30 लाख की विदेश में नौकरी छोड़ बने आईपीएस, प्राइमरी स्कूल से शुरू की थी ‘संभल एसपी’ की पढ़ाई; पढ़ें सफरनामा

30 लाख की विदेश में नौकरी छोड़ बने आईपीएस, प्राइमरी स्कूल से शुरू की थी ‘संभल एसपी’ की पढ़ाई; पढ़ें सफरनामा



<पी शैली="पाठ-संरेखण: औचित्य सिद्ध करें;">कृष्ण कुमार बिश्नोई (केके बिश्नोई) आज उत्तर प्रदेश के संभल जिले के एसपी (पुलिस कप्तान) के रूप में पहचाने जाते हैं, लेकिन उनकी यात्रा बहुत प्रेरणादायक और संघर्षपूर्ण रही है। हाल ही में संभल में उग्र हिंसा को नियंत्रित करने के दौरान उनकी विवेकशीलता और नेतृत्व क्षमता ने उन्हें पूरे प्रदेश में क्रांति ला दिया। जब हिंसा के बीच उपद्रवियों को समझाया गया तो उन्होंने कहा, "इन नेताओं के चक्कर में अपना भविष्य बर्बाद मत करो"तो उनकी आवाज़ सोशल मीडिया पर वायरल हो गई। यह उनकी उपकरण क्षमता और प्लास्टिक तरीकों से स्थिति को आर्किटेक्ट की कला का स्रोत है।

प्राइमरी स्कूल से फ्रांस की स्कॉलरशिप तक का सफर जानिये कैसा रहा  

केके बिश्नोई का जन्म राजस्थान के नासिक जिले में हुआ था। वे 6 भाई-बहन सबसे छोटे हैं और अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव के प्राइमरी स्कूल से प्राप्त की है। बचपन से ही उन्होंने तेजी से पढ़ाई की और उन्होंने 10वीं की परीक्षा सीकर के एक प्राइवेट स्कूल से फर्स्ट डिवीजन में पास की। इसके बाद उन्होंने सेंट्रल स्कूल से 12वीं की पढ़ाई की और फिर दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रतिष्ठित सेंट स्टीफन कॉलेज से ग्रेजुएशन किया। बिश्नोई का शुरुआती सफर तय नहीं हुआ। वे फ्रांस सरकार की स्कॉलरशिप पर पेरिस स्कूल ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स से इंटरनेशनल सिक्योरिटी में मास्टर डिग्री ले गए और इसके बाद ‘द फ्लेचर स्कूल’ से भी पढ़ाई की।

30 लाख की नौकरी छोड़ी और फिर दो कर्मचारियों में बने शेयर होल्डर 

केके बिश्नोई ने अपने करियर की शुरुआत एक शानदार नौकरी से की थी। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के व्यापार केंद्र में 30 लाख रुपये की योजना पर काम किया। हालाँकि, उनका दिल कभी भी सरकारी सेवा में नहीं था। एक साल तक इस नौकरी में काम करने के बाद उन्होंने भारत में निर्णय लिया और एमफिल की डिग्री प्राप्त की। विदेश मंत्रालय में भी काम किया, लेकिन उनका सपना गठबंधन बनने का था। इसके बाद उन्होंने यूपीएससी की जांच की और दूसरे प्रयास में उसे पास कर परीक्षण में शामिल कर लिया गया।

संभल में पोस्टिंग

संभल में उनकी यह पहली एसपी की पोस्टिंग थी और यहां उन्होंने सालों तक हुई भीषण हिंसा को रोकने में अहम भूमिका निभाई थी। उनकी एकजुटता और मजबूत कदमों ने स्थिति को शांत कर दिया और हिंसा को पीछे छोड़ दिया। उनके इस शस्त्रागार और प्लास्टिक नेतृत्व ने उन्हें राज्यभर में प्रसिद्ध कर दिया।

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