करीला धाम का रंगपंचमी मेला : जहां विराजीं हैं माता जानकी, वह पहाड़ी फिर रोशन होने को तैयार

करीला धाम का रंगपंचमी मेला : जहां विराजीं हैं माता जानकी, वह पहाड़ी फिर रोशन होने को तैयार

Karila Dham Ashoknagar: शोकनगर के तीन दिवसीय आयोजन में होगा आस्था व लोकसंस्कृति का संगम।

By Sachin Sharma

Publish Date: Thu, 28 Mar 2024 04:00 AM (IST)

Up to date Date: Thu, 28 Mar 2024 04:00 AM (IST)

करीला मेले का विंहगम दृश्य।

HighLights

  1. मन्नतें पूरी होने पर श्रद्धालु इस धाम में नृत्यांगनाएं से कराते हैं राई नृत्य।
  2. 20 लाख से अधिक श्रद्धालु मां जानकी के दरबार में दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं।
  3. करीला पहाड़ी करीब पांच वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हुई है।

Karila Dham Ashoknagar: सचिन शर्मा, अशोकनगर। राजधानी भोपाल से करीब 165 किलोमीटर दूर अशोकनगर जिले में पहाड़ी पर स्थापित करीला धाम में हर वर्ष रंगपंचमी पर लगने वाले मेले में आस्था और लोकसंस्कृति का अनूठा संगम देखने को मिलता है। धाम के प्रति लोगों में आस्था इतनी गहरी है कि रंगपंचमी मेले में दूर-दूर से करीब 20 लाख से अधिक श्रद्धालु मां जानकी के दरबार में दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं।

अमूमन मंदिरों में माता सीता के साथ भगवान राम की प्रतिमा स्थापित होती है, लेकिन बीहड़ में निर्जन पहाड़ी पर बसे इस मंदिर में मां जानकी के साथ लव-कुश और महर्षि वाल्मीकी की प्रतिमाएं ही हैं। खास बात यह भी है कि यहां पर लोग साल भर अपनी मन्नतें मांगते हैं और उनके पूरी होने पर रंगपंचमी के दिन बुंदेलखण्ड का पारंपरिक राई नृत्य करवाते हैं।

हालांकि पारंपरिक रूप से यह नृत्य बेड़नी समुदाय की युवतियां नगाड़े और ढोलक की थाप पर करती थीं, लेकिन बदलते समय के साथ परंपराओं का स्वरूप भी बदला और अब यहां कंजर और किन्नर आदि भी नृत्य के लिए पहुंचते हैं। अनुमान के मुताबिक, करीब पांच हजार नृत्यांगनाएं यहां पर लोगों की मन्नतें पूरी होने पर नृत्य करती हैं। सदियों से निभाई जा रही इस परंपरा ने अब बड़ा स्वरूप ले लिया हैं।

पहाड़ी पर तीन दिन तक होता है बड़े शहर सा नजारा

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अशोकनगर-विदिशा जिले की सीमा पर करीला पहाड़ी करीब पांच वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हुई है। इस पहाड़ी पर अगले तीन दिनों तक किसी बड़े शहर सा नजारा दिखेगा। रंगपंचमी के दिन यहां पर मध्य प्रदेश के विभिन्न स्थानों के अलावा राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश के अलावा देश के कई राज्यों से श्रद्धालु मां जानकी के दर्शन करने पहुंचते हैं।

लाखों भक्तों की भीड़ जुटने के चलते पहाड़ी से चार किलोमीटर दायरे तक यह प्राचीन मेला फैल गया है। इसमें करीब दो हजार दुकानें लगती हैं और मात्र तीन दिनों में करोड़ों का व्यापार होता है। ग्राम पंचायत जसैया की ओर से सिर्फ तीन दिन में दुकानों का आवंटन करके हर साल करीब 15 लाख रुपए आय हासिल की जाती है, जो मंदिर की व्यवस्थाओं में लगाई जाती है। इस मेले का संचालन जिला प्रशासन द्वारा किया जाता है। मंदिर की दूसरी व्यवस्थाओं के लिए ट्रस्ट भी बना है, जिसमें प्रशासनिक हस्तक्षेप रहता है।

करीला से जीवंत है बुंदेलखंड का लोकनृत्य

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बुंदेलखंड के पारंपरिक राई नृत्य को मेले में जीवंत देखा जा सकता है। मेले के दौरान यहां आने वाली नृत्यांगनाएं एक दिन में इतना कमा लेती हैं कि कई माह तक उनका खर्चा यहीं से प्राप्त आय से चलता है। मन्नत मांगने के दौरान श्रद्धालु माता के समक्ष काम पूरा होने पर नृत्यांगनाओं की संख्या बोलते हैं, उतनी ही संख्या में नृत्यांगनाएं पूरी रात नृत्य करती हैं। वहीं आर्थिक तौर पर कम सक्षम लोग थोड़ी राशि में अल्प समय के लिए नृत्य करवाते हैं।

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    नईदुनिया डॉट कॉम इंदौर में मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़ डेस्क पर वरिष्ठ उप-संपादक। पत्रकारिता और जनसंचार में देवी अहिल्या विश्वविद्यालय इंदौर से बैचलर और विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन से मास्टर्स डिग्री। इंदौर में 2014

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