बस्तर सीट पर 19 अप्रैल को चुनाव है। यहां 11 प्रत्याशी मैदान में हैं, लेकिन मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही माना जा रहा है। यहां राजनीतिक माहौल भी गरमाने लगा है। बस्तर अंचल के उत्तर में स्थित कांकेर लोकसभा सीट पर 1998 से लगातार भाजपा का कब्जा है।
By Neeraj Pandey
Publish Date: Mon, 01 Apr 2024 05:31 AM (IST)
Up to date Date: Mon, 01 Apr 2024 05:31 AM (IST)
HighLights
- बस्तर में कांग्रेस को बरकरार रहने तो भाजपा को गढ़ में दोबारा वापसी की चुनौती
- छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद कांकेर भाजपा तो बस्तर सीट पर वर्तमान में कांग्रेस का कब्जा
- बस्तर में जमने लगा राजनीतिक माहौल का रंग
विनोद सिंह, जगदलपुर (नईदुनिया)। दक्षिण छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल में बस्तर-कांकेर दोनों लोकसभा सीट प्रदेश की 11 लोकसभा सीटों में बहुत महत्व रखती हैं। बस्तर और कांकेर दोनों सीट अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए सुरक्षित है। बस्तर में 1952 में अस्तित्व में आई इस सीट से वर्तमान में कांग्रेस का कब्जा है। पीसीसी प्रमुख दीपक बैज यहां से सांसद हैं। इस लोकसभा चुनाव में भाजपा ने बस्तर सीट से महेश कश्यप को चुनाव में उतारा है वहीं कांग्रेस ने अपने छह बार के अनुभवी विधायक कवासी लखमा को टिकट दिया है।
कांग्रेस बस्तर सीट को अपने पास बरकरार रखने की चुनौती
कांग्रेस बस्तर सीट को अपने पास बरकरार रखने की चुनौती लेकर मैदान में हैं वहीं, भाजपा अपने इस पुराने गढ़ में दोबारा वापसी का संकल्प लेकर मुकाबले में डटी है। इस लोकसभा सीट पर पहले चरण में 19 अप्रैल को वोटिंग होगी। बस्तर लोकसभा सीट में लगभग 65 फीसद मतदाता आदिवासी हैं। इस लोकसभा क्षेत्र की आठ विधानसभा सीटों में से वर्तमान में पांच पर भाजपा और तीन पर कांग्रेस के विधायक हैं।
लगभग 30 लाख की आबादी वाले बस्तर लोकसभा क्षेत्र में 14 लाख 66 हजार से अधिक मतदाता हैं। उल्लेखनीय है कि 1980 से 1996 तक इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा था। 1998 से 2019 तक सीट लगातार भाजपा के कब्जे थी। पिछले चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को हराकर सीट दोबारा हथिया ली थी। उत्तर बस्तर की अपेक्षा दक्षिण-मध्य बस्तर में विस्तारित बस्तर लोकसभा क्षेत्र में मतदाता जागरूकता कम है। कांकेर लोकसभा में बस्तर क्षेत्र की तुलना में मतदान का प्रतिशत अधिक रहता है
कांकेर में भाजपा लगा रही पूरा जोर
बस्तर अंचल के उत्तर में स्थित कांकेर लोकसभा सीट पर 1998 से लगातार भाजपा का कब्जा है। 2019 के चुनाव में भाजपा के मोहन मंडावी यहां से सांसद बने थे। गढ़िया पहाड़ के कारण चर्चित कांकेर को अपना गढ़ बना चुकी भाजपा के सामने इसे बचाए रखने की चुनौती है। 1967 के परिसीमन में अस्तित्व में आई इस सीट में पहले सांसद भारतीय जनसंघ के टीएपी शाह बने थे। इसके बाद 1971 में कांग्रेस के अरविंद नेताम सांसद चुने गए। 1977 में लोकदल के अघनसिंह ठाकुर ने जीत दर्ज की। 1980 से 1998 तक सीट कांग्रेस के पास के पास रही। इसके बाद से यह सीट भाजपा के कब्जे में हैं।
परिसीमन के पहले उत्तर बस्तर का यह क्षेत्र दुर्ग, बस्तर और रायपुर लोकसभा में विभाजित था। वर्तमान में कांकेर, धमतरी, बालोद और कोंडागांव जिले में विस्तारित कांकेर लोकसभा क्षेत्र की आबादी लगभग 29 लाख और मतदाता 16 लाख से अधिक हैं। इनमें लगभग 42 फीसद आदिवासी मतदाता हैं। लोकसभा क्षेत्र अंतर्गत आने वाली आठ विधानसभा सीटों में तीन पर भाजपा और पांच पर कांग्रेस के विधायक हैं।
बस्तर अंचल में दक्षिण की अपेक्षा उत्तर बस्तर राजनीतिक, सामाजिक दृष्टि से अपेक्षाकृत अधिक जागरूक है। कांकेर लोकसभा क्षेत्र में जागरूकता के साथ ही शिक्षा का स्तर भी बेहतर है। कांकेर सीट के लिए लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में 26 अप्रैल को चुनाव है। यहां भाजपा के इस बार वर्तमान सांसद मोहन मंडावी की टिकट काटकर उनके स्थान पर अंतागढ़ के पूर्व विधायक भोजराज नाग को मैदान में उतारा है। कांग्रेस ने 2019 में प्रत्याशी रहे वीरेश ठाकुर पर भी भरोसा जताया है।