कोई दीवाना कहता है तो कोई पागल आदमी है, मगर धरती की उदासी को बस बादल बाकी है… इस कविता का ज़िक्र हो तो मत बताना कि बात किसकी हो रही है, क्योंकि वह कोई और नहीं, वन एंड ओनली कुमार विश्वास हैं. वह अपने माल से युवाओं के महलों पर राज कर चुके हैं। साथ ही, शिक्षा क्षेत्र से लेकर राजनीति के मैदान में अपना विश्वास भी जाहिर किया है। एबीपी न्यूज के न्यूज मेकर ऑफ द ईयर 2024 में विश्वास कुमार को ‘पोएट ऑफ द ईयर’ का खिताब दिया गया। उनकी चंद बातों से हम आपको करा रहे हैं राख…
यूपी के इस शहर से हैं किराएदार
उत्तर प्रदेश के पिलखुवा शहर में 10 फरवरी के दिन ब्राह्मण परिवार में साउदी कुमार विश्वास आज किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। उनकी गिनती के देशों के प्रमुख और अलग-अलग हिस्सों में हैं, जो अपनी कविता के माध्यम से हर दिल में जोश जगने का मद्दा रखते हैं। इसके अलावा नाटकीय राजनीतिक साजिश हो या गहरी सांस्कृतिक या धर्म पर गहन गहनता, हर क्षेत्र में कुमार विश्वास का कोई सानी नहीं है। उनकी कविताएँ हर किसी के दिल में ये क़दर उतरती हैं कि हर कोई उनका दीवाना बन जाता है।
प्रोफ़ेसर की नौकरी शुरू हुई
पिलखुवा के लाला गंगा सहायता स्कूल से प्रारंभिक पढ़ाई-लिखाई करने वाले कुमार विश्वास ने पिलखुवा के राजपूताना रेजिमेंट इंटर कॉलेज से माध्यमिक शिक्षा पूरी तरह से की थी। इसके बाद उन्होंने हिंदी साहित्य में पोस्ट ग्राजुएशन और किताबी की। बता दें कि कुमार विश्वास का करियर 1994 के दौरान राजस्थान यूनिवर्सिटी में सलाहकार सलाहकार के रूप में शुरू हुआ था। इसके बाद 2007 में उनकी किताब नो दीवाना स्टोरी प्रकाशित हुई, हू देम हर दिल का अजीज बन गया और वह मंच के महारथी बन गए। 2011 में वह अन्ना हजारे के जनलोकपाल आंदोलन से जुड़ीं और फिर राजनीति में भी कदम रखा।
राजनीति में ऐसा चल रहा सफर
26 नवंबर 2012 के दिन जब दिल्ली में आम आदमी पार्टी का गठन हुआ, तब वह अपनी राष्ट्रीय कंपनियों के सदस्य थे। इसके बाद वे संविधान सभा से चुनाव संघर्ष भी किया, लेकिन जीत नहीं पाई। कुछ समय तक वह राजनीति में सक्रिय रहे, लेकिन बाद में दूरी बना ली। कुमार विश्वास कहते हैं कि नारियल में मेरा खोया या पाया नहीं जा सकता. क्राईट का बीज हूं मिट्टी में नहीं जा सकता। उनका कहना है कि राजनीति 10 साल या पांच साल, लेकिन कविता हजारों साल।
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