एसईसीएल में अनुकंपा नियुक्ति पाने के कुछ दिन बाद बेटे ने मां की देखभाल करना और खर्च देना बंद कर दिया था। परेशान मां ने हाई कोर्ट में एसईसीएल की नीति के अनुसार बेटे के वेतन से कटौती कर 20 हजार रुपये प्रति माह दिलाने की मांग करते हुए याचिका दायर की थी।
By Yogeshwar Sharma
Publish Date: Wed, 26 Jun 2024 12:29:10 AM (IST)
Up to date Date: Wed, 26 Jun 2024 12:29:10 AM (IST)
नईदुनिया न्यूज, बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने बुजुर्ग मां की जिम्मेदारी नहीं उठाने के एक मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस सचिन सिंह राजपूत की डिवीजन बेंच ने कहा कि पिता की मौत के बाद मां की देखभाल पुत्र की नैतिक जिम्मेदारी बनती है। यह कानूनी दायित्व भी है। मां की सहमति से नौकरी मिली है, इसलिए वह जिम्मेदारी से भाग नहीं सकता। बेटे की अपील खारिज करते हुए हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता मां के बैंक खाते में 10 हजार रुपये प्रतिमाह देने का आदेश बेटे को दिया है। मां को रुपये नहीं देने पर एसईसीएल प्रबंधन को पुत्र के वेतन से कटौती कर सीधे मृतक की आश्रित पत्नी के खाते में राशि जमा कराने का आदेश दिया है।
एसईसीएल में अनुकंपा नियुक्ति पाने के कुछ दिन बाद बेटे ने मां की देखभाल करना और खर्च देना बंद कर दिया था। परेशान मां ने हाई कोर्ट में एसईसीएल की नीति के अनुसार बेटे के वेतन से कटौती कर 20 हजार रुपये प्रति माह दिलाने की मांग करते हुए याचिका दायर की थी। हाई कोर्ट ने संबंधितों को नोटिस भी जारी किया। मामले में एसईसीएल ने जवाब में कहा कि नीति के अनुसार सहमति का उल्लंघन करने पर 50 प्रतिशत राशि काट कर मृतक के आश्रितों के खाते में जमा किया जा सकता है। इसके बाद हाई कोर्ट ने बुजुर्ग मां के पक्ष में फैसला सुनाया और बेटे को हर महीने राशि मां के बैंक खाते में जमा कराने के निर्देश दिए हैं।
जिम्मेदारी उठाने से बच नहीं सकतेः हाई कोर्ट
याचिकाकर्ता मां की याचिका पर सिंगल बेंच ने याचिका को स्वीकार करते हुए पक्ष में फैसला सुनाया था। सिंगल बेंच के फैसले को बेटे ने चुनौती देते हुए डिवीजन बेंच में अपील पेश की थी। याचिकाकर्ता बेटे ने अपने अपील में कहा कि उसे 79 हजार नहीं बल्कि 47 हजार रुपये वेतन मिलता है। इसमें भी ईएमआइ कट रहा है। एसईसीएल के जवाब पर पुत्र ने कहा की याचिकाकर्ता मां को 5,500 रुपये पेंशन मिल रही है। इसके अलावा पिता के सेवानिवृत्त देयक राशि भी उन्हें मिली है। इससे वह अपनी देखभाल कर सकती है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस सचिन सिंह राजपूत की डिवीजन बेंच ने कहा कि मां की सहमति से नियुक्ति मिली है और उसकी जिम्मेदारी उठाने से आप बच नहीं सकते। 10 हजार रुपये देने की सहमति भी दी है, इसलिए खर्च के लिए राशि देना ही होगा। कोर्ट ने फटकार लगाते हुए पुत्र की अपील को खारिज कर दिया।