भारत में बन रहा पहला ड्यूल स्टेल्थ ड्रोन! मिलेगी रामा तकनीक, जानें कितना खतरनाक

भारत में बन रहा पहला ड्यूल स्टेल्थ ड्रोन! मिलेगी रामा तकनीक, जानें कितना खतरनाक


‘रामा’ यानी Radar Absorption and Multispectral Adaptation एक स्वदेशी रूप से विकसित नैनो टेक्नोलॉजी आधारित कोटिंग है जो दुश्मन के रडार और इंफ्रारेड सेंसर को लगभग 97% तक धोखा दे सकती है. यह कोटिंग एक खास मिश्रण से तैयार की गई है जो रडार सिग्नल को अवशोषित कर उसे ऊष्मा में बदल देती है और साथ ही ड्रोन की तापीय पहचान को भी काफी हद तक कम कर देती है. इस तकनीक को हैदराबाद की स्टार्टअप कंपनी वीरा डायनामिक्स और बिनफोर्ड रिसर्च लैब्स ने रक्षा मंत्रालय के सहयोग से विकसित किया है.

‘रामा’ यानी Radar Absorption and Multispectral Adaptation एक स्वदेशी रूप से विकसित नैनो टेक्नोलॉजी आधारित कोटिंग है जो दुश्मन के रडार और इंफ्रारेड सेंसर को लगभग 97% तक धोखा दे सकती है. यह कोटिंग एक खास मिश्रण से तैयार की गई है जो रडार सिग्नल को अवशोषित कर उसे ऊष्मा में बदल देती है और साथ ही ड्रोन की तापीय पहचान को भी काफी हद तक कम कर देती है. इस तकनीक को हैदराबाद की स्टार्टअप कंपनी वीरा डायनामिक्स और बिनफोर्ड रिसर्च लैब्स ने रक्षा मंत्रालय के सहयोग से विकसित किया है.

यह स्टेल्थ ड्रोन करीब 100 किलोग्राम वजनी है और 50 किलोग्राम तक का पेलोड लेकर उड़ान भर सकता है. पारंपरिक ड्रोन की तुलना में यह दुश्मन की सीमा में बहुत अधिक सफलता से घुसपैठ कर सकता है. सामान्यत: जब 100 ड्रोन भेजे जाते हैं तो केवल 25-30 ही लक्ष्य तक पहुंच पाते हैं लेकिन रामा तकनीक वाले ये नए ड्रोन 80 से 85% सफलता के साथ टारगेट तक पहुंच सकते हैं.

यह स्टेल्थ ड्रोन करीब 100 किलोग्राम वजनी है और 50 किलोग्राम तक का पेलोड लेकर उड़ान भर सकता है. पारंपरिक ड्रोन की तुलना में यह दुश्मन की सीमा में बहुत अधिक सफलता से घुसपैठ कर सकता है. सामान्यत: जब 100 ड्रोन भेजे जाते हैं तो केवल 25-30 ही लक्ष्य तक पहुंच पाते हैं लेकिन रामा तकनीक वाले ये नए ड्रोन 80 से 85% सफलता के साथ टारगेट तक पहुंच सकते हैं.

वीरा डायनामिक्स के CEO साई तेजा ने बताया कि यह तकनीक जल्द अंतिम परीक्षण के दौर में पहुंचेगी और 2025 के अंत तक इसे भारतीय नौसेना के बेड़े में शामिल किया जा सकता है. लड़ाई के समय दुश्मन आमतौर पर सबसे पहले ड्रोन की मौजूदगी को रडार से पकड़ता है और फिर इंफ्रारेड गाइडेंस से उसे निशाना बनाता है.

वीरा डायनामिक्स के CEO साई तेजा ने बताया कि यह तकनीक जल्द अंतिम परीक्षण के दौर में पहुंचेगी और 2025 के अंत तक इसे भारतीय नौसेना के बेड़े में शामिल किया जा सकता है. लड़ाई के समय दुश्मन आमतौर पर सबसे पहले ड्रोन की मौजूदगी को रडार से पकड़ता है और फिर इंफ्रारेड गाइडेंस से उसे निशाना बनाता है.

लेकिन यह नया ड्यूल स्टेल्थ ड्रोन इन दोनों तकनीकों को चकमा देने की काबिलियत रखता है जिससे यह युद्ध के मैदान में ज्यादा देर टिकता है और ज्यादा प्रभावी ढंग से हमला कर सकता है.

लेकिन यह नया ड्यूल स्टेल्थ ड्रोन इन दोनों तकनीकों को चकमा देने की काबिलियत रखता है जिससे यह युद्ध के मैदान में ज्यादा देर टिकता है और ज्यादा प्रभावी ढंग से हमला कर सकता है.

इसके साथ ही भारत ने ओडिशा के चांदीपुर स्थित परीक्षण रेंज से पृथ्वी-2 और अग्नि-1 जैसी दो महत्वपूर्ण बैलिस्टिक मिसाइलों का भी सफल परीक्षण किया. पृथ्वी-2 एक पूरी तरह स्वदेशी मिसाइल है, जो 350 किमी तक की दूरी पर हमला करने में सक्षम है और 1,000 किलोग्राम पेलोड ले जा सकती है. वहीं, अग्नि-1 मिसाइल 700 से 900 किलोमीटर तक के लक्ष्यों को सटीकता से भेदने की क्षमता रखती है और यह 1 टन विस्फोटक ढोने में सक्षम है.

इसके साथ ही भारत ने ओडिशा के चांदीपुर स्थित परीक्षण रेंज से पृथ्वी-2 और अग्नि-1 जैसी दो महत्वपूर्ण बैलिस्टिक मिसाइलों का भी सफल परीक्षण किया. पृथ्वी-2 एक पूरी तरह स्वदेशी मिसाइल है, जो 350 किमी तक की दूरी पर हमला करने में सक्षम है और 1,000 किलोग्राम पेलोड ले जा सकती है. वहीं, अग्नि-1 मिसाइल 700 से 900 किलोमीटर तक के लक्ष्यों को सटीकता से भेदने की क्षमता रखती है और यह 1 टन विस्फोटक ढोने में सक्षम है.

Published at : 20 Jul 2025 07:41 AM (IST)

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