बच्चों में मधुमेह : शराब एक दीर्घकालिक बीमारी है, जिसका इलाज नहीं है। इसे केवल दस्तावेज़ीकृत किया जा सकता है। आज बेटियाँ में इसके रोगी बढ़ रहे हैं। एक आंकड़े के मुताबिक, भारत में करीब 212 मिलियन लोग प्रदर्शनकारियों की संख्या है, जो वैश्विक स्तर पर प्रदर्शनकारियों की संख्या करीब 26% है। इसका खतरा सिर्फ युवाओं में ही नहीं बल्कि बच्चों में भी इसका खतरा बढ़ रहा है। यूके में हुई एक स्टडी में बताया गया है कि अगर प्रेगनेंसी और बच्चों को चीनी या मीठा कम दिया जाए तो उन्हें टाइप 2 नशे और हाई ब्लड डिसऑर्डर का खतरा कम होता है। आइए जानते हैं क्या है ये अध्ययनकर्ता…
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बच्चों को मीठा से बचाएं
60,000 लोगों के ट्रैक को दशकों तक ट्रैक करने के बाद अध्ययन में पाया गया कि गर्भावस्था में चीनी कम करने से करीब एक-तिहाई तक जोखिम कम हो गया था। खासकर 6 महीने बाद जब बच्चों को ठोस चीजें खाना शुरू हुआ, तो इन दिनों चीनी कम करने से और काफी फायदा हुआ। तर्कशास्त्रियों का कहना है कि चीनी शुरुआत से ही कई चुनौतियों का जोखिम कम हो जाता है। माता-पिता बच्चों को जहाज़ की खासियतें डलवा सकते हैं। इस आदत से वर्कआउट और हार्ट डिजीज जैसी पुरानी चुनौती का खतरा कम होता है। पहले 6 महीने तक सिर्फ मां का दूध पिलाने से और स्टोकेर्ड फ़ार्म्स से सेव की गई फल-सब्जियां जैसे कि फ़ार्म-सब्जियां देने की सलाह दी जाती है।
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बच्चों को कब तक न खिलाएं मीठा
संतों का मानना है कि जीवन में 1 हजार दिन से लेकर बच्चे के दूसरे जन्म तक चीनी काम करने से टाइप 2 तक का खतरा काफी कम हो सकता है। यह समय मेटाबोलिक ऑफ़लाइन अत्यंत आवश्यक है। इस समय शरीर में ग्लूकोज को प्रोसेज़ करने की क्षमता प्रभावशाली है। इस समय सबसे ज्यादा चीनी खाने वाले स्कॉलरशिप रेजिस्टेंस होने कादर रहते हैं, जो कि सिगरेट का प्रमुख कारण है।
बच्चों को क्या-क्या नहीं खिलाएं
बच्चों को पहले एक हजार दिन तक प्लास्टर वाले टुकड़े, प्रॉसेस्ड खाद्य पदार्थ, साबुत सामग्री और बड़े पैमाने पर नमक वाले टुकड़े नहीं दिए जाने चाहिए। उन्हें फल, साबुत अनाज जैसे अनाज देने पर ध्यान देना चाहिए। बच्चों को भी पर्याप्त प्रोटीन और पैकेट्स अवश्य देने चाहिए। बेटियाँ, पहले 6 महीने तक बच्चों को सिर्फ माँ का दूध पिलाना चाहिए।
अस्वीकरण: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया पर आधारित है। आप भी अमल में आने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें।
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