हार्ट अटैक उस स्थिति को कहा जाता है, जब दिल की मांसपेशियों तक रक्त पहुंचाने वाली नसों में कोई रुकावट हो। इससे दिल की कार्यक्षमता प्रभावित होती है और शरीर में रक्त संचार प्रभावित होता है। इसे मेडिकल भाषा में मायोकार्डियल इन्फार्कशन कहा जाता है। इस कारण से ऊतकों को होने वाली क्षति स्थायी रूप से हृदय को कमजोर कर सकती है।
By Manoj Kumar Tiwari
Publish Date: Solar, 06 Oct 2024 08:49:11 AM (IST)
Up to date Date: Solar, 06 Oct 2024 08:49:11 AM (IST)
HighLights
- यदि हार्ट अटैक है तो जल्द से जल्द पहुंचे अस्पताल।
- इलाज में जरा भी देर होने से जा सकती मरीज़ की जान ।
- हार्ट अटैक के बाद 6 घंटे की अवधि गोल्डन पीरियड।
नईदुनिया प्रतिनिधि, बिलासपुर। गौरव हास्पिटल के मैनेजिंग डायरेक्टर व हदय रोग विशेषज्ञ डा़ आरिफ असलम ने कुछ महत्वपूर्ण जानकारी साझा की। उन्होंने बताया कि हार्ट अटैक का मतलब हृदय की मांसपेशियों को रक्त आपूर्ति करने वाली खून की नसों में ब्लाक हो जाना। इससे मांसपेशियों की कोशिकाएं मृत होने लगती है। ये कोशिकाएं फिर जीवित नहीं होती इसलिए हार्ट अटैक की स्थिति में मरीज को अतिशीघ्र हार्ट एक्सपर्ट के पास जाना बहुत जरूरी होता है। इलाज में देर होने से मरीज़ की जान भी जा सकती है। इसलिए हार्ट अटैक की स्थिति में मरीज को जल्दी से जल्दी किसी अच्छे हार्ट हास्पिटल में पहुंचना जरूरी होता है। डा़ आरिफ असलम ने बताया कि पूरे विश्व में ह्रदय चिकित्सा के क्षेत्र में डाक्टर इस बात की रिसर्च में जुटे हैं कि ब्लाक हो गए हृदय की नसों को कितनी जल्दी खोला जा सके, ताकि हृदय की मृत कोशिकाओं में रक्त संचार फिर से चालू हो सके और मरीज की जान बचाए जा सकें।
अक्सर हम देखते हैं कि हार्ट अटैक के मरीजों के इलाज में असमंजस की स्थिति के कारण उसे परिवार या रिश्तेदारों द्वारा अस्पताल तक पहुंचाने में अधिक समय लग जाता है। हार्ट अटैक के बाद 6 घंटे की अवधि को गोल्डन पीरियड कहा जाता है, इस अवधि में मरीजों को हृदय रोग विशेषज्ञ द्वारा ब्लाक नसों को खोलने से उसकी प्राण रक्षा हो सकती है।
हार्ट अटैक के इलाज में देरी होने के कई कारण होते हैं। इसमें मरीज के परिवार या रिश्तेदार असमंजस की स्थिति में निर्णय नहीं कर पाते कि मरीज का इलाज तुरंत करवा ले या थोड़ा रुक कर बाद में करवा लें। कभी-कभी मरीज के गांव या शहर में हृदय के इलाज के विशेषज्ञ डा़क्टर या हास्पिटल की सुविधा नहीं होती है। वहां तक मरीजों को ले जाने में समय लग जाता है।
तीसरा गलत हास्पटिल का चुनाव भी एक कारण है, जहां हार्ट अटैक के मरीज के इलाज के लिए कैथलेब या एंजियोग्राफी जैसी सुविधा नहीं होती हैं। बहुत से लोगों के पास इलाज के लिए धन की कमी होती है जो सचमुच में हो सकती है। इसका संभव हल यह है कि हार्ट अटैक जैसी गंभीर स्थिति में इलाज के लिए पैसे बचाए जाने चाहिए या स्वास्थ्य बीमा योजना से भी यह संभव हो सकता है।
इलाज में देरी की एक परिस्थिति यह भी होती है कि किसी व्यक्ति विशेष जैसे मामा, चाचा, ताऊजी या बालक का इंतज़ार कर रहे होते हैं और उनके आने तक समय निकल जाता है। अक्सर लोग दर्द को ही हार्ट अटैक का लक्षण समझते हैं ,पर दर्द के अलावा घबराहट एवं सांस का फूलना भी हार्ट अटैक के लक्षण होते हैं जिससे मरीज के लिए जान का खतरा हो सकता है। इसलिए इन परिस्तियों में समय ना गवाएं और ह्रदय के सर्व-सुविधायुक्त अस्पताल में तुरंत मरीज को ले जाएं।