Holi 2024: भोपाल में गोकाष्ठ व कंडों से होलिका दहन कर दिया पर्यावरण बचाने का संदेश
दो हजार से अधिक सार्वजनिक स्थानों पर पूजा-अर्चना के बाद होलिका दहन शुरू हुए, जो देर रात तक जारी रहा।
By Hemant Kumar Upadhyay
Publish Date: Mon, 25 Mar 2024 05:58 AM (IST)
Up to date Date: Mon, 25 Mar 2024 05:58 AM (IST)

HighLights
- भोपाल में दो हजार से अधिक स्थानों होलिका दहन हुए
- आज धुलेंडी पर उड़ेगा गुलाल, निकलेगा परंपरागत होली चल समारोह
- भाईदूज 27 मार्च को मनेगी
भोपाल। होलिका दहन को लेकर रविवार को सुबह से ही शहर में चहल-पहल शुरू हो गई थी। 45 से अधिक स्थानों पर गोकाष्ठ व कंडे खरीदते हुए लोग दिखे। साथ ही गेहूं की बालियां, रंग-गुलाल व बच्चों के लिए शहरवासियों ने छोटे व बड़े बाजारों से पिचकारियां खरीदीं। रात 10:30 बजे होते-होते होलिका दहन करने में जुट गई। रात 10:35 बजे भद्रा का साया समाप्त होने पर अधिकांश स्थानों पर होलिका दहन किया।
दो हजार से अधिक सार्वजनिक स्थानों पर पूजा-अर्चना के बाद होलिका दहन शुरू हुए, जो देर रात तक जारी रहा। गोकाष्ठ व कंडों से होलिका दहन करके शहरवासियों ने पर्यावरण बचाने का संदेश दिया। लोगों ने होलिका की परिक्रमा कर सुख शांति व संतान के दीघार्यु के लिए आशीर्वाद मांगा। ज्योतिषाचार्य पंडित विष्णु राजौरिया व मां चामुंडा दरबार के पुजारी पंडित रामजीवन दुबे ने बताया होलिका दहन पर इस बार छह विशेष योग धन शक्ति,त्रिग्रही,बुधादित्य, रवि, सर्वार्थ सिद्धि व वृद्धि योगों के साथ उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में होलिका दहन किया गया। रविवार के दिन उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र की साक्षी में अधिकांश स्थानों पर भद्रा के बाद पूजन किया गया।
कुछ जगहों पर 9:30 बजे के बाद होलिका दहन शुरू हुए
होलिका दहन के साथ रविवार से उत्साह,उमंग और पांच दिवसीय होली उत्सव शुरू हो गया। इस बार होलिका दहन भद्रा होने के चलते रात 10:50 बजे के बाद रात्रि 11:14 से 12:24 बजे तक होलिका दहन शुभ मुहूर्त था। अधिकांश जगहों पर इसी मुहूर्त में होलिका दहन किया गया। कुछ कालोनी व बच्चों द्वारा रात 9:30 बजे के बाद होली का दहन शुरू कर दिया था, लेकिन बड़ी समितियों द्वारा शुभ मुहुर्त में ही होलिका दहन किया गया।
सोमवार को शहर में धुलेंडी की धूम रहेगी। रंगों के इस पर्व पर शहर रंगों से सराबोर नगर आएगा। लोग एक-दूसरे को रंग गुलाल अबीर लगाकर होली की बधाई देंगे। बच्चे भी पिचकारियों से एक दूसरे पर रंग बरसाएंगे। सुबह से शाम तक शहर की सड़कों से लेकर रहवासी कालोनियों में जगह-जगह होली का नजारा देखने को मिलेगा। इस दौरान श्री हिंदू उत्सव समिति पुराने शहर शहर में रंगारंग चल समारोह निकलेगा। ढोल-नागड़े, डीजे की धुन पर थिरके हुरियारे गली-गली रंग बिखेरेंगे। पांच किलोमीटर के इस चल समारोह का जगह-जगह स्वागत किया जाएगा। नए शहर में भी अलग-अलग स्थानों पर आदर्श चुनाव संहिता का पालन करते हुए चल समारोह निकलेंगे।
इन प्रमुख स्थानों पर हुआ होलिका दहन
पुराने शहर के चौक बाजार, सोमवारा, कोलार, भेल, जवाहर चौक जुमेराती, घोड़ा नक्कास, मंगलवारा, इतवारा, शाहजहांनाबाद, भोइपुरा, लालघाटी, सफाखाना, माता मंदिर, होली चौराहा अशोका गार्डन, पीपल चौराहा करोंद, गणेश मंदिर छोला, बस स्टैंड, इब्राहिमगंज, टीला जमालपुरा, रामानंद कालोनी, लालघाटी चौराहा, विजय नगर, गांधी नगर, सफा खाना, न्यू मार्केट रंगमहल चौराहा, जवाहर चौक टीटी नगर, भदभदा चौराहा, चांदबड़-रातीबड़, त्रिलंगा, कोटरा, नेहरू नगर समेत 2000 से अधिक स्थानों पर होलिका दहन हुआ।
होलिका दहन की पौराणिक कथा
पंडित जगदीश शर्मा ने बताया कि हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु का घोर विरोधी था, लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद उतना ही बड़ा विष्णु भक्त था, बेटे की विष्णु भक्ति देखकर हिरण्यकश्यप बहुत ही दुखी और क्रोधित होता था। उसने अपने बेटे को कई बार विष्णु भक्ति से दूर करने का प्रयास किया। लेकिन हर बार श्रीहरि विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गए। यह देखकर हिरण्यकश्यप और भी क्रोधित हो गया। उसने अपनी बहन होलिका को अपने पुत्र प्रह्लाद को जलाकर मारने के लिए कहा होलिका को एक दिव्य चादर प्राप्त थी, जिसको ओढ़ लेने से उस पर आग का प्रभाव नहीं होता था। होलिका हिरण्यकश्यप के आदेश को मानते हुए फाल्गुन पूर्णिमा की रात प्रह्लाद को मारने के लिए तैयार हो गई । होलिका स्वयं वह दिव्य चादर ओढ़ ली और प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर आग में बैठ गई। प्रह्लाद भगवान विष्णु का नाम जपते रहे। श्रीहरि की कृपा से भक्त प्रह्लाद बच गए और होलिका उस आग में जलकर भस्म हो गई। इस तरह से अधर्म पर धर्म की जीत हुई, तब से हर साल फाल्गुन पूर्णिमा को होलिका दहन किया जाता है।


