Kachchatheevu Island Controversy: किसने श्रीलंका को दिया देश का हिस्सा, कच्छथीवू का काला किस्सा

Kachchatheevu Island Controversy: किसने श्रीलंका को दिया देश का हिस्सा, कच्छथीवू का काला किस्सा

50 साल पुरानी दोस्ती के लिए भारत की संप्रभुता से खिलवाड़ किया गया। भारत के एक द्वीप को श्रीलंका को केक के टुकड़े की तरह प्लेट में सजाकर सौंप दिया गया। दक्षिण भारत का कभी हिस्सा रहा यह भाग अब भारत की संप्रभुता के लिए चुनौती बन गया है।

By Anurag Mishra

Publish Date: Mon, 01 Apr 2024 11:14 PM (IST)

Up to date Date: Tue, 02 Apr 2024 01:30 AM (IST)

कच्छथीवू का काला किस्सा।

मनीष त्रिपाठी, नई दिल्ली। 50 साल पुरानी दोस्ती के लिए भारत की संप्रभुता से खिलवाड़ किया गया। भारत के एक द्वीप को श्रीलंका को केक के टुकड़े की तरह प्लेट में सजाकर सौंप दिया गया। दक्षिण भारत का कभी हिस्सा रहा यह भाग अब भारत की संप्रभुता के लिए चुनौती बन गया है। यहां अब श्रीलंका ने नौसेना का अड्डा बना लिया है। मनीष त्रिपाठी का आलेख…

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इतिहास को कितना भी छुपाने की कोशिश करो वह सत्य के सूरज की तरह एक ना एक दिन बाहर निकल ही आता है। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारत का एक टुकड़ा काटकर श्रीलंका की तत्कालीन प्रधानमंत्री सिरीमावो भंडारनाइके को 1974 में सौंप दिया। इस हिस्से का नाम था कच्छथीवू द्वीप। यह किसी दबाव, दहशत में नहीं थी, बस वह दोनों का मिजाज एक था, इसलिए दोस्ती जरा गहरी थी।

कच्छथीवू द्वीप रामेश्वरम (तमिलनाडू) से करीब 14 समुद्री मील (लगभग 25 किलोमीटर) की दूरी पर बंगाली खाड़ी और हिंद महासागर के बीच में है। यह डेढ़ वर्ग किलोमीटर में फैला क्षेत्र है।

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कच्छथीवू द्वीप ज्वालामुखी विस्फोट से पैदा हुआ था। इसका इतिहास हर भारतीय के आराध्य तीर्थ श्रीरामसेतु से जुड़ा हुआ है। उसके बाद भी एक संधि के नाम पर इसको भारत से अलग कर दिया गया। इस द्वीप के लिए उठाई गई हर आवाज को दबाया जाता रहा, लेकिन 10 अगस्त, 2023 का दिन अलग था। संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अविश्वास प्रस्ताव में विपक्ष को जवाब दे रहे थे। उन्होंने कुपित-व्यथित होकर कहा था कि तमिलनाडु से आगे और श्री लंका से पहले एक द्वीप है, किसी ने किसी दूसरे देश को दे दिया था। क्या वो मां भारती का अंग नहीं था!

भारत को आजाद करते समय दो हिस्सों में बांटने वाले अंग्रजों को भी कच्छथीवू द्वीप को लेकर कोई शंका नहीं थी। वह इसे भारत को ही सौंपकर गए। यह द्वीप भारत की ओर से रामेश्वरम और श्रीलंका की तरफ से जाफना के पास पड़ता है।

मध्यकाल में जाफन के शासक ने इस कच्छथीवू द्वीप को जीतने की काफी कोशिश की। उनके दरबारी इतिहासकारों ने खूब लिखा कि यह उनकी विजयी की निशानी है, लेकिन इस बार शासन मदुरै (तमिलनाडु) के शासन रामनद राजवंश का चलता था।

इस राजवंश के शासक सेतुपति की उपाधि धारण करते थे, क्यों कि श्रीरामसेतु इस क्षेत्र का था। ईस्ट इंडिया कंपनी ने कुटिल बुद्धि का इस्तेमाल कर 1795 में इस क्षेत्र को वारिस के विवाद में फंसाकर हड़प लिया। उसके बाद इसे मद्रास प्रेसीडेंसी की जमींदारी घोषित कर दी।

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समय बीता और कंपनी का राज खत्म होकर ब्रिटिश का शासन शुरू हुआ। मद्रास प्रसिडेंसी और सीलोन (तत्कालीन श्रीलंका) दोनों पर अंग्रेजों का ही शासन चलता था। सीलोन का दावा था कि कच्छथीवू उनका हिस्सा है। 1921 में विवाद बहुत बढ़ गया, लेकिन अंग्रजों ने एतिहासिक तथ्यों को देखकर इसका स्वामित्व भारत को ही दिया। अंग्रेज जाते समय भारत से पाकिस्तान नाम का देश बनाकर गए, लेकिन कच्छथीवू को छू भी नहीं सके।

भारत की आजादी के बाद कच्छथीवू भारत की संप्रभुता में सुरक्षित था। भारतीय मछुआरे वहां तक जाकर मछलियों का आखेट कर द्वीप पर जाल सुखाते आराम करते थे।

भारत में सत्ता बदली कांग्रेस का राज आया। समय के साथ जवाहरलाल नेहरू की पुत्री उनकी इंदिरा प्रधानमंत्री बनीं। उसी दौर में श्रीलंका में महिला प्रधानमंत्री सिरीमावो भंडारनायके नेतृत्व में आईं। दोनों के गुण एक ही जैसे थे। वही सख्त मिजाज, विपक्ष को नकारना, बाद के वर्षों में एक और समानता देखी गई कि दोनों ने ही अपने-अपने देशों में आपातकाल थोपा था।

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साल 1974 को दोनों देशों के बीच जून-अगस्त में दो बैठकें हुई। पहली बैठक दिल्ली में व दूसरी बैठक कोलंबो में की गई। इस बैठक ने एक सखी ने दूसरी से तोहफा मांग लिया। फिर क्या था दूसरी बड़े ही प्यार से भारत मां के शरीर के एक टुकड़े को दूसरे को थमा दिया। यह कितना आसान था इंदिरा गांधी के लिए।

कच्छथीवू अब श्रीलंका का था। करुणानिधि विरोध करते रहे, जयललिता सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गई। फिर भी कुछ हाथ नहीं लगा, क्यों कि इतिहास में सब बदल गया था। इंदिरा गांधी ने अपनी सखी को जो द्वीप यूं ही तोहफे में दे दिया। उस द्वीप पर श्रीलंका ने जाफना में गृहयुद्ध की आड़ लेकर एक मजबूत नौसेना बेस बना दिया है। श्रीलंका वित्तीय संकट में चीन के बोझ तले दबा हुआ है। यह भारत के सामरिक दृष्टि से बहुत ही चिंताजनक है।

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    अनुराग मिश्रा नईदुनिया डिजिटल में सब एडिटर के पद पर हैं। वह कंटेंट क्रिएशन के साथ नजर से खबर पकड़ने में माहिर और पत्रकारिता में लगभग 3 साल का अनुभव है। अनुराग मिश्रा नईदुनिया में आने से पहले भास्कर हिंदी और दैन

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