छत्तीसगढ़ में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना और अन्नपूर्णा योजना के तहत गरीबों को मिलने वाला चावल कथित रूप से मतांतरण के लिए इस्तेमाल हो रहा है। आरोप है कि मिशनरियां हर मतांतरित परिवार से रोजाना एक मुट्ठी चावल इकट्ठा कर उसे बाजार में बेच रही हैं, जिससे सालाना 100 करोड़ रुपये से अधिक की रकम जुटाई जा रही है।
By Satish Srivastava
Edited By: Ashish Kumar Gupta
Publish Date: Sat, 16 Nov 2024 04:05:58 AM (IST)
Up to date Date: Sat, 16 Nov 2024 08:03:45 AM (IST)
संदीप तिवारी/नईदुनिया, रायपुर। सहज स्वीकार नहीं किया जाएगा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री विष्णु देव साय का चावल छत्तीसगढ़ में मतांतरण के काम आ रहा है। एक आकलन है कि योजना के अनाज से मिशनरियां प्रतिवर्ष 100 करोड़ रुपये से अधिक एकत्र कर रही हैं।
लगभग सात लाख ईसाई आबादी वाले प्रदेश में मिशनरियों के प्रतिनिधि प्रत्येक मतांतरित परिवार से प्रति व्यक्ति प्रतिदिन मात्र एक मुट्ठी चावल अंशदान करा रहे हैं। फिर प्रति माह घर-घर से चावल संग्रहित कर खुले बाजार में 25 से 30 रुपये किलो के भाव बेचा जा रहा है।
चावल से जुट रही आर्थिक मदद
विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (एफसीआरए या फारेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट, 2019) लागू होने के बाद गांव-गांव में फैले प्रचारकों के वेतन भुगतान में मुश्किल खड़ी हो गई थी। उसी के बाद धन की कमी को पूरा करने के लिए अन्न योजना का सहारा ले लिया गया।
पड़ताल में स्पष्ट हो रहा है कि प्रदेश में जशपुर से लेकर बस्तर तक मतांतरण कराने में जुटे संगठनों ने चंगाई सभा के लिए धन की व्यवस्था का प्रबंध देश के आंतरिक संसाधन से ही कर लिया है।
प्रकरण की गंभीरता से जांच कराएंगे : मंत्री
इस संबंध छत्तीसगढ़ के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री दयाल दास बघेल ने कहा कि केंद्र सरकार गरीबों के लिए चावल दे रही है। अगर कुछ लोग इसका दुरुपयोग कर रहे हैं और मतांतरण के लिए इसका उपयोग कर रहे हैं तो यह गंभीर मामला है। पूरे प्रकरण की गंभीरता से जांच कराएंगे।
प्रदेश में अन्नपूर्णा योजना के तहत चार सदस्यों वाले परिवार को प्रतिमाह 35 किलो चावल मिलता है। वर्ष 2020 के कोरोना काल के बाद केंद्र सरकार की गरीबी और भुखमरी दूर करने की प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेवाई) के तहत पांच किलो चावल अतिरिक्त मिलने लगा है।
खाद्य आपूर्ति विभाग के अनुसार प्रदेश के 3.05 करोड़ लोगों में से लगभग 2.5 करोड़ लोगों को बीपीएल, प्राथमिकता, निराश्रित और निश्शक्तजन की सुविधा मिलती है। केंद्रीय योजना का लाभ देशभर में 80 करोड़ लोगों को मिल रहा है। इसमें भी प्रदेश के 2.5 करोड़ पात्र लोग शामिल हैं।
जशपुर में सबसे ज्यादा मतांतरण
प्रदेश में सर्वाधिक चुनौतीपूर्ण स्थिति जशपुर जिले में है जहां की आबादी का 35 प्रतिशत से अधिक हिस्सा के मतांतरित हो जाने का आकलन है। यद्यपि मार्च 2024 में आरटीआई के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार यहां मात्र 210 लोग कानूनी तौर पर ईसाई बने और उन सभी की मौत भी हो चुकी है।
दूसरी तरफ 2011 की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार जशपुर के 22.5 प्रतिशत अर्थात 1.89 लाख लोगों ने स्वयं को ईसाई बताया था। वर्तमान समय में यह आंकड़ा तीन लाख से ऊपर जा चुका है। बजरंग दल के पूर्व जिलाध्यक्ष नीतिन राय ने बताया कि मिशनिरयों की आर्थिकी की कड़ी वर्ष 2020 में ही जुड़नी शुरू हो गई थी।
तब जशपुर के बगीचा ब्लाक स्थित समरबहार गांव में चंगाई सभा के दौरान गिरफ्तार 10 लोगों ने एक मुट्ठी चावला की योजना बताई थी। अभी 20 जनवरी 2024 को शहर से सटे जुरगुम गांव में गिरफ्तार लोगों ने भी इसकी पुष्टि की है।
इन जिलों से जुटाई जा रही है 50 से 55 करोड़ रुपये
उससे प्राप्त आय से ही प्रचारक को मासिक वेतन और अन्य सुविधाएं दी जा रही हैं। एक आकलन के इस योजना से अंबिकापुर, जशपुर, रायगढ़ और बलरामपुर जिले में ही प्रति वर्ष 50 से 55 करोड़ रुपये की व्यवस्था की जा रही है। प्रदेश स्तर पर यह आंकड़ा 100 करोड़ रुपये से अधिक पहुंच रहा है।
मतांतरण के विरुद्ध सक्रिय कल्याण आश्रम के न्यायिक सलाहकार सत्येंद्र तिवारी के अनुसार मिशनरियां अब स्वयंसेवी संस्था के रूप में सिर्फ स्कूल और अस्पताल के लिए विदेश फंड प्राप्त कर पा रही हैं। ऐसे में गरीबी और भुखमरी दूर करने की प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेवाई) और प्रदेश सरकार की अन्नपूर्णा योजना के तहत प्रत्येक परिवार को दिया जाने वाला चावल मतांतरण प्रक्रिया से जुटे प्रचारकों (पास्टर) के लिए अर्थ संग्रहण का साधन बन गया है।