‘पूर्व सीजेआई की मूर्ति ने खोला था भानुमति का पिटारा’, भड़की कांग्रेस पर बोले चंद्रचूड़

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<पी शैली="पाठ-संरेखण: औचित्य सिद्ध करें;">कांग्रेस महासचिव राकेश राकेश ने शनिवार (30 नवंबर 2024) को बयान देते हुए कहा कि पूर्व प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की पूजा स्थल कानून से जुड़ा हुआ पुरातात्विक संबंध, भानुमति का पिटारा (कभी न खत्म होने वाली परेशानी) खोला गया है।

उकले में दावा किया गया कि मई 2022 के दौरान ज्ञानवापी मामले की सुनवाई के दौरान जापान के चंद्रचूड़ ने पूजा स्थल अधिनियम के संदर्भ में कहा था कि यह कानून 15 अगस्त 1947 के बाद किसी भी संरचना के चरित्र को स्थापित करने से संबंधित नहीं है। इसका मतलब यह मुद्दा है कि हाल के दिनों में गहमा-गहमी बढ़ गई है।

राज्यसभा 1991 में हुई चर्चा का संदर्भ

जयराम रमेश ने 1991 में पूजा स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1991 के रूप में सामने आई चर्चा का कुछ हिस्सा साझा करते हुए कहा। उन्होंने लिखा, "12 सितम्बर 1991 को साओजामा ने उस मैक्सिकन पर चर्चा की थी, जिसके बाद पूजा स्थल अधिनियम बन गया।" अर्थशास्त्री राकेश ने इस चर्चा को लेकर यह भी जिक्र किया है कि वर्तमान में इस विषय पर आयोजित गणतंत्र चंद्रचूड़ के बयान पर इसे फिर से चर्चा में ला दिया है।

राजमोहन गांधी का भाषण

कांग्रेस नेताओं ने यह भी कहा कि इस संसदीय चर्चा के दौरान राजमोहन गांधी ने एक व्यापक भाषण दिया था, जो संभवतया सागर के इतिहास में सबसे महान भाषणों में से एक था। राजमोहन गांधी उस समय संसद के सदस्य थे और उनके भाषण में इस विषय पर काफी सारगर्भित भाषण दिया गया था। ईसा मसीह ने इस पर व्याख्यान देते हुए कहा कि यह भाषण आज भी वक्ता की प्रस्तुति पर खरा उतरता है।

क्या है पूजा स्थल अधिनियम, 1991?

उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1991, भारत में धार्मिक स्थलों के संरक्षण और उनके धार्मिक चरित्र को लेकर एक अहम कानून है। यह कानून विशेष रूप से इन धार्मिक स्थलों को लेकर शामिल होने का उद्देश्य लाया गया था, जो भारत में 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता से पहले विशेष रूप से किसी धार्मिक समूह से जुड़े थे। इस कानून के तहत यह प्रावधान है कि आजादी के बाद किसी भी धार्मिक स्थल के धार्मिक चरित्र में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता है। इसका उद्देश्य धार्मिक स्थलों को राजनीतिक और सामाजिक उद्योगों से बचाना था।

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