Priya Dutt Interview; Speaks About Overcoming Most cancers Concern and Therapy | प्रिया दत्त बोलीं- कैंसर से डरना नहीं, लड़ना है: कहा- कैंसर का मतलब मौत नहीं, सही समय पर इलाज जरूरी, जागरूक होना सबसे अहम

Priya Dutt Interview; Speaks About Overcoming Most cancers Concern and Therapy | प्रिया दत्त बोलीं- कैंसर से डरना नहीं, लड़ना है: कहा- कैंसर का मतलब मौत नहीं, सही समय पर इलाज जरूरी, जागरूक होना सबसे अहम

मुंबई5 घंटे पहलेलेखक: आशीष तिवारी

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आज वर्ल्ड कैंसर डे (4 फरवरी) है। इस मौके पर दैनिक भास्कर ने पूर्व लोकसभा सांसद और सोशल वर्कर प्रिया दत्त से बात की। प्रिया दिवंगत एक्टर सुनील दत्त और नरगिस की बेटी हैं। 1981 में नरगिस की कैंसर से मौत के बाद सुनील दत्त ने नरगिस दत्त फाउंडेशन की शुरुआत की थी। यह फाउंडेशन कैंसर से पीड़ित मरीजों की मदद और उन्हें अच्छी चिकित्सा मुहैया कराने की सोच से शुरू किया गया था।

सुनील दत्त के निधन के बाद प्रिया दत्त ने इस फाउंडेशन को आगे बढ़ाया। आज इस फाउंडेशन के जरिए हजारों कैंसर पेशेंट की मदद की जा चुकी है। प्रिया ने कहा कि हमें कैंसर से डरना नहीं बल्कि लड़ना है। लोग कैंसर का नाम सुनकर ही डर जाते हैं। उन्हें लगता है कि कैंसर का मतलब मौत ही है। ऐसा नहीं है, अगर सही समय पर इसका इलाज हो जाए तो इससे बचा जा सकता है।

जिनके पास इलाज के लिए पैसे नहीं हैं, हमारा फाउंडेशन उन्हीं के लिए काम करता है
प्रिया दत्त ने कहा, ‘कैंसर के लिए अवेयरनेस फैलाने के लिए हमने 1981 में नरगिस दत्त फाउंडेशन की शुरुआत की थी। उस वक्त तक ज्यादातर लोगों को इस बीमारी के बारे में पता नहीं था। हालांकि उस वक्त इसके पेशेंट भी कम हुआ करते थे। आज यह संख्या काफी बढ़ गई है, लेकिन एक बात अच्छी है कि लोग अब पहले की तुलना में ज्यादा जागरूक हो गए हैं।

कैंसर से डरने की जरूरत नहीं, बस जागरूकता होनी चाहिए
प्रिया ने कहा कि लोगों को कैंसर का नाम सुनकर डरने की जरूरत नहीं है। कैंसर की तुलना में अभी भी हार्ट अटैक से ज्यादा लोग मरते हैं। लोगों को लगता है कि कैंसर का मतलब मौत है। ऐसा नहीं है, अगर सही समय में बीमारी का पता चल जाए तो इसे ठीक किया जा सकता है। हमें बस जागरूकता दिखानी है।

अगर बॉडी में कुछ भी परेशानी दिखे, उसकी तुरंत जांच करानी चाहिए। मुंह में भी कुछ हुआ तो उसे छाला समझ कर इग्नोर मत कीजिए। हमें कैंसर से डरना नहीं बल्कि लड़ना है। हमें समय-समय पर टेस्ट कराते रहना चाहिए। अगर बीमारी को जल्दी डिटेक्ट कर लिया तो इसका ट्रीटमेंट भी आसान और सस्ता हो जाता है।

कोई मरीज पैसे के अभाव में अपनी जान न गंवाए, यही फाउंडेशन का लक्ष्य
प्रिया दत्त ने कहा कि उनका ऑर्गेनाइजेशन मुंबई के टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल के साथ मिलकर काम करता है। नरगिस दत्त फाउंडेशन मरीजों को वहां भेजती है। उनके लिए फंड्स इकट्ठा करती है। पेशेंट्स की काउंसलिंग भी करती है।

साधारण से साधारण व्यक्ति भी फाउंडेशन तक पहुंच सकता है
अगर किसी छोटे शहर के व्यक्ति को आपके फाउंडेशन तक पहुंचना हो तो क्या करना पड़ेगा। जवाब में उन्होंने कहा, ‘हमारी वेबसाइट है। वहां फोन नंबर्स भी दिए गए हैं। सोशल मीडिया पर भी हमारा प्रेजेंस है। जब आप गूगल पर नरगिस दत्त फाउंडेशन टाइप करेंगे तो सारी जानकारियां मिल जाएंगी।

जब भी हमारे पास किसी मरीज का फोन आता है, सबसे पहले हम उसका रिकॉर्ड देखते हैं। फिर उसे डॉक्टर्स को दिखाते हैं। सारी रिपोर्ट्स को देखने के बाद डॉक्टर्स मिलने का समय देते हैं।

फिर हमारे यहां से मरीजों को कॉल जाती है और उन्हें मुंबई बुलाया जाता है। हम कोशिश करते हैं कि कोई भी मरीज हमारे यहां से निराश न लौटे। अगर वो हमारी क्राइटेरिया में फिट नहीं भी बैठा तो भी हम उसके लिए किसी न किसी तरीके से दूसरी व्यवस्था जरूर करते हैं।’

डोनेशन का 85% पैसा मरीजों में लगता है
प्रिया ने कहा कि उनकी 15 लोगों की टीम है। सबको अलग-अलग काम दिए गए हैं। उन्होंने कहा, ‘हमारी छोटी सी टीम है। सबको पता है कि उन्हें क्या करना है। हमारी रोज मीटिंग्स होती हैं। हम रोज इस बात पर चर्चा करते हैं कि आज कितने मरीजों ने हमसे संपर्क करने की कोशिश की है।

पहले हमारे पास डोनेशन से जितने भी रुपए आते थे, वो हम सारे मरीजों के इलाज में लगा देते थे। अभी हम उसमें से 15% रख लेते हैं। डोनेशन का 85% पैसा मरीजों में लगता है। ऑफिस और स्टाफ के खर्चे भी तो निकालने पड़ते हैं। पहले इसे मैं अपने खर्चे से मैनेज करती थी, अब चूंकि टीम बड़ी हो गई है, काम भी बढ़ गया है। इसलिए अलग से पैसे लगने स्वाभाविक हैं।’

प्रिया ने कहा- खुद को मजबूत बनाना पड़ता है
आप अपने सामने रोज कैंसर के मरीजों को देखती हैं, उनके दुख और दर्द को फेस कैसे करती हैं। जवाब में प्रिया ने कहा, ‘अपने आप को थोड़ा मजबूत तो बनाना ही पड़ता है। मैं 13 साल की थी, जब मेरी मां नरगिस दत्त को कैंसर हुआ था। एक साल तक वो बहुत दर्द में रहीं। मैंने वो चीज झेली है। वहीं से मेरे अंदर हिम्मत आई।’

नरगिस ने जाते-जाते अपनी बातों से फाउंडेशन की नींव रख दी थी
नरगिस दत्त फाउंडेशन स्टार्ट करने की सोच कहां से आई? प्रिया ने कहा, ‘पिता सुनील दत्त मां का इलाज कराने अमेरिका ले गए थे। उस बीमारी की हालत में भी मां ने कहा कि आप मुझे तो यहां तक ले आए, लेकिन जरा उनके बारे में सोचिए जो इतना महंगा ट्रीटमेंट अफोर्ड नहीं कर सकते हैं। मां की उन्हीं बातों ने नरगिस दत्त फाउंडेशन की नींव रख दी थी।

पिताजी ने अमेरिका में इस फाउंडेशन की शुरुआत की। वहां के लोगों ने उनकी काफी मदद की। पिताजी जब तक जीवित थे, तब तक इस फाउंडेशन को खुद के पैसे से चलाते रहे। वो किसी से फंड मांगने में हिचकिचाते थे। उनके निधन के बाद मैंने इसका चार्ज लिया। फाउंडेशन को बहुत बड़े लेवल पर आगे ले जाना था, इसलिए मैंने फंड इकट्ठा करना शुरू किया।’

अगर उस वक्त आज के जैसी एडवांस सुविधाएं होतीं तो क्या नरगिस जी को बचाया जा सकता था? जवाब में प्रिया दत्त ने कहा, ‘मां को पैंक्रियाटिक कैंसर था, जो आज भी बहुत खतरनाक है। हालांकि वो फाइटर थीं, हम कह सकते हैं कि आज के समय में ऐसा हुआ होता तो वो सर्वाइव कर सकती थीं।’

मां की तबीयत की वजह से फैमिली ने झेली कठिनाइयां
प्रिया ने कहा कि मां की तबीयत की वजह से उनकी एक साल की पढ़ाई बाधित हो गई थी। पूरा दत्त परिवार नरगिस जी के इलाज के लिए अमेरिका शिफ्ट हो गया था। प्रिया कहती हैं, ‘मैं, संजू और मेरी बहन, हम सभी उस वक्त ज्यादा समझदार नहीं हुए थे। पिताजी भी बहुत टूट चुके थे। हम लोग उन्हें भी संभालने में लगे थे।

मजबूरी ऐसी थी कि हम लोग खाना बनाना भी सीख गए थे। पिताजी ने तो खाना-पीना सब कुछ छोड़ दिया था। हम सोचते थे कि शायद हम लोग उनके लिए कुछ बनाएं तो वो खा सकते हैं।

पिताजी को लगता था कि वो अकेले हम लोगों को कैसे संभालेंगे। उस वक्त तक मां ही थीं, जो घर-द्वार से लेकर बच्चों तक पर सारा ध्यान देती थीं। पिताजी की लाइफ काफी ज्यादा व्यस्त रहती थी। हालांकि समय के साथ पिताजी को एहसास हुआ कि अब अपने बच्चों के लिए मां और बाप दोनों वही हैं। वो फिर से एक्टिव हुए और अपने बच्चों के लिए जीने लगे।’

मां-बाप ने साधारण तरीके से परवरिश की
प्रिया के मुताबिक, उनके माता-पिता ने कभी यह महसूस नहीं कराया कि हम कितने बड़े स्टार्स के बच्चे हैं। उन लोगों ने बहुत साधारण तरीके से हमारी परवरिश की। प्रिया ने कहा, ‘पिताजी काफी स्ट्रिक्ट थे। वे इस बात पर हमेशा जोर देते थे कि लाइफ में कोई भी चीज आसानी से नहीं मिलती है, इसके लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है। पिताजी कभी अपनी जड़ों को नहीं भूलते थे।’

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