बुरहानपुर जिले की सीमा से लगे मेलघाट टाइगर रिजर्व और एक अन्य अभयारण्य से बाघ और तेंदुए जिले के जंगलों में आते-जाते हैं। यहां गत 16 जुलाई को एक मादा तेंदुए का शव मिला था। इसके अलावा हसनपुरा में एक बाघ का भी शव पाया गया था।
By Sandeep Paroha
Publish Date: Fri, 15 Nov 2024 05:34:02 PM (IST)
Up to date Date: Fri, 15 Nov 2024 05:36:10 PM (IST)
HighLights
- प्रयोगशाला से मिली विसरा जांच रिपोर्ट में हुई पुष्टि।
- हसनपुरा में मिले मृत बाघ की मौत प्राकृतिक निकली।
- इंदौर की प्रयोगशाला से तीन विसरा जांच रिपोर्टें मिली।
नईदुनिया प्रतिनिधि, बुरहानपुर। नेपानगर वन परिक्षेत्र की नावरा रेंज के नयाखेड़ा के जंगल में गत 16 जुलाई को मृत मिली मादा तेंदुआ की मौत पार्वो वायरस के कारण हुई थी। इसकी पुष्टि प्रयोगशाला से मिली विसरा जांच रिपोर्ट से इसका पता चला है।
उप वन मंडलाधिकारी अजय सागर ने बताया कि गुरुवार को ही इंदौर की प्रयोगशाला से तीन विसरा जांच रिपोर्टें मिली हैं। दो अन्य जांच रिपोर्ट मृत मोरों और बाघ की है।
रिपोर्ट से पता चला है कि गत 24 फरवरी को बोदरली रेंज के रायगांव के पास हुई छह मोरों की मौत किसानों के केमिकल से उपचारित बीज खाने के कारण हुई थी। जबकि पांच अक्टूबर को नेपानगर के हसनपुरा गांव के पास जंगल में मृत अवस्था में पाए गए बाघ की मौत प्राकृतिक थी।
उसकी आयु नौ वर्ष से ज्यादा हो चुकी थी। उल्लेखनीय है कि बीते माह मृत मिला बाघ का शव चार दिन पुराना होने के कारण गल गया था।
इसके चलते पशु चिकित्सकों के पैनल को पोस्टमार्टम में मौत के कारणों का पता नहीं चल पाया था। इसी तरह मृत मादा तेंदुए को लेकर भी असमंजस की स्थिति बनी हुई थी। इसकी विसरा जांच रिपोर्ट करीब चार माह बाद विभाग को मिली है।
दूसरे वन्यजीवों में पार्वो के लक्षण नहीं
उप वन मंडलाधिकारी अजय सागर ने जंगल के दूसरे वन्यजीवों में पार्वो वायरस के लक्षण फिलहाल नहीं देखे जाने की बात कही है। उन्होंने कहा कि गश्ती दल को भी इस तरह की जानकारी अब तक नहीं मिली है।
बावजूद इसके विभाग सतर्कता बरत रहा है और निगरानी बढ़ा दी गई थी। वन्यजीवों की निगरानी के करीब 600 कैमरे भी लगाए जा रहे हैं।
श्वानों के माध्यम से संक्रमित होते हैं वन्यजीव
विशेषज्ञों का कहना है कि पार्वो वायरस मूलत: श्वानों में पाया जाता है। श्वानों के शिकार, सीधे संपर्क में आने अथवा अप्रत्यक्ष रूप से दोनों के द्वारा एक ही स्थान का पानी पीने और मूत्र से वन्यजीव भी इससे संक्रमित हो जाते हैं।
पशु चिकित्सक विकास माहिले के अनुसार समय पर उपचार मिलने पर श्वान और वन्यजीवों को बचाया जा सकता है। इस वायरस से संक्रमित होने पर श्वान अथवा वन्यजीव कुछ भी खाते अथवा पीते हैं तो उन्हें तुरंत उल्टी हो जाती है। साथ ही दस्त भी लगते हैं।
उपचार नहीं मिलने पर लगातार भूख और दस्त उनकी जान ले लेता है। उप संचालक पशु चिकित्सा विभाग हीरासिंह भंवर का कहना है कि कुछ समय पहले इसी वायरस से संक्रमित एक तेंदुए का पांच दिन तक उपचार कर उसे स्वस्थ किया गया था।