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By SanjayKumar Sharma
Edited By: Paras Pandey
Publish Date: Mon, 03 Jun 2024 02:00:00 AM (IST)
Up to date Date: Mon, 03 Jun 2024 02:00:00 AM (IST)
संजय कुमार शर्मा/नईदुनिया प्रतिनिधि, उमरिया। मध्य प्रदेश के जंगलों में ज्यादातर प्राकृतिक जल स्रोत सूख चुके हैं और अब सोलर पावर पंप से जंगल में पानी की आपूर्ति की जा रही है। इतना ही नहीं जहां सोलर पावर पंप नहीं है, वहां टैंकरों से पानी भेज कर वाटर होल भरे जा रहे हैं। लगातार पड़ रही तेज गर्मी के बीच जंगल में पानी आपूर्ति एक बड़ा काम है।
जंगल में शांति बनाए रखने के लिए पानी की व्यवस्था बेहद आवश्यक है, जिसके लिए यह प्रयत्न किए जा रहे हैं। इस बारे में जानकारी देते हुए बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर पीके वर्मा ने बताया कि न सिर्फ बांधवगढ़ में बल्कि प्रदेश के सभी टाइगर रिजर्व में गर्मी के मौसम में वाटर होल भरने के लिए सोलर पावर पंप और टैंकरों से पानी की सप्लाई की जाती है।
लगातार बढ़ रही गर्मी के कारण जंगल के अंदर के प्राकृतिक जल स्रोत भी पूरी तरह से सूख गए हैं। सिर्फ उन जल स्रोतों में ही पानी है, जो जंगल के अंदर की पहाड़ियों के नीचे स्थित हैं।
इसके अलावा जंगली नालों और नदियों से जुड़े कुछ स्रोतों में भी पानी है, लेकिन इनकी संख्या और इनमें पानी की मात्रा बेहद कम हो गई है। वर्षा ऋतु तक किसी भी तरह से पानी की उपलब्धता के लिए जंगल के वाटर होल्स को सोलर पावर पंप और टैंकरों से भरा जा रहा है।
प्रदेश के छह टाइगर रिजर्व में साढ़े तीन सौ से ज्यादा सोलर पावर पंप लगाए गए हैं। यह पावर पंप बोर से पानी खींचकर वाटर होल तक पहुंचाते हैं, जिससे वाटर होल लबालब रहते हैं और जंगल के जानवरों को पीने का पानी उपलब्ध रहता है।
एक सोलर पावर पंप से पांच से ज्यादा वाटर होल तक पाइप लाइन डाली गई है। बैटरी के बिना संचालित होने वाले सोलर पावर पंप से पूरा दिन पानी चलता है जबकि रात में पानी चलना बंद हो जाता है।
मध्यप्रदेश के बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में सोलर वाटर पंप की संख्या 70 है। कान्हा में इनकी संख्या 82, पेंच में 65, संजय धुबरी में 25, सतपुड़ा में 55 और पन्ना में 60 है। इसके अलावा इन सभी जंगलों में उन स्थानों पर टैंकरों से भी पानी भेजा जाता है जहां सोलर वाटर पंप नहीं लगाए गए हैं।
जंगल के अंदर पानी की व्यवस्था इस तरह से की गई है कि न सिर्फ बाघ बल्कि शाकाहारी जानवरों को भी सहज ही पानी उपलब्ध हो सके और वे दूसरे क्षेत्रों की ओर रुख न करें।
गर्मी के मौसम में खासतौर से मई और जून में जंगल के अंदर पानी की कमी होने से खतरा काफी बढ़ जाता है। पानी की कमी होने के कारण जानवर पानी की तलाश में निकल पड़ते हैं और इस स्थिति में जब बाघों का आमना-सामना होता है तो उनमें संघर्ष होने लगता है।
इससे बाघों की मौतों का आंकड़ा बढ़ने लगता है। यही कारण है कि जंगल के प्राकृतिक जल स्रोतों के सूखने के पहले ही सोलर वाटर पंप और टैंकरों के माध्यम से पानी की सप्लाई शुरू कर दी जाती है।