पंतोरा में शनिवार कुंवारी कन्याओं ने छड़ीमार होली खेली। उन्होंने ग्रामीणों पर जमकर छड़ियां बरसाई और एक दूसरे पर रंग-गुलाल लगाया। रात 8 बजे तक बाजे-गाजे के साथ कन्याओं की टोली ने गांव में भ्रमण किया और जो राह में मिले, सब पर छड़ियां बरसाई। बलौदा ब्लाक के पंतोरा में कुंवारी कन्याओं की अनोखी छड़ीमार होली धूल पंचमी को मनाई गई। गांव वाले इसे डंगाही त्यौहार कहते हैं।
By komal Shukla
Publish Date: Solar, 31 Mar 2024 12:11 AM (IST)
Up to date Date: Solar, 31 Mar 2024 12:11 AM (IST)
नईदुनिया न्यूज बलौदा । पंतोरा में शनिवार कुंवारी कन्याओं ने छड़ीमार होली खेली। उन्होंने ग्रामीणों पर जमकर छड़ियां बरसाई और एक दूसरे पर रंग-गुलाल लगाया। रात 8 बजे तक बाजे-गाजे के साथ कन्याओं की टोली ने गांव में भ्रमण किया और जो राह में मिले, सब पर छड़ियां बरसाई। बलौदा ब्लाक के पंतोरा में कुंवारी कन्याओं की अनोखी छड़ीमार होली धूल पंचमी को मनाई गई। गांव वाले इसे डंगाही त्यौहार कहते हैं। सुबह कुछ ग्रामीण मड़वारानी के जंगल गए और वहां से बांस की छड़ियां काटकर लाए।
दोपहर में मंदिर में छड़ियों की पूजा अर्चना की गई। मंदिर परिसर में शाम 4 बजे 12 साल तक की कुंवारी कन्याएं इकठ्ठी हुई। बैगा दीपत सारथी व पुजारी फिरत केंवट, राजकुमार जायसवाल द्वारा छड़ियों की पूजा के बाद लड़कियां इन छड़ियों को हाथ में लेकर पहले भवानी मंदिर में दाखिल हुई और देवी देवताओं पर छड़ी के प्रहार के साथ छड़ीमार होली शुरु हुई। मंदिर से बाजे-गाजे व रंग गुलाल के साथ ग्रामीणों की टोली के आगे-आगे छड़ी लिए लड़कियां चल रही थी उन्हें रास्ते में जो भी मिले उन पर ये लड़कियां टूट पड़ी।
गांव के सभी लोग अपने-अपने घरों से निकलकर छड़ीमार होली में शामिल हुए। इस दौरान रंग गुलालों की भी बौछार हुई। हाथों में छड़ी लिए लड़कियों की टोली ग्रामीणों के साथ गांव में रात 8 बजे तक भ्रमण कर लोगों पर छड़ियां बरसाती रहीं। ग्रामीणों का विश्वास है कि छड़ीमार होली में जिस पर लड़कियां छड़ी का प्रहार करती हैं, उन्हें सालभर तक कोई बीमारी नहीं होती। जिले में एक मात्र जगह पर यह अनूठी परंपरा है, जिसे देखने पहरिया, बलौदा, कोरबा, जांजगीर सहित आसपास के लोग बड़ी संख्या में उपस्थित हुए। लड़कियों ने उन पर भी छड़ियों से प्रहार किया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में ग्रामीण उपस्थित थे।
बच्चों पर भी बरसी छड़ियां
साल भर स्वस्थ रहने की कामना लिए मां अपने दूधमुंहे बच्चों को लेकर घर के सामने लड़कियों की टोली का इंतजार करती रहीं। जैसे ही उनकी टोली घर के सामने पहुंची, बच्चों को उनके सामने कर दिया गया। लड़कियों ने उन पर भी छड़ियां बरसाई।
एक बार में कटी छड़ियों का उपयोग
छड़ीमार होली के लिए चार-पांच ग्रामीण सुबह से छड़ी काटने मड़वारानी के जंगल में पहुंचते हैं और टांगी से एक ही बार में कटने वाली छड़ी को लाया जाता है। ग्रामीण छड़ियां काटने के बाद इसे रास्ते में कहीं भी जमीन पर नहीं रखते। वे सीधे मंदिर पहुंचते हैं, जहां छड़ियों की पूजा-अर्चना होती है।
बरसाने की तर्ज पर होती है होली
बरसाने में देश का प्रसिद्ध लठमार होली मनाई जाती है, जबकि जिले के ग्राम पंतोरा में धूल पंचमी के दिन लठमार की तरह छड़ीमार होली मनाई जाती है। हालांकि इसमें लाठी की जगह छड़ियों से प्रहार होता है और इसमें सिर्फ कुंवारी कन्याएं ही छड़ी बरसाती हैं। ऐसे में अपने आप में यह अनूठी होली है। ग्रामीणों को इसका इंतजार साल भर से रहता है। कई घरों में इस होली का आनंद लेने व बच्चों को आशीर्वाद दिलाने बड़ी संख्या में मेहमान भी पहुंचते है।
डेढ़ सौ साल पहले से चली आ रही परंपरा
उपसरपंच राधेश्याम देवांगन ने बताया कि छड़ीमार होली कब से खेली जा रही है इसकी जानकारी नहीं है, मगर पूर्वज बताते है कि सौ से डेढ़ सौ पहले यह परम्परा चली आ रही है। यह किवदंती है कि लंबे समय पहले एक बार गांव में हैजा का प्रकोप हुआ तब मां भवानी ने स्वप्न में आकर बैगा को कहा गया कि ग्रामीणों को रोग से मुक्ति दिलाने के लिए इस तरह की होली की शुरूआत करनी होगी तब से यह परंपरा चली आ रही है।