अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय ने तर्क दिया कि राजनीतिक प्रतिद्वंदी द्वारा हाई लेवल जांच कमेटी पिछड़ा वर्ग के समक्ष उक्त मामले को लेकर शिकायत की गई थी। कमेटी ने शिकायत पर कलेक्टर व एसपी उमरिया से जांच कराई थी। दोनों ही अधिकारियों ने अपनी जांच रिपोर्ट में जाति प्रमाण पत्र को सही ठहराया था।
By Paras Pandey
Publish Date: Thu, 08 Feb 2024 10:43 PM (IST)
Up to date Date: Thu, 08 Feb 2024 10:43 PM (IST)
जबलपुर, (नईदुनिया प्रतिनिधि)। हाई कोर्ट ने राजपत्र में ओबीसी घोषित सिंधी जाति का प्रमाण पत्र निरस्त करने पर रोक लगा दी। न्यायमूर्ति राजमोहन सिंह की एकलपीठ ने इस अंतरिम आदेश के साथ ही हाई लेवल कमेटी को नोटिस जारी कर जवाब-तलब कर लिया। इसके लिए चार सप्ताह का समय दिया गया है।
याचिकाकर्ता उमरिया निवासी जानकी सिंधी की ओर से अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि भारत के राजपत्र में चार अप्रैल, 2000 को प्रकाशित अधिसूचना के अनुसार सिंधी जाति पिछड़ा वर्ग के रूप में घोषित की गई है। सिंधी जाति को मध्य प्रदेश की केंद्रीय सूची में पिछड़ा वर्ग के रूप में घोषित किया गया है। जिस आधार पर अनुभिभागीय अधिकारी ने याचिकाकर्ता के पक्ष में पिछड़ा वर्ग का प्रमाण पत्र जारी किया था।
राजनीतिक प्रतिद्वंदी की शिकायत पर कार्रवाई
अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय ने तर्क दिया कि राजनीतिक प्रतिद्वंदी द्वारा हाई लेवल जांच कमेटी पिछड़ा वर्ग के समक्ष उक्त मामले को लेकर शिकायत की गई थी। कमेटी ने शिकायत पर कलेक्टर व एसपी उमरिया से जांच कराई थी। दोनों ही अधिकारियों ने अपनी जांच रिपोर्ट में जाति प्रमाण पत्र को सही ठहराया था।
इसके बावजूद हाई लेवल कमेटी पिछड़ा वर्ग जाति कल्याण विभाग ने 21 दिसंबर 2023 को बिना कोई सुनवाई का अवसर दिए याचिकाकर्ता के जाति प्रमाण पत्र को निरस्त कर दिया गया। जबकि 21 दिसंबर 2023 की सुनवाई का नोटिस याचिकाकर्ता को दो दिन बाद 23 दिसंबर 2023 को प्राप्त हुआ था। ऐसी स्थिति में पूर्व में ही आदेश जारी किया जाना अवैधानिक है।