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By Anoop Bhargav
Publish Date: Tue, 19 Nov 2024 01:28:05 PM (IST)
Up to date Date: Tue, 19 Nov 2024 01:30:15 PM (IST)
नईदुनिया प्रतिनिधि, ग्वालियर। मैं ग्वालियर का किला मेरे साथ कई राजाओं की शौर्य गाथाएं जुड़ी हैं, वहीं अपने साथ हुई बर्बरता की निशानियां लिए मैं आज एक जगह खड़ा हूं। मेरी खूबसूरती मुगल शासक औरंगजेब को यहां खींच लाई।
उसने न केवल मुझे बल्कि मेरे यहां की मूर्तियों को भी तहस नहस कर दिया। एक वक्त ऐसा भी आया, जब मुझे ईस्ट इंडिया कंपनी ने हथिया लिया। मुझे मिटाने की तमाम कोशिशें हुई। वक्त के साथ एक के बाद एक कई राजाओं ने मुझ पर राज किया। 1804 से 1844 के बीच मुझ पर अंग्रेजों और सिंधिया घराने का राज रहा। आखिरकार 1844 में महाराजापुर की लड़ाई के बाद मैं पूरी तरह से सिंधिया घराने का हो गया और अब मैं विश्व धरोहर में शामिल हूं।
मेरी खूबसूरती इतनी है कि दूर-दूर से पर्यटक मुझे निहारने आते हैं। भले ही मैंने कई आक्रमण झेले, लेकिन मेरी भव्यता आज भी बरकरार है। मैं ग्वालियर का किला देश में ही नहीं बल्कि विदेश में भी मशहूर हूं। मेरा निर्माण आठवीं शताब्दी में किया गया था। मैं तीन किलोमीटर के दायरे में फैला हूं और मेरी ऊंचाई 35 फीट है। मेरा भारतीय इतिहास में भी एक महत्वपूर्ण स्थान है।
इतिहासकारों के मुताबिक मेरा निर्माण सूरज सेन कराया। मेरी स्थापना के बाद मुझ पर पाल वंश ने राज किया। इसके बाद प्रतिहार वंश और फिर मोहम्मद गजनी ने मुझ पर आक्रमण कर दिया, लेकिन उसे हार का सामना करना पड़ा। 1196 ईस्वी में कुतुबुद्दीन ने मुझे अपने अधीन कर लिया, लेकिन 1211 ईस्वी में उसे हार का सामना करना पड़ा। फिर 1231 ईस्वी में गुलाम वंश के संस्थापक इल्तुतमिश ने मुझे अपने अधीन कर लिया। इसके बाद महाराजा देव परम ने ग्वालियर पर तोमर राज्य की स्थापना की।
मुझे याद है जब पहली बार मेरे परिसर में जौहर हुआ था। इसमें मेरे परिसर के अंदर मौजूद स्त्रियों ने इल्तुतमिश की सेना से बचने के लिए आत्महत्या की थी। उन्होंने जिस जगह अपना जीवन त्यागा था, उसे जौहर कुंड या जौहर ताल के नाम से जाना जाता है और यह मेरे उत्तरी छोर पर स्थित है।
मेरे बारे में कहा जाता है कि मेरे शासक सूरज सेन को कुष्ठ रोग हुआ था। एक घुमंतू ऋषि, ग्वालिपा उनसे मिलने आए और उन्हें पास के ही एक पवित्र तालाब का जल पीने को कहा। इस जल के सेवन के बाद, राजा चमत्कारिक रूप से अपने रोग से मुक्त हो गए और उन्होंने बाद में आभार स्वरूप, मेरा निर्माण करवाया। मेरा नाम उस ऋषि के नाम पर रखा गया। ऋषि ने राजा और उनके वंशजों को किले के पाल या रक्षक की उपाधि दी थी। ऐसा माना जाता है कि जिस तालाब के पानी से राजा अपने रोग से ठीक हुए थे, वह अब भी मेरे परिसर में ही स्थित है और उसे सूरज कुंड कहा जाता है।
मुझ तक पहुंचने के लिए अनेक प्रवेश द्वार हैं। इनमें आलमगिरि या ग्वालियर द्वार, गणेश द्वार, चतुर्भुज द्वार, उरवाई द्वार, लक्ष्मण द्वार, बादल महल या हिंडोल द्वार और हाथी पोल शामिल हैं। हाथी पोल मेरा मुख्य प्रवेश द्वार है, जो मेरे परिसर के दक्षिण-पूर्व भाग में स्थित है। यह मानसिंह महल के पूर्वी अग्रभाग का हिस्सा है। ऐसा माना जाता है कि जिस हाथी की मूर्ति (जिसका वर्णन इब्न बतूता ने अपने संस्मरणों में भी किया है) के कारण द्वार का नाम रखा गया था, वह मुगल बादशाह औरंगजेब के आदेश पर हटा दी गई थी। किले के अंदर मौजूद पानी के जलाशयों से 15000 सैनिकों के लिए महीनों तक पानी की आपूर्ति हो सकती थी।
मेरे वैभव के कारण, पहले मुगल बादशाह जहीर-उद-दीन मोहम्मद बाबर ने मुझे हिंद के किलों के बीच मोती कहा था। मेरी मजबूत बनावट कई युद्ध और लड़ाइयां झेल चुकी है। मैं ग्वालियर का किला, समय की कसौटी पर हर समय खरा उतरा और स्थानीय निवासियों की संस्कृति का एक अभिन्न अंग अब तक बना हुआ हूं।