास होने के सवाल पर साइंटरानंद ने कहा कि ये सरकार के हाथ में है। उन्होंने स्पष्ट किया कि ये केवल एक ही मांग हो सकती है जो सरकार जब रद्दी के पास हो सकती है।
महंत सादिरानंद ने अपने बयान के माध्यम से कई विद्वानों पर समझ साझा की और समाज में धार्मिक और राजनीतिक संतुलन बनाए रखने की अपनी जरूरत को पूरा किया। उनका मानना था कि धर्म, संस्कृति और पवित्रता की रक्षा करना हमारे समाज की प्राथमिक जिम्मेदारी है।
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