Padma Awards: उज्जैन के माच कलाकार ओमप्रकाश शर्मा और डा.भगवतीलाल राजपुरोहित को पद्म श्री पुरस्कार

Padma Awards: उज्जैन के माच कलाकार ओमप्रकाश शर्मा और डा.भगवतीलाल राजपुरोहित को पद्म श्री पुरस्कार

इन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन माच लेखन और नाट्य संगीत को समर्पित किया। इनके द्वारा माच का आधुनिक रंगमंच में किया प्रयोग अविस्मरणीय है।

Publish Date: Thu, 25 Jan 2024 10:52 PM (IST)

Up to date Date: Fri, 26 Jan 2024 12:02 AM (IST)

शर्मा ने सम्पूर्ण जीवन माच लेखन और नाट्य संगीत को समर्पित किया। डा.भगवतीलाल राजपुरोहित को भी पद्मश्री पुरस्कार के लिए चयन हुआ है। इनकी जन्म स्थली धार और कर्म स्थली उज्जैन रही।

HighLights

  1. वे माच और हिंदी रंगमंच के बड़े कलाकार कालूराम शर्मा जी के बेटे हैं।
  2. उसी परंपरा को ओमप्रकाश शर्मा ने आगे बढ़ाया।
  3. उनका संबंध दौलतगंज घराना से है।

उज्जैन (नईदुनिया प्रतिनिधि)। मालवा की लोक गायन शैली माच को आगे बढ़ाने वाले रंगमंच के नायक उज्जैन के 85 वर्षीय ओमप्रकाश शर्मा को केंद्र सरकार ने पद्म श्री सम्मान के लिए चुना है। वे माच और हिंदी रंगमंच के उस्ताद कालूराम शर्मा जी के पौते और पंडित शालिग्राम शर्मा बेटे हैं।

उनका संबंध दौलतगंज घराना से है। वे वर्तमान में नानाखेड़ा स्थित अथर्व विहार कालोनी में निवास करते हैं। इन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन माच लेखन और नाट्य संगीत को समर्पित किया।

इनके द्वारा माच का आधुनिक रंगमंच में किया प्रयोग अविस्मरणीय है। उन्होंने अपनी जिंदगी के 70 साल मालवा की 200 साल पुरानी लोक नृत्य नाटिका को संवारने में बिताए हैं।

वे भारत सरकार के संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, मध्यप्रदेश सरकार के शिखर सम्मान, तुलसी सम्मान सहित कई पुरस्कारों से नवाजे जा चुके हैं। आठ नाटकों का लेखन कर चुके हैं।

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उज्जैन के ही डा.भगवतीलाल राजपुरोहित का भी पद्मश्री पुरस्कार के लिए चयन

उज्जैन के ही 82वर्षीय डा.भगवतीलाल राजपुरोहित को भी पद्मश्री पुरस्कार के लिए चयन हुआ है। इनकी जन्म स्थली धार और कर्म स्थली उज्जैन रही। गत वर्ष शिखर सम्मान और संगीत नाटक एकेडमी पुरस्कार से ये नवाजे गए थे। उनकी पहचान संस्कृतवदि्, पुरातत्वविद्, प्रसिद्ध लेखक, सांदीपनि महाविद्यालय में हिंदी विभाग के आचार्य और महाराजा विक्रमादित्य शोध पीठ के निदेशक के रूप में रही है।

वे शासन से राजाभोज पुरस्कार, डा राधाकृष्ण सम्मान, बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं। उन्होंने अपनी जिंदगी का अधिकांश समय लेखन में बिताया है। वे अपने अब तक के जीवनकाल में महाकवि कालिदास, महान शासक रहे सम्राट विक्रमादित्य, रोजा भोज और लोक साहित्य पर अनेकों किताबें लिख चुके हैं।

महाकवि कालिदास की नाट्य एवं काव्य रचनाओं का हिंदी और मालवी भाषा में अनुवाद कर चुके हैं। वर्तमान में महाकवि कालिदास पर हुए शोध में प्राप्त नई जानकारियों पर आधारित किताब और नाट्य शास्त्र के सांस्कृतिक अध्ययन पर आधारित किताब लिख रहे हैं।

उन्होंने नईदुनिया से कहा कि मेरी जिंदगी लिखना, पढ़ना, सीखना ही है। बस कर्म करता हूं, फल की इच्छा नहीं रखता। मेरा सौभाग्य है कि मुझे गुरु बहुत अच्छे मिले थे। अपनी किताबों में अध्ययन और अनुभव को उतारने की कोशिश करता हूं।

admin

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