CG Excessive Court docket Information: हस्तक्षेप तभी होना चाहिए जब कोई महत्वपूर्ण सार्वजनिक हित हो रहा हो प्रभावित

CG Excessive Court docket Information: हस्तक्षेप तभी होना चाहिए जब कोई महत्वपूर्ण सार्वजनिक हित हो रहा हो प्रभावित

चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस सचिन सिंह राजपूत की डिवीजन बेंच में सुनवाई हुई। मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने न्यायिक हस्तक्षेप के लिए पर्याप्त आधार प्रस्तुत नहीं किया है। डिवीजन बेंच ने कहा कि मामूली प्रक्रियात्मक कमी पर ध्यान देने से महत्वपूर्ण यह है कि सार्वजनिक परियोजनाओं को पटरी से नहीं उतारा जाना चाहिए।

By Yogeshwar Sharma

Publish Date: Wed, 03 Jul 2024 12:47:10 AM (IST)

Up to date Date: Wed, 03 Jul 2024 12:47:10 AM (IST)

छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला- प्रक्रिया पूरी होने के स्थिति में ठेके की नई प्रक्रिया शुरू करना अनुचित

नईदुनिया न्यूज, बिलासपुर। प्रक्रिया पूरी होने के स्थिति में ठेके की नई प्रक्रिया शुरू करना अनुचित

नईदुनिया प्रतिनिधि,बिलासपुर: छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में निविदा और अनुबंध के मामले में न्यायिक समीक्षा के दायरे को स्पष्ट किया है। कोर्ट ने कहा कि निविदा प्रक्रिया में हस्तक्षेप तभी होना चाहिए जब इससे कोई महत्वपूर्ण सार्वजनिक हित प्रभावित होता हो। प्रक्रिया पूरी होने के चरण में एक नई निविदा प्रक्रिया शुरू करने से कार्य मे अनावश्यक विलंब तो होता है साथ ही बजट पर भी प्रभाव पड़ता है।

चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस सचिन सिंह राजपूत की डिवीजन बेंच में सुनवाई हुई। मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने न्यायिक हस्तक्षेप के लिए पर्याप्त आधार प्रस्तुत नहीं किया है। डिवीजन बेंच ने कहा कि मामूली प्रक्रियात्मक कमी पर ध्यान देने से महत्वपूर्ण यह है कि सार्वजनिक परियोजनाओं को पटरी से नहीं उतारा जाना चाहिए। खासकर तब जब निविदा प्रक्रिया मौलिक रूप से निष्पक्ष और प्रतिस्पर्धी हो। मामला जिला खनिज फाउंडेशन ट्रस्ट जांजगीर चांपा द्वारा निविदा देने को लेकर एक विवाद से संबंधित था। याचिकाकर्ता, जनमित्रम कल्याण समिति, जो छत्तीसगढ़ सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम के तहत पंजीकृत एक गैर-सरकारी संगठन है। संगम सेवा समिति को ठेका देने के निर्णय को चुनौती देते हुए याचिका दायर की है। जनमित्रम समिति का कहना है कि ठेके की प्रक्रिया में आवश्यक पात्रता मानदंडों का पालन नहीं किया गया है। यह निविदा जांजगीर चांपा जिले में खनन प्रभावित क्षेत्रों के लिए एक मास्टर प्लान तैयार करने के लिए थी। याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कहा है कि संगम सेवा समिति ने चार्टर्ड अकाउंटेंट द्वारा प्रमाणित टर्न ओवर प्रमाणपत्र प्रस्तुत नहीं किया था, जो निविदा की तकनीकी योग्यताओं (टेक्निकल बीड) के अनुसार एक अनिवार्य आवश्यकता थी। इसके बावजूद, उत्तरदाता अधिकारियों ने संगम सेवा समिति से अनुबंध कर ठेका दे दिया।

डिवीजन बेंच के सामने यह भी आया सवाल

याचिकाकर्ता ने कहा है कि संगम सेवा समिति की बोली, आवश्यक शर्तों को पूरा नहीं करने के कारण अयोग्य ठहराया जाना चाहिए था। सुनवाई के दौरान डिवीजन बेंच के समक्ष प्रश्न था कि निविदा प्रक्रिया में हस्तक्षेप करना उचित होगा या नहीं। सार्वजनिक अधिकारियों से संबंधित अनुबंध मामलों में न्यायिक समीक्षा की सीमा क्या होनी चाहिए। मामले में यह भी सवाल उठाया गया कि निविदा मूल्यांकन समिति द्वारा निविदा शर्तों की व्याख्या और छूट देने में विवेकाधिकार का कैसे उपयोग किया गया।

हाई कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी

मामले की सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस सचिन सिंह राजपूत की डिवीजन बेंच ने निविदा मामलों में न्यायिक समीक्षा के संबंध में कई महत्वपूर्ण टिप्पणियां और सिद्धांत स्पष्ट किया है। कोर्ट ने ऐसे मामलों में निष्पक्षता की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि निविदा प्राधिकारी, निविदा शर्तों की व्याख्या में विवेकाधिकार रखते हैं। अधिकारियों को निष्पक्षता और उचित प्रक्रिया के दायरे में रहते हुए कार्य करना चाहिए।

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