पुरी का भव्य रथ छोड़कर भगवान जगन्नाथ आते हैं कुलैथ, उसके बाद यहां शुरू होती यात्रा

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जिला मुख्यालय से 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित छोटा सा कुलैथ गांव की श्रद्धालुओं में जगन्नाथ धाम के रूप में ख्याति है। यहां डेढ़ सदी से भगवान जगन्नाथ एक घर में विराजित है।यह घर अब भगवान जगन्नाथ को पवित्र मंदिर का स्वरूप ले चुका है।रथयात्रा के अलावा वर्षभर श्रद्धालु यहां भगवान जगन्नाथ, बलदेव व बहन सभुद्रा के दर्शनों के लिए आते हैं।

By anil tomar

Publish Date: Sat, 06 Jul 2024 01:38:29 PM (IST)

Up to date Date: Sat, 06 Jul 2024 08:02:28 PM (IST)

कुलैथ के मंदिर में विराजमान भगवान जगन्‍नाथ की मूर्तियां

HighLights

  1. यहां डेढ़ सदी से भगवान जगन्नाथ एक घर में विराजित है
  2. साढ़े तीन घंटे के लिए पुरी की रथ यात्रा छोड़कर कुलैथ आते हैं भगवान जगन्नाथ
  3. पुरी में भी विधिवत भगवान के कुलैथ जाने की घोषणा के साथ यात्रा का होता है विश्राम

ग्वालियर. नईदुनिया प्रतिनिधि। जिला मुख्यालय से 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित छोटा सा कुलैथ गांव की श्रद्धालुओं में जगन्नाथ धाम के रूप में ख्याति है। यहां डेढ़ सदी से भगवान जगन्नाथ एक घर में विराजित है।यह घर अब भगवान जगन्नाथ को पवित्र मंदिर का स्वरूप ले चुका है।रथयात्रा के अलावा वर्षभर श्रद्धालु यहां भगवान जगन्नाथ, बलदेव व बहन सभुद्रा के दर्शनों के लिए आते हैं। कुलैथ में भी भगवान जगन्नाथ की यात्रा विश्वभर में प्रसिद्ध पुरी की रथयात्रा के साथ ही शुरु होती है।

ऐसी मान्यता है कि पुरी की यात्रा को बीच में छोड़कर भगवान जगन्नाथ साढ़े तीन घंटे के लिए कुलैथ आते हैं। उस समय विधिवत पुरी में भगवान जगन्नाथ के कुलैथ जाने की घोषणा के साथ यात्रा को कुछ समय के विराम दिया जाता है।भगवान जगन्नाथ को अपनी भक्ति से कुलैथ में आने की विवश करने वाले बाबा सांवलेदास महाराज की तीसरी पीढ़ी के किशोरीलाल श्रीवास्तव ने बताया कि भगवान जगन्नाथ के पुरी से कुलैथ आने का प्रत्यक्ष प्रमाण भक्तों को मिलता है।

एकाएक विग्रह का स्वरूप बदल जाता है,और विग्रह भारी हो जाते हैं। ऐसा महसूस होते ही यात्रा में भगवान जगन्नाथ के जयकारे लगने से शुरु हो जाते हैं और भक्त रथ खीचना शुरु कर देते हैं। दूसरा चमत्कार भगवान जगन्नाथ के भात का भोग अर्पित करने पर होता है। कुलैथ और पुरी में दोनों ही मंदिरों में चावल से भरे घट के अटका ( मटका) चढ़ाए जाते हैं। हालांकि यहां मटका चढ़ाए जाने पर यह चार भाग में बंट जाता है। मान्यता है कि आज भी कुलैथ के जगन्नाथ मंदिर में ऐसा ही चमत्कार होता है।

पुरी तक भक्त सांवलेदास ने दंडवत करते हुए पुरी तक की यात्रा की

किशोरीलाल श्रीवास्तव के अनुसार 1807 में उनके बाबा सांवलेदास के माता-पिता के निधन नौ वर्ष की आयु में हो गया। उनकी परवरिश के लिए आगे-पीछे कोई नहीं था एक तरह से इस जग में अनाथ से हो गये और उन्हें जगतपिता भगवान जगन्नाथ का आश्रय मिला। जब वे माता-पिता के नजर नहीं आने पर अधिक व्याकुल थे तो लोगों ने उनका मन समझाने के लिए बताया कि उनके माता-पिता बालक जगन्नाथजी गए हैं और यदि वे दंडवत करते हुए वहां जाएं तो उन्हें वे मिल जाएंगे। 1816 में नौ साल की उम्र में वे दंडवत करते हुए जगन्नाथ पुरी पुरी ओडिशा के लिए रवाना हो गए। रास्ते में उन्हें एक साधु रामदास महाराज मिले, जिन्होंने उन्हें बताया कि उनके माता-पिता की मृत्यु हो गई है और वे इसी प्रकार दंडवत करते हुए सात बार जाएंगे, तो उनको चमत्कार दिखेगा। सांवलेदास लगातार पुरी की यात्रा करते रहे।

भगवान जगन्नाथ ने कुलैथ में मंदिर बनाने की प्रेरणा दी

बाबा सांवलेदास 1844 की यात्रा के दौरान उन्हें स्वप्न आया कि वे कुलैथ में मंदिर बनवाएं लेकिन वे मूर्ति पूजा के उपासक नहीं बनना चाहते थे। उन्होंने मंदिर का निर्माण नहीं कराया और वे दो वर्ष तक भटकते रहे। इसके बाद उन्हें 1846 में फिर सपने में आदेश मिला कि वे चमत्कार देखें। यदि वे चावल के घट भरकर घर में एक स्थान पर रखेंगे तो वह चार भागों में विभक्त हो जाएगा। उन्होंने वैसा ही किया और परिणाम भी वैसा ही हुआ। मिट्टी के मटके में पके चावल रखने के बाद यह चार भागों में बंट गया।

सांक नदी में मिली चंदन की लकड़ी से विग्रहों का निर्माण हुआ

बाबा सांवलेदास को ही भगवान जगन्नाथ ने प्रेरणा दी कि गांव के पास बहने वाली सांक नदी में चंदन की लकड़ी की दो मूर्तियां रखी हैं, उन्हें लाकर उनके हाथ पैर बनवाए। इसके बाद उन्होंने उन मूर्तियों को लाकर कुलैथ गांव में स्थापित कर दिया, तभी से यहां पर मंदिर में भगवान विराजमान हैं। 1846 में घर में ही मंदिर की स्थापना की गई। तब से आज तक वहां पूजा-अर्चना जारी है।

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