Rajgarh Lok Sabha Seat: वर्ष 1998 के चुनाव में तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के छोटे भाई लक्ष्मण सिंह को हराने उतारा था कैलाश जोशी को।
By Prashant Pandey
Publish Date: Wed, 27 Mar 2024 03:30 AM (IST)
Up to date Date: Wed, 27 Mar 2024 03:30 AM (IST)
HighLights
- प्रदेशाध्यक्ष, मंत्री, मुख्यमंत्री सहित कई महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके कैलाश जोशी प्रदेश की राजनीति में बड़ा नाम थे।
- लोगों अनुमान लगा रहे थे कि पूर्व मुख्यमंत्री और लोकप्रिय नेता जीत हासिल कर लेंगे, लेकिन नतीजों ने सबको चौंका दिया।
- दिग्विजय सिंह के भाई की पहचान वाले लक्ष्मण सिंह के सामने जोशी को हार का सामना करना पड़ा था।
Rajgarh Lok Sabha Seat: राजगढ़। एक ओर राजगढ़ कांग्रेस विशेष तौर पर राजा दिग्विजय सिंह के गढ़ के रूप में विख्यात था वहीं पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी की ख्याति पूरे प्रदेश में लोकप्रिय जननेता के रूप में होती थी। उनकी सादगी एवं इमानदार छवि के चलते उन्हें राजनीति का संत भी कहा जाता था। राजगढ़ सीट पर लगातार दिग्विजय सिंह या उनके समर्थक जीत हासिल करते चले आ रहे थे। 1998 में कांग्रेस ने यहां से दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह को उतारा तो भाजपा ने उनकी काट के रूप में कैलाश जोशी को उतारकर सबको चौंका दिया।
भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष, मंत्री, मुख्यमंत्री सहित कई महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके कैलाश जोशी प्रदेश की राजनीति में बड़ा नाम थे। लोगों अनुमान लगा रहे थे कि पूर्व मुख्यमंत्री और लोकप्रिय नेता जीत हासिल कर लेंगे, लेकिन नतीजों ने सबको चौंका दिया। दिग्विजय सिंह के भाई की पहचान वाले लक्ष्मण सिंह के सामने जोशी को हार का सामना करना पड़ा था।
राजगढ़ लोकसभा सीट पर 1984 से अधिकतर समय कांग्रेस व राघौगढ़ राज परिवार का कब्जा रहा। 1993 में जब दिग्विजयसिंह मुख्यमंत्री बने तो उनके छोटे भाई लक्षमणसिंह 1994 का उपचुनाव, 1996 का आम चुनाव जीत चुके थे। लक्ष्मण सिंह जीत तो रहे थे लेकिन दिग्विजय सिंह के सत्ता में रहने और लक्ष्मण सिंह के लगातार जीतने के बीच कई विवाद भी उनके नाम के साथ जुड़े हुए थे, ऐसे में अंदर खाने में उनका विरोध भी था।
1998 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने फिर से लक्ष्मणसिंह को मैदान में उतारा। ऐसे में भाजपा को यह अच्छा मौका लगा चुनौती बनी इस सीट को जीतने और दिग्विजय सिंह को भी घेरने का। भाजपा ने जीत दर्ज करने के लिए मप्र के दिग्गज व पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी को मैदान में उतारा। जोशी ने लक्ष्मण के सामने इस चुनौती को सहर्ष स्वीकार किया और राजगढ़ लोकसभा क्षेत्र में आकर डेरा डाल लिया। लोकप्रिय तो वे थे ही, कार्यकर्ताओं व नेताओं के साथ व्यापक स्तर पर प्रचार-प्रसार ने भी बदलाव की हवा बनाने का काम किया।
शहरों के साथ गांव-गांव पहुंचकर उन्होंने प्रचार-प्रसार की शुरूआत की। मध्य प्रदेश के भी कई बड़े नेताओं ने लोकसभा क्षेत्र में पहुंचकर इसी सीट पर भाजपा उम्मीदवार को जीत दर्ज करवाने के भरसक प्रयास किए। उधर लक्ष्मणसिंह की और से खुद दिग्विजयसिंह ने चुनाव के दौरान सभाएं करते हुए अनुज को जिताने का आव्हान किया। जब परिणाम आए तो फिर से लक्ष्मणसिंह जीत गए व पूर्व मुख्यमंत्री राजनीति के संत कहे जाने वाले कैलाश जोशी को हार का सामना करना पड़ा था।