वडोदरा प्रदेश के बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में अक्टूबर के अंतिम सप्ताह में दस हाथियों की मौत हो गई, ही स्वस्थ्य कोदो खाने से हुई हो, लेकिन जंगल से लगे सागर में क्या ओला और बांदे ने क्या खामियां रखीं, इसकी जानकारी रखने की जिम्मेदारी पार्क प्रबंधन की है। संक्रमण से बचाव की जिम्मेदारी वन विभाग की ही है।
द्वारा धीरज कुमार बाजपेयी
प्रकाशित तिथि: सोम, 18 नवंबर 2024 02:22:20 अपराह्न (IST)
अद्यतन दिनांक: सोम, 18 नवंबर 2024 02:22:20 अपराह्न (IST)
पर प्रकाश डाला गया
- प्रोजेक्ट टाइगर की तरह ही प्रोजेक्ट एलीफेंट की आवश्यकता महसूस की गई।
- दुनिया का सबसे बड़ा गार्डनर हाथी वर्ष 2018 में बसने की नियत से प्रदेश तक पहुंच गया।
- छह साल वन अधिकारी तो इशारा करें- लोगों को हाथियों के साथ रहने की आदत हो।
श्वित्र शुक्ला, नईदुनिया, सहायक अधिकारी, जबलपुर। हमेशा अपने बाघों को लेकर चर्चा में रहने वाले बांधवगढ़ टाइगर रिज़र्व में दिनों में बाघों की मौत को लेकर चर्चा जारी है। करीब छह साल पहले बांधवगढ़ में हाथी मेहमान आए थे। यहां पर्यावरण ने उन्हें इतना पसंद किया कि उन्होंने इसे नया घर ही बना लिया।
वर्ष 2018 में बसने की नियत से मध्य प्रदेश पहुंचा था
दुनिया का सबसे बड़ा गार्डनर हाथी वर्ष 2018 में बसने की नियत से मध्य प्रदेश पहुंचा तो आम टॉयलेट, किसानों की तरह ही वन अधिकारियों ने भी उन्हें अपने लिए संकट ही महसूस कराया।
गांव के लोगों को भी हाथियों के साथ रहने की आदत डालनी होगी
जंगल के आसपास बसने वालों के लिए जब भी हाथी की समस्या पैदा हुई तो प्रदेश के वन अधिकारियों को बताया गया कि न सिर्फ उन्हें बल्कि गांव के लोगों को भी हाथियों के साथ रहने की आदत डालनी होगी।
अधिकारियों का रुख भी हाथों के प्रति सकारात्मक नहीं रहता है
- पिछले छह वर्षों में कुछ हद तक इस बात को वन अधिकारी तो समझने लगे।
- अभी भी वन अधिकारी गांव के लोगों को यह जरूरी बात नहीं समझा सकते हैं।
- मुख्य कारण सरकार का सारा फोकस और बजट प्रोजेक्ट टाइगर के लिए होता है।
- इसी कारण अधिकारियों का रुख भी हाथों के प्रति सकारात्मक नहीं रहता है।
संक्रमण से बचाव की जिम्मेदारी वन विभाग की ही है
जब पार्क प्रबंधन प्रोजेक्ट टाइगर के लिए जंगल से जुड़े में वन्यजीवों का टीकाकरण कराता है तो निश्चित रूप से जंगल से जुड़े रहने वाले जंगल को भी इस तरह के संक्रमण से बचाने की जिम्मेदारी वन विभाग की होती है।
जिहादियों का पहले ही सर्वे अवेर्मेन्ट की सुरक्षा के लिए जरूरी है
जिस तरह से हाथियों की मौत के बाद जीप को नष्ट कर दिया गया, ठीक उसी तरह से उन आतंकियों की सुरक्षा के लिए भी सर्वे करना जरूरी है।
रिजर्व की ईको वन समितियां पूरी तरह से निष्क्रिय
वन प्रबंधन के अधिकारी हाथियों की सुरक्षा के लिए प्रोजेक्ट टाइगर की तरह ही प्रोजेक्ट एलीफेंट की आवश्यकता पर जो भी देते हैं, रिजर्व की इको वन समितियाँ पूरी तरह से निष्क्रिय हैं। एको वन समितियां सक्रिय हैं तो वन विभाग की सूचना तंत्र इतना खराब नहीं होता कि हाथियों के बीमार होने से 14 घंटे से भी अधिक समय तक इसकी सूचना अधिकारियों तक न दें।
बीमार हाथों के उपचार के लिए सूचनात्मक बैठक के बाद भी तीन से चार घंटे तक चले गए
प्रोजेक्ट टाइगर पर भी अगर पूरी ईमानदारी से काम हो रहा है तो बीमार हाथों के उपचार में सूचना बैठक के बाद भी तीन से चार घंटे तक नहीं दिया गया। हैंडीज़ की मौत ने बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के पूरे प्रबंधन को कठघरे में खड़ा कर दिया है। इस मामले में पूरी दुनिया वन अधिकारियों की ही मनी जा रही है।
10 हाथियों की मौत के तीन अहम कारण जंगल की जानकारी रखने वाले लोग बता रहे हैं
- सबसे पहले माइकोटाक्सिन प्रभावित कोडो से बीमारी की सूचना प्रबंधन को 14 घंटे की देरी से मिली।
- दूसरी वजह यह है कि बीमार हाथों का उपचार लगभग 16 से 17 घंटे बाद शुरू हो जाता है।
- तीसरी महत्वपूर्ण घटनाएँ अनुभव से प्राप्त अनुभव को खुद को यादों के लिए तैयार रखें।
- बांधवगढ़ व दूसरे वन्य एवं ग्रामीण क्षेत्रों में हुई घटनाओं को लेकर पार्क प्रबंधन ने कोई सबक नहीं लिया।
2022 नवंबर में ही पत्थाथा के छतवा बीट घोरीघाट में कोदो से मौत हो गई थी
वर्ष 2022 नवंबर में ही पत्थाथा के छतवा बीट घोरीघाट में कोदो खाने वाले से एक हाथी इसी तरह बीमार हो गया था। सूचना के बाद हाथी का इलाज किया गया लेकिन वह डॉक्टर नहीं जा सका। उस हाथी को रेंजर ने दराज जलवा दिया था। इस मामले में रेंजर के खिलाफ कार्रवाई भी हुई थी।
जानकारी बैठक के दौरान बांधवगढ़ में कोई डॉक्टर भी मौजूद नहीं था
वह मामला अभी भी जांच में है। इस घटना से भी सबक नहीं लिया और 10 हाथियों को अपनी जान गंवाना पड़ा। घटना की जानकारी बैठक के दौरान बांधवगढ़ में कोई डॉक्टर भी मौजूद नहीं था। यहां के डॉक्टर संजय धुबरी रिजर्व में मैनिटरिंग के लिए गए थे।
मदद करने से इनकार करते हुए, जो अत्यंत गंभीर अपराधिक स्थिति है
एक वाइल्ड लाइफ एक्टिविस्ट ने अपनी याचिका में यह जानकारी दी है कि बांधवगढ़ टाइगर रिज़र्व में हाथियों के पदार्थों के सेवन के बाद निकटवर्ती राज्य में सरकारी पशु रसायनों ने मदद करने से इनकार कर दिया है, जो बेहद गंभीर आपराधिक स्थिति है।
उनकी लाग दवाओं की पहुंच में भी काफी समय लगा
यहां सबसे पहले एक महिला चिकित्सक ने इलाज शुरू किया था। अन्य डॉक्टरों तक यहां पहुंचने और फिर उनकी बताई गई दवाओं तक पहुंचने में भी काफी समय लग गया। हाथियों की बीमारी के बाद उनका जो इलाज किया गया वह बहुत ही साधारण था और ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि पहली बार सामने आई घटनाओं से प्रबंधन ने कोई सबक नहीं लिया।
समय से उपचार- दीक्षांत तो शायद कुछ जान बच सकती थी
पार्क प्रबंधन को हमेशा यही उम्मीद रखनी चाहिए कि हाथी या अन्य जानवर कुछ बीमार हों तो वे कैसे सुरक्षित हैं। समय से इलाज और दवा मिल गई तो शायद कुछ हाथियों का जान बच सका।
2021 से अब तक 46 से अधिक बाघों की मौत हो चुकी है
बांधवगढ़ नेशनल पार्क प्रबंधन का पूरा ध्यान बाघों पर रहता है। ये भी सच है कि यहां सबसे ज्यादा बाघ हैं, उनके केस पर भी कई बार इंडस्ट्रीयल स्टॉक्स बिकते हैं। यहां पर आए दिन बाघ की मौत या शिकार की जानकारी भी मिलती है। बांधवगढ़ में वर्ष 2021 से अब तक 46 से अधिक बाघों की मौत हो चुकी है।
अविश्वास करने का विधान है, ऐसा कोई नियम वन विभाग में नहीं
बांधवगढ़ में शिकार के लिए गए बाघों के बीच आपसी संघर्ष और सामान्य मौत के तथ्य सामने आए हैं। संबंधित वन विभाग में टेबलों की कोई तय व्यवस्था नहीं है। जिस प्रकार आयएस और पीएससी आई का तीन साल में स्टॉक करने का प्रावधान है, ऐसा कोई नियम वन विभाग में नहीं है।
अब हाथियों की मौत के बाद सरकार ने पूरे स्टाफ के बदलाव की तैयारी की है
इस कारण एक ही अधिकारी कई-कई साल तक एक ही पार्क में सेवा देता है। अब हाथियों की मौत के बाद सरकार ने यहां पूरे स्टाफ की व्यवस्था की तैयारी की है। मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद वन मुख्यालय ने अपना स्टोर शुरू कर दिया है।
अब मप्र सरकार ने एलिफेंट टास्क फोर्स के गठन का फैसला लिया
देर से आई फिल्म पर अब मप्र सरकार ने एलिफेंट टास्क फोर्स के गठन का फैसला भी ले लिया है। वन विभाग को हाथियों को लावारिस के बजाय उन्हें टाइगर स्टेट की तरह एलिफेंट स्टेट की तरफ कदम बढ़ाने पर विचार करना चाहिए। हमारा प्रदेश तो वैसे भी अतिथि देवो भव: को बदनाम करने वाला है, ऐसे में देश के दिल को हाथियों को भी दिल से स्वीकार करना चाहिए।
नंबर गेम
- पिछले पांच दशकों में देश में 528 हाथियों की मौत हो चुकी है
- 2829 पिछले पांच दशकों में लोगों की जान जा चुकी है
- 2017 में हुई गणना के अनुसार पूरे देश में 29,964 हाथी हैं