मैं समंदर हूं लौटकर आ गई….महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 का जब रिजल्ट आया तो बीजेपी नेता सामूहिक ने कुछ इस तरह के इरादे बताए। बीजेपी+एनसीपी (अजीत समर्थक)+प्रतिद्वंद्वी (एकनाथ शिंदे)= महायुति ने लगभग 100 करोड़ रुपये का कारोबार किया। ऐसा लगा मानो समंदर वापस आ गया और शूटिंग को बहा ले गया।
महायुति को प्रचंड बहुमत मिला। तीन प्रमुख लॉजिस्टिक में बीजेपी की सबसे बड़ी 132 पोस्ट पर जीत हुई। एकनाथ शिंदे की उम्मीदवारी दूसरे नंबर पर रही, जिसमें 57 वोट मिले, जबकि अजित के दोस्त ने 41 पर जीत दर्ज की। जीत के बाद तीन ही आश्रमों के नेताओं ने जॉय स्टेज तैयार किया, लेकिन शानदार सीएम एकनाथ शिंदे और पूर्व सीएम कलाकारों के बीच कौन-कौन से लोग प्रतिभागियों की रेस चल रहे हैं। मामला बेहद गंभीर है, महासमुंद की राय में सीएम पद के लिए पहले भी भूचाल आ चुका है, जब आयुष ठाकुर ने 50-50 फॉर्मूले के तहत बीजेपी से सीएम पद मांगा और हिंदू विचारधारा के नाम पर जीतने वाले दो दल अलग हो गए. इसके बाद युथ टेक सीएम बने और दो दल बने, दोनों दल भाजपा के साथ गए, लड़कियां और नेता बने।
एक तरफ से समर्थित अजित अख्तर ने चाचा शरद पवार को रिहा कर दिया है तो वहीं दूसरी ओर एकनाथ शिंदे ने बाला साहेब ठाकरे के पुत्र उषा ठाकुर से अलग राह पकड़ ली है। बीजेपी ने बड़े दल के होते हुए भी सीएम पद का बलिदान दिया और एकनाथ शिंदे को महा पद पर आसीन किया गया। 2024 विधान सभा चुनाव में प्रचंड जीत के बाद विधायक दल को सीएम बनाने की बात ही शिंदे और उनके समर्थकों में मोही छा गई है। लंबी लड़ाई चल रही है, शिंदे खुद को राष्ट्रमंडल के बारे में बता रहे हैं और इसी छवि को महायुति की प्रचंड जीत का श्रेय भी दे रहे हैं। शिंदे जब से युवराज ठाकुर से अलग हुए तब से पीड़ित कार्ड के नाम से अपनी राजनीतिक जमीन को आगे बढ़ा रहे हैं। यूक्रेनी तानाशाह के खिलाफ इसी तरह को हथियार बनाया और सफल भी रहे। सीएम पद को लेकर शिंदे के युवा बेहद तल्ख हैं, हालांकि वह बोल रहे हैं कि जैसे हैं नरेंद्र मोदी और अमित शाह बोलेंगे वह होंगे, लेकिन इरादे बिल्कुल साफ हैं, सीएम पद से कम कुछ विचार नहीं। मुख्य कार्यकारी अधिकारी सीएम बन गए, लेकिन प्रचारक हैं कि शिंदे बगावत नहीं होंगे? अब बीजेपी के लिए राह इतना आसान नहीं है.
अब बीजेपी और शिंदे के पास हैं विकल नामांकन और मजबूरी?
- बीजेपी ने गठजोड़ के बाद शिंदे को महा एस्पॉलीटी सीएम बनाया और दिग्गज कलाकारों को डिप प्लास्टिक सीएम बनाया, इस एकाकी से डॉक्टर ने कहा कि बीजेपी ने शिंदे की हर शर्त को माना और एक बार जब शिंदे की शर्त तो अब आपके गठबंधन की आगे भी गठबंधन में उनकी शर्त मनेगी.
- बीजेपी के युवा नेता के विकल नारे के मुताबिक एकनाथ शिंदे को झूठ बोला गया था, ऐसे में उन्हें डर है कि शिंदे ने बगावत की तो उस पर दबाव डाला है।
- बीजेपी को झटका लगा है कि वह अकेले दम पर बहुमत में नहीं आ सकती है, ऐसे में उसे सहयोगी बनना चाहिए, इसलिए शिंदे को नाराज करना ठीक नहीं होगा। शिंदे की सूची भविष्य में कभी भी महायुति सरकार के लिए मुसीबत खड़ी कर सकती है। हालाँकि बहुत से लोग कह रहे हैं कि अजीत समर्थक के समर्थन से भाजपा सरकार ने वापसी की है, लेकिन जब शिंदे बागी हो सकते हैं तो अजीत समर्थक हड़ताली नहीं हैं? वैसे भी अजित के बड़े मालिक हैं, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की पार्टियां पहले भी चकमा दे चुकी हैं।
- ऐसे में बीजेपी के पास अब एकदम सॉलिड विकल नोट दो ही हैं.
पहला विकल्प: पुरातत्व केंद्र में पुरातत्वविद् शिंदे को सीएम पद से हटा दिया जाएगा। सहयोगियों को स्थिर सरकार देने के लिए यही करना होगा।
दूसरा विकल लेबल: शिंदे को ही सीएम बनाओ और बीजेपी की बीजेपी में संपूर्ण विलय करवा ही दो.
रहे याद स्थिर विकल संकेत दो ही हैं और दोनों विकल संकेत यही कहते हैं कि समझदार एकनाथ शिंदे को ही सीएम बनाना है। भले ही गणमानव ने समंदर हूं लौटकर वाली लाइन बोलकर धमाका दिखाई है, लेकिन जिस दिन गणतत्व सीएम बने, एकनाथ शिंदे की आंखों में आंसू का सैलाब आया, ये सलाम मातोश्री में पहले आ चुका है, जब यूवी के एकनाथ शिंदे विक कार्डिम ने खेला और बीजेपी के साथ महाबली की जनता ने भी माना कि शिंदे के साथ गलत हुआ, लेकिन अब अगर शिंदे सीएम पद पर नहीं आए और वह जनता के बीच गए तो फिर से विक्टिम कार्ड चलाएंगे और इस बार कोई ताकत नहीं बल्कि पढ़ाई होगी.
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