8 मिनट पहलेलेखक: आशीष तिवारी
- कॉपी लिंक
अक्षय ओबेरॉय ने मात्र 12 साल की उम्र से अपने एक्टिंग करियर की शुरुआत की। उन्होंने साल 2002 में आई फिल्म ‘अमेरिकन चाय’ में एक बाल कलाकार का किरदार निभाया था। अक्षय ने 2010 में राजश्री प्रोडक्शन के बैनर तले बनी फिल्म ‘इसी लाइफ में’ से बॉलीवुड में अपना डेब्यू किया था। इसके बाद अक्षय ने ‘गुड़गांव’ फिल्म में एक हरियाणवी किरदार निभाया। इस किरदार से उन्हें पॉपुलैरिटी मिली। उन्होंने दीपिका पादुकोण स्टारर फिल्म ‘पीकू’ में भी एक छोटा-सा किरदार निभाया।

अक्षय ओबेरॉय ने ‘फाइटर’ में स्क्वाड्रन लीडर बशीर खान का किरदार निभाया है।
अक्षय ने ‘फितूर’, ‘एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा’ जैसी फिल्मों में भी काम किया है। हाल ही में अक्षय, ऋतिक रोशन और दीपिका पादुकोण स्टारर फिल्म ‘फाइटर’ में नजर आए हैं। अक्षय ओबेरॉय बॉलीवुड एक्टर विवेक ओबेरॉय के कजिन ब्रदर हैं। उन्होंने दैनिक भास्कर के साथ खास बातचीत की। अक्षय ने इंटरव्यू के दौरान अपनी पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ शेयर की। ‘संघर्ष जितना लंबा होगा, सफलता भी उतनी ही बड़ी मिलेगी’ कुछ इस अंदाज में अक्षय ओबेरॉय से बातचीत शुरू हुई। चलिए जानते हैं, उनकी लाइफ के कुछ अनसुने पहलुओं के बारे में।
सवाल- अपनी जर्नी के बारे में शुरू से बताइए।
जवाब- इस समय हमारी इंडस्ट्री आंकड़ों और कमर्शियल सक्सेस में फंसी हुई है। ऐसे में जब कोई कलाकारी (टैलेंट) को तवज्जो देता है, तो बहुत अच्छा लगता है। मेरी पहली फिल्म साल 2002 में आई थी। उस समय मैं 12 साल का था। मेरी परवरिश अमेरिका में हुई।
मैं अपनी मां के साथ एक ग्रोसरी स्टोर में था, जहां मां सब्जियां खरीद रही थीं। वहां एक पोस्टर लगा हुआ था- ‘अमेरिकन चाय’ में एक किरदार के लिए मेकर्स को इंडियन लड़के की तलाश थी। मैंने उस पोस्टर की तस्वीर खींची और फिर दिए गए नंबर पर कॉल किया। मैंने मां को बताया कि मैं ऑडिशन देना चाहता हूं। फिर मैंने ऑडिशन दिया और मुझे रोल के लिए सिलेक्ट कर लिया गया।
सवाल- क्या हमेशा से एक्टिंग करना चाहते थे? कलाकार बनने के बारे में कब सोचा?
जवाब- बचपन में मेरे पापा मुझे फिल्में दिखाते थे। सच कहूं तो पापा को एक्टर्स में बहुत दिलचस्पी थी। पहले उन्होंने मुझे अमिताभ बच्चन की फिल्में दिखाईं। फिर गुरुदत्त साहब की फिल्में, उसके बाद शम्मी कपूर की फिल्में दिखाईं। बचपन से मेरे और पापा के बीच में बातचीत होती थी। वे मुझसे पूछते थे कि तुम्हें फिल्म में किरदारों की एक्टिंग कैसी लगी? मुझे लगता है उनको एक्टर्स से हमेशा से लगाव रहा है,और फिर तकदीर भी तो होती है। कब, कौन, कहां से कहां पहुंच जाए, कुछ पता नहीं चलता। मैं मानता हूं कि मेरा एक्टिंग की तरफ रुझान अपने पापा की वजह से आया है।

जब मैंने ‘अमेरिकन चाय’ फिल्म की तो मुझे एक्टिंग का और भी ज्यादा शौक हो गया। फिर मैंने अपने पापा से एक्टिंग की पढ़ाई करने की ख्वाहिश जाहिर की। उन्होंने हामी भर दी। जब मैं अमेरिका के एक कॉलेज में थीएटर आर्ट्स इकोनॉमिक्स की पढ़ाई कर रहा था, तो मुझे महसूस हुआ कि अमेरिका में मेरा कुछ नहीं होने वाला। मुझे लगा शायद भारत जाकर मैं एक्टिंग कर सकूं। इसलिए फिर मैं साल 2008 में अपनी बोरी-बिस्तर बांध कर वहां से निकला और सीधा भारत आया। पहले मुझे कोई जानता नहीं था, इसलिए मैं रोज पृथ्वी थीएटर जाया करता था। वहां मुझे मकरंद देशपांडे मिले। उन्होंने मुझसे एक दफा पूछ ही लिया कि मैं वहां रोज क्यों आता हूं? मैंने उन्हें बताया कि मुझे एक्टिंग का बहुत शौक है।
सवाल- पृथ्वी थीएटर के बारे में कैसे पता चला?
जवाब- मैं बचपन से ही मुंबई आया-जाया करता था। पापा को भारत से बहुत लगाव है। मेरे पापा अमेरिका में रेस्टोरेंट संभालते हैं। उन्हें भारत से बहुत प्यार है। पापा ने पहले ही कह दिया था कि वे अमेरिका में अपनी अंतिम सांस नहीं लेना चाहते। इसलिए 55 साल की उम्र में उन्होंने अमेरिका में सब बेच कर वापस भारत आने का डिसिजन लिया था। साल 2004 में मैं अपने पिता के साथ भारत आ गया था। अमेरिका में जब छुट्टियां होती थीं, तब हम लोग 2-3 महीने के लिए भारत आया करते थे। खास बात ये है कि हम परिवार वालों से मिलने नहीं, बल्कि मुंबई की हवा खाने आया करते थे। पापा को भी हमेशा लगता था कि बच्चों को भारत का कल्चर दिखाना चाहिए।

जहां तक पृथ्वी की बात है, तो मैं पहले से पृथ्वी थीएटर के बारे में जानता था। उस समय हम लोग सांताक्रूज में रहा करते थे और मैं रिक्शे से पृथ्वी जाता था। मकरंद देशपांडे ने मेरा साथ दिया। उन्होंने मुझे ‘मिस ब्यूटीफुल’ में एक छोटा सा रोल दिया। धीरे-धीरे मैं ऑडिशन देने लगा। फिर मैंने अपनी पहली फिल्म ‘इसी लाइफ में’ राजश्री प्रोडक्शन के साथ की। राजश्री प्रोडक्शन, उन चंद कंपनियों में से एक है जो नए लोगों को मौका देते हैं। मैं खुद को बहुत खुशनसीब मानता हूं कि मुझे उनके साथ एक मौका मिला। लेकिन वो फिल्म बहुत बुरी तरह पिटी। जहां पहला शो 9 बजे लगा, वहीं दूसरा शो 9:30 बजे उतर भी गया था। इस वजह से एक्टिंग में थोड़ा गैप जरूर आया।
हालांकि ‘इसी लाइफ में’ फिल्म में मेरे रोल की तारीफ हुई थी। मुझे लगता है मैं इस चीज में लकी हूं कि लोग खासतौर से क्रिटिक्स मेरे काम को पहचानते हैं और सराहना भी करते हैं। इसके बाद फिर गैप आने की वजह से मैं वापस थीएटर करने लगा। फिर मैंने एम टीवी का एक शो ‘एम टीवी रश’ किया। इस 15 मिनट के शो के बाद उसी डायरेक्टर ने मुझे एक फिल्म ऑफर की। फिल्म का नाम था ‘पिज्जा’। ‘पिज्जा’ के बाद मुझे लगातार काम मिलता रहा। फिर मैंने ‘गुड़गांव’, ‘लाल रंग’, ‘इनसाइड एज’ और भी कई सारे शोज और प्रोजेक्ट्स किए।
सवाल- आपने पॉजिटिव और निगेटिव दोनों तरह के किरदार निभाए हैं। क्या निभाना में मजा आता है और क्या निभाने में मुश्किल होती है?
जवाब- हर एक्टर की लाइफ में एक ऐसी फिल्म जरूर आती है, जो उसके लिए बहुत अहम बन जाती है। मेरे लिए वो फिल्म ‘गुड़गांव’ थीं। मैंने उसमें एक हरियाणवी व्यक्ति का किरदार निभाया था। हालांकि मैं न्यू जर्सी से था, और ऐसे में इस तरह के किरदार में ढलना मेरे लिए बहुत मुश्किल था। शुरुआत में लोगों को मेरी शक्ल देखकर ये भी लगा था कि मैं निगेटिव रोल कैसे निभा पाऊंगा। लेकिन शंकर रमन, जो फिल्म के डायरेक्टर थे, उन्होंने बखूबी ये कर दिखाया था। उसके बाद मुझे ‘फ्लेश’ मिली। ‘फ्लेश’ में मेरे काम की काफी तारीफ हुई थी। फिल्म में मैंने खूंखार ट्रांसजेंडर का रोल निभाया था।

सवाल- क्या आपको टाइपकास्ट होने का डर था?
जवाब- हमारी इंडस्ट्री रोजाना लोगों को टाइपकास्ट करती रहती है। पर भूखा आदमी हमेशा काम करना चाहता है। उसे इन सब बातों से फर्क नहीं पड़ता। खुद को यहां खुशनसीब मानता हूं कि मेरी जिंदगी में सिद्धार्थ आनंद और ममता आनंद जैसे अच्छे लोग आए।
सवाल- आप विवेक ओबेरॉय के कजिन ब्रदर हैं, लेकिन आपने कभी इस बारे में बात नहीं की।
जवाब- अगर मुझे विवेक भाई की तरफ से मदद मिलती, तो क्यों नहीं लेता। अगर वो मेरे साथ होते, तो उनका हाथ क्यों नहीं पकड़ता। ना उन्होंने कभी पूछा, ना मैंने कभी कहा। वो अपना काम करते रहे, और मैं अपना। हालांकि मैं सुरेश ताऊजी और विवेक भाई की बहुत इज्जत करता हूं। दोनों बहुत ही गजब के एक्टर्स हैं। लेकिन हां, मैंने कभी उनसे सपोर्ट नहीं लिया। सच कहूं तो हमारा ज्यादा मिलना-जुलना भी नहीं था। मैं उनको ब्लेम नहीं करूंगा। मैंने ना कभी ये बोला है और ना बोलूंगा कि उन्होंने मेरी कभी मदद नहीं की। लेकिन जो सच्चाई है, वो सच्चाई है।
मुझे ना कभी मदद मिली और ना मैंने कभी मदद मांगी। इत्तेफाक रहा कि मुझे ‘इनसाइड एज’ मिली, जिसमें मेरे साथ विवेक ओबेरॉय भी थे। जब पीछे मुड़कर देखता हूं, तो ऐसा जरूर लगता है कि अगर उनकी मदद मिलती तो शायद करियर में और रफ्तार पकड़ता। चूंकि अब फेलियर इतना देख चुका हूं, कि सक्सेस और फेलियर दोनों बैलेंस्ड कर सकता हूं।

अक्षय ओबेरॉय एक्टर विवेक ओबेरॉय के कजिन ब्रदर हैं।
सवाल- जिंदगी में आए रिजेक्शंस को कैसे हैंडल करते हैं?
जवाब- पैशन आपको पागलपन की हद तक ले जाता है। दरअसल मैं बहुत ही हंबल आदमी हूं। मैं पार्टीज में पीछे खड़ा रहता हूं। लेकिन एक्टिंग को लेकर मैं मॉडेस्ट नहीं हूं, बल्कि बहुत जुनूनी हूं। रिजेक्शंस को देखकर मुझे लगता है कि मैं एक दिन मंजिल तक जरूर पहुंचूंगा। मैं फेलियर से निगेटिव नहीं होता। हमेशा एक विश्वास रहता है कि मैं भी एक दिन आगे जाऊंगा। मैं हमेशा पॉजिटिव रहने पर भरोसा रखता हूं। मेरा करियर भी कदम-दर-कदम चला है। मुझे पता है मेरा एक्सपीरियंस कोई मुझसे छीन नहीं सकता।
सवाल- आपकी शुरुआती फिल्में कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाईं। आजकल इंडस्ट्री में आंकड़े और कमर्शियल सक्सेस बहुत जरूरी हो गया है। ऐसे में आप खुद का हौसला कैसे बरकरार रखते हैं?
जवाब- उम्मीद। मुझे लगता है हम भारतीयों के लिए उम्मीद बहुत बड़ा इमोशन है। मेरे अंदर हमेशा उम्मीद रही है कि एक दिन जहां पहुंचना चाहता हूं, वहां जरूर पहुंचूंगा। मुझे लगता है उम्मीद कभी जाने नहीं देनी चाहिए। मैं निगेटिव सोचता ही नहीं हूं।
सवाल- आपकी जिंदगी में सपोर्ट सिस्टम कौन है, जिसने आपका हमेशा साथ दिया हो?
जवाब- मेरी वाइफ, मेरा भाई, मेरे पेरेंट्स। सच कहूं तो मेरा भाई मुझे बहुत सपोर्ट करता है। हालांकि वो LA में रहता है, लेकिन जैसे ही उसे ‘फाइटर’ की रिलीज डेट पता चली, वो तुरंत टिकट बुक करके आ गया था। उसकी आंखों की खुशी देखकर मुझे बहुत अच्छा लगता है।

सवाल- ऋतिक रोशन के साथ स्क्रीन शेयर करने का एक्सपीरियंस बताइए।
जवाब- ऋतिक रोशन के साथ काम करना एक अविश्वसनीय एक्सपीरियंस था। कमाल का मैजिकल मोमेंट था। बचपन से जो आपके आइडल रहे हैं, जब उनके साथ आप स्क्रीन शेयर करें, खड़े होकर डांस करें, सीन परफॉर्म करें, तो एक अलग ही एक्सपीरियंस महसूस होता है। ऊपर से फिल्म में अनिल कपूर और दीपिका पादुकोण भी हैं। फिल्म के हर दिन शूट पर मुझे लगा कि मेरे साथ कुछ मैजिक हो रहा है और मैं सपना देख रहा हूं। सच कहूं अभी थोड़ा बुरा भी लग रहा है कि सपना खत्म हो चुका है, फिल्म शूट हो चुकी है। अब ये हमारी नहीं बल्कि दुनिया की फिल्म हो गई है।
सवाल- आप दीपिका और अनिल कपूर के साथ पहले भी काम कर चुके हैं। इसके बारे में कुछ बताइए।
जवाब- दीपिका के साथ मैंने ‘पीकू’ की थी। उस फिल्म में मेरा डेढ़ मिनट का रोल था। वहीं अनिल कपूर के साथ फिल्म ‘एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा में’ छोटा सा रोल किया था। अनिल कपूर की आंखों में देखकर ये लगता है जैसे वो कहना चाह रहे हैं कि मैं धीरे-धीरे इंडस्ट्री में आगे बढ़ रहा हूं। जिंदगी में डेस्टनी, लक और कनेक्शंस पर मैं यकीन रखता हूं।

सवाल- क्या आपने ऋतिक रोशन को बताया कि आप उन्हें अपना आइडल मानते हैं?
जवाब- नहीं, अभी तक नहीं। मैं चाहता हूं वो ये शो देख लें और उन्हें खुद पता लग जाए। ऋतिक रोशन बहुत ही मॉडेस्ट सुपरस्टार हैं। फिल्म के प्रमोशन के दौरान या फिर स्क्रीनिंग हो या ट्रेलर लॉन्च इवेंट हो, हर जगह ऋतिक ने हमें बुलाया। उनके जैसा बड़ा स्टार ऐसा नहीं करता है। अगर वो ना भी बुलाते तो भी मीडिया उनके लिए आ जाती।
सवाल- ‘फाइटर’ में अपने किरदार के लिए तैयारी कैसे की?
जवाब- मेरे लिए इंटरमिटेंट फास्टिंग काफी सही रही। हम सब जानते हैं ऋतिक रोशन और करण सिंह ग्रोवर की बॉडी बहुत अच्छी है। ऊपर से फिल्म में हमें वर्दी पहननी थी, इसलिए मैं समझ गया था कि मुझे बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। मैंने इंटरमिटेंट फास्टिंग की, और मुझे अपनी बॉडी में काफी फर्क देखने को मिला। सच कहूं तो मैं अभी भी 12 बजे और 6 बजे के बीच में ही खाना खाता हूं।
सवाल- अपने अंदर की पॉजिटिविटी को कैसे बरकरार रखते हैं?
जवाब- जुनून। जब आदमी सिर्फ मंजिल देखता है और तय करता है कि मुझे यहां तक पहुंचना है, तो ऐसे में आप दाएं या बाएं नहीं, बल्कि सिर्फ मंजिल देखते हैं। मैं बहुत ही सख्त आदमी हूं जो अंदर से नहीं टूटता। मैंने हार देखी है, इसलिए चाहे जो भी हो, मैं हमेशा फोकस्ड रहता हूं।
सवाल- आपको इंस्पिरेशन कहां से मिलता है?
जवाब- मैं हर दिन किसी ना किसी से इंस्पायर होता हूं। जब अनिल कपूर को सेट पर देखता हूं, तो उनके अंदर की न्यूकमर वाली एनर्जी बहुत इंस्पायर करती है। स्पॉट बॉय की मेहनत भी बहुत इंस्पायर करती है।

सवाल- लाइफ में अब एंबीशन क्या है?
जवाब- लोगों की लाइफ में एंबीशन हमेशा बदलता रहता है। कभी किसी को अच्छा रोल चाहिए होता है, तो कभी कमर्शियल सक्सेसफुल फिल्म। मैं एक बड़ी फिल्म में लीड रोल करना चाहता हूं। मैं चाहती हूं मेरी ऑडियंस मुझे जाने। मैं भी कमर्शियल फिल्म करूं। ये इच्छा पहले नहीं थी, लेकिन अब जागने लगी है। अब मैं और मेहनत करना, और आगे बढ़ना चाहता हूं।
सवाल- जब लोग आपको पहचानते हैं, कैसा लगता है?
जवाब- जब लोग मुझे पहचानते हैं बहुत अच्छा लगता है। खुद पर गर्व महसूस करता हूं और सिद्धार्थ आनंद (‘फाइटर’ के डायरेक्टर) को शुक्रिया कहना चाहता हूं कि मेरे सीन पर लोगों ने तालियां बजाईं, सीटी मारी और इमोशनल भी हुए।
सवाल- इंडियन फिल्म इंडस्ट्री की एक अच्छी और एक बुरी चीज क्या लगती है?
जवाब- हिंदी फिल्म इंडस्ट्री एक परिवार जैसा है। अच्छी बात ये है कि हमारी इंडस्ट्री में इंसानियत बहुत है। बुरी चीज है- सोशल मीडिया का प्रेशर होना। आजकल मार्केटिंग भी सोशल मीडिया पर ही चलती है। दरअसल आजकल कास्टिंग डायरेक्टर भी सोशल मीडिया के फॉलोअर्स देखते हैं। अगर कोई मेहनती एक्टर हैं, लेकिन उसकी फैन फालोइंग नहीं है, तो उसे काम मिलना मुश्किल हो जाता है।

अक्षय ओबेरॉय ने ‘थार’, ‘एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा’, ‘पीकू’ जैसी फिल्मों में काम किया है।
सवाल- क्या इस बात का बुरा लगता है कि लोग बॉक्स ऑफिस के नंबर्स को ज्यादा महत्व देते हैं ना कि आर्ट को।
जवाब- जी बिल्कुल, बुरा लगता है। लेकिन अभी दुनियादारी उसी में चलती है। जब हम इस सिस्टम में जी रहे हैं, तो मैं सिस्टम के खिलाफ नहीं लड़ सकता।
सवाल- ओटीटी के आने से क्या बदलाव आया ?
जवाब- मेरे जैसे बहुत सारे लोगों को ओटीटी का फायदा मिला है। इससे ट्रांसपेरेंसी और मेरिट जरूर आ गई है। मुझे भी ओटीटी पर सराहना मिली, इसलिए ‘फाइटर’ फिल्म में रोल मिला। पहले जान-पहचान की वजह से काम मिलता था, लेकिन अब ओटीटी पर आपका काम देखकर रोल मिल जाते हैं।