Indore Information: इंदौर में जल संरक्षण के लिए अभियान शुरू, रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को 50 हजार करने का लक्ष्य
नगर निगम का सबसे ज्यादा खर्च 450 करोड़ नर्मदा के पानी को जलूद से लाने में। संघमित्र एवं विश्वम के तत्वावधान में भूजल संरक्षण के उद्देश्य से वंदे जल महाअभियान की शुरुआत।
By Sameer Deshpande
Publish Date: Wed, 03 Apr 2024 03:20 PM (IST)
Up to date Date: Wed, 03 Apr 2024 03:20 PM (IST)

Indore Information: इंदौर (नईदुनिया प्रतिनिधि)। जीवन पानी के बिना असंभव है। वंदे जलम और वंदे मातरम एक है। इसकी शुरुआत हमारा सौभाग्य है। नगर निगम का सबसे अधिक खर्च नर्मदा के पानी को जलूद से लाने में होता है। 450 करोड़ रुपये सालाना खर्च होता है। जैसी स्थिति बेंगलुरू की है, वैसी ही इंदौर की ना बने। इसके लिए यह अभियान शुरू किया है, जिसमें सभी की सहभागिता का है। आज की स्थिति में पूरी दुनिया में तीन प्रतिशत पीने योग्य पानी है, इसलिए इंदौर का भूमिगत जल खत्म हो ऐसी स्थिति न आए। हमारा अंडर ग्राउंड वाटर जिस स्पीड से कम हो रहा है, इसे लेकर हम जागरूक नहीं हुए तो बेंगलुरु जैसी स्थिति इंदौर की भी होगी।
यह बात संस्था संघमित्र एवं विश्वम के तत्वावधान में भूजल संरक्षण के उद्देश्य से वंदे जल महाअभियान की शुरुआत के दौरान मंगलवार को रवींद्रनाट्य गृह में की गई। साथ ही बताया कि दस वर्ष पहले 75 से 150 फीट पर पानी उपलब्ध था, लेकिन आज 300 से 700 फीट पर पानी उपलब्ध है। हमारा लक्ष्य है की वर्षा के पानी के आधार पर हमारा चक्र चलाएं। 47 तालाब को खोदने का काम कर रहे हैं। आगामी समय में राऊ के तालाब को पुनर्जीवित करने का काम किया जाएगा, इसका पानी बिलावली, यहां से पिपलियाहाना ओर यहां से कान्ह नदी में मिलेगा। हमारा लक्ष्य रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम 50 हजार करना है।
जल संरक्षण को लेकर आयोजित कार्यक्रम में मौजूद अतिथि।
छह फीट तक के गड्ढ़े खोदकर उसमें पत्थर डाले
बेंगलुरु सहित भारत में जल संरक्षण पर काम करने वाले प्रसन्ना प्रभु ने कहा कि सब कहते हैं की बारिश कम हुई है, इसलिए पानी ज़मीन में नहीं गया। 94 प्रतिशत पानी व्यर्थ जा रहा है, आज उसे हम ज़मीन में उतार पाए तो भूजल बढ़ोतरी तय है, जो हम करना चाहते है उसे आंदोलन बनाना होगा। जन भागीदारी के बगैर यह संभव नहीं है अलग अलग तकनीक का प्रयोग होता है। कान्ह और सरस्वती नदी में भी बहुत गुंजाइश है।
साथ ही बताया कि इंदौर की मिट्टी ठोस है। हमें इसके लिए चार से छह फीट तक का गड्ढा कर उसमें पत्थर डाल देना चाहिए। ताकि पानी आसानी से जमीन में चले जाए। इस प्रयोग से बेंगलुरू में 100 फीट तक वाटर लेवल बढ़ा है। इस दौरान कैबिनेट मंत्री तुलसी सिलावट, विशेषज्ञ संदीप नरूलकर आदि मौजूद रहे।
काम की निगरानी भी जरूरी
अण्णा महाराज ने कहा कि शहर में काम तो शुरू होते हैं, लेकिन उनकी निगरानी नहीं होती है। बावड़ी हादसे के बाद शहर के कुएं, बावड़ी को लेकर अभियान शुरू किया गया था, लेकिन चार-दिन बाद किसी ने ध्यान नहीं दिया। शहर में 1000-1200 सार्वजनिक बोरिंग होंगे, जो दो घंटे से अधिक चलते हैं। पानी का दोहन हो रहा है। इसके लिए कोई ठोस नीति बनाए जाए। जल संरक्षण पर पीएचडी करने वाली निहारिका शिवहरे ने कहा कि जल संरक्षण हमें अपने घरों से शुरू करना है। महिलाएं पानी का सबसे अधिक इस्तेमाल करती है, उसका उपयोग सीमित मात्रा में करे। सुमित सूरी ने कहा कि सभी होटल आधा ग्लास पानी ही दिया जाएगा।





























