मनमोहन सिंह की मृत्यु: भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और प्रसिद्ध अर्थशास्त्री डॉ. मनमोहन सिंह का 26 दिसम्बर, 2024 को दिल्ली में निधन हो गया। भारत के 13वें प्रधानमंत्री के रूप में सेवा देने वाले मनमोहन सिंह ने भारत की उदार अर्थव्यवस्था को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्हें शांत स्वभाव के व्यक्तित्व के तौर पर जाना जाता है लेकिन एक वक्ता ऐसा था जब वो बेहद नाराज हो गए थे और सोनिया गांधी की बात को भी खारिज कर दिया था।
मूल, अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश भारत दौरे पर थे और 12 मार्च 2006 को राष्ट्रपति भवन में अपनी वफादारी की खातिर जा रही थीं। एक एक्ट के तहत अमेरिका भारत को यूरेनियम स्टाम्प बनाने और अपनी सहमति देने के लिए कहा जा रहा है। इसे भारत-अमेरिकी परमाणु अनुबंध कहा जाता है। पर ये सब इतना आसान नहीं था. सरकार ने दिया समर्थन दे रही सी.पी.आई. और सी.एम. की सैन्य सेवा इसी दिन से शुरू हो गई है।
संयुक्त सरकार के गठबंधन में वामपंथ सरकार की छाप
मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली पार्टी सरकार की अलग हर नीति पर वाम मोर्चे का प्रभाव स्पष्ट दिखाई दे रहा था सरकार पर आधारित थर्मल का दबाव स्टॉकहोम बनाया गया।
लेकिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसे अपनी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया और पीछे से अस्वीकार कर दिया। परिणाम अगले दो साल तक वामपंथी और कांग्रेस के बीच जोरदार जंगी जंग छिड़ गई। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी सी क्रूज़ नेता ए बी वर्धन सरकार को ख़तरनाक मानते हुए अब सरकार की सूची में शामिल हो गए हैं। उस दौर में जाने लगा कि वर्धन की जयंती खुली है तो सरकार और संगठन दोनों थर्राने लगे हैं। इसी दौरान जब वर्धन ने सरकार से पूछा कि कब तक सुरक्षित है तो उन्होंने जवाब दिया कि शाम 5 बजे तक तो सुरक्षित है लेकिन आगे का मुझे नहीं पता।
जब मनमोहन सिंह ने सोनिया गांधी की भी नहीं सुनी बात
मामला बिलकुल गरमा गया था. इतना ही कहा जाता है कि तब कांग्रेस और राष्ट्रपति सोनिया गांधी ने इस मामले में बीच-बचाव की कोशिश की थी, लेकिन मनमोहन सिंह इस मामले पर जुड़ने को तैयार नहीं थे। कांग्रेस की बैठक में मनमोहन सिंह खफा हो गए थे कि परमाणु हथियार के मुद्दे पर उनकी रिहाई तक की खतरनाक विनाशलीला हुई थी। नतीजा ये हुआ कि कांग्रेस के सामने मनमोहन सिंह का झटका लग गया. ये डिल तो फाइनल हो गया लेकिन वाम आश्रम ने अपना समर्थन वापस ले लिया।
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