बालाघाट लोकसभा सीट पर 1989 में निर्दलीय कंकर मुंजारे ने जनता दल को दी थी 10,466 वोटों से शिकस्त
Balaghat Lok Sabha Seat: कंकर को पूरन आडवाणी से मिले समर्थन ने चुनाव की दशा-दिशा बदल दी और जनता दल व कांग्रेस के दिग्गजों को करारी हार झेलनी पड़ी।
By Yogesh Kumar Gautam
Publish Date: Tue, 19 Mar 2024 04:30 AM (IST)
Up to date Date: Tue, 19 Mar 2024 04:30 AM (IST)

Balaghat Lok Sabha Seat: योगेश कुमार गौतम, बालाघाट। बालाघाट के राजनीतिक इतिहास में अब तक भाजपा व कांग्रेस दो दलों का ही प्रभुत्व रहा है, लेकिन वर्ष 1989 में एक दौर ऐसा भी आया था, जब इन दोनों दलों के उम्मीदवारों को एक निर्दलीय उम्मीदवार से शिकस्त झेलनी पड़ी थी। 35 साल पहले निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले कंकर मुंजारे ने जनता दल के उम्मीदवार केडी देशमुख को 10 हजार 466 मतों के बेहद कम अंतर से हराकर, उस चुनाव में पांसा ही पलट दिया था।
उस चुनाव में केडी देशमुख की जीत की प्रबल संभावना थी, लेकिन मतदाताओं ने निर्दलीय प्रत्याशी पर विश्वास जताकर चुनाव परिणाम ही बदल दिए। कंकर मुंजारे सर्वाधिक मतों के साथ मत प्रतिशत में भी सबसे आगे रहे। 1989 के लोकसभा चुनाव में जिले में कुल 7.91 लाख मतदाता थे।
इनमें से जनता दल, कांग्रेस और निर्दलीय प्रत्याशी तीनों को एक लाख से अधिक मत मिले थे, लेकिन जीत के अंतर को पार करते हुए कंकर मुंजारे सांसद की कुर्सी तक पहुंचने में सफल रहे। कंकर मुंजारे को 33.4 वोट प्रतिशत के साथ एक लाख 77 हजार 870 मत मिले थे। दूसरे स्थान पर जनता दल से केडी देशमुख को 31.4 वोट प्रतिशत के साथ एक लाख 67 हजार 404 मत मिले।
तीसरे स्थान पर थे कांग्रेस के नंदकिशोर शर्मा, जिन्हें एक लाख 34 हजार 234 मत मिले और मत प्रतिशत रहा 25.2 प्रतिशत। नंदकिशोर शर्मा ने इससे पहले 1980 में सांसद का चुनाव जीता था, लेकिन दोनों दलों के खिलाफ चली लहर ने निर्दलीय प्रत्याशी को जिले का सिरमौर बना दिया। हालांकि, कंकर मुंजारे के सांसद बनने के पीछे तब के भाजपा के कद्दावर नेता पूरन आडवाणी का बड़ा रोल था।
पूरन आडवानी ने कंकर मुंजारे को खुलकर समर्थन दिया था। उस समय पूरन आडवाणी का बालाघाट जिले में प्रभाव था। कंकर को पूरन आडवाणी से मिले समर्थन ने चुनाव की दशा-दिशा बदल दी और जनता दल व कांग्रेस के दिग्गजों को करारी हार झेलनी पड़ी। हालांकि, कंकर मुंजारे की किस्मत में सांसद पद सिर्फ 11 महीनों तक ही नसीब हो सका। तब वीपी सिंह की सरकार गिर गई थी।


